Friday 28 December 2012

इस जनाक्रोश के मायने क्या ?


इस जनाक्रोश के मायने क्या ?
सबसे पहले बात करूँगा पिछले हफ्ते से इंडिया गेट पर उमड़े जन सैलाब की जोकि रेप पीडता के समर्थन में सरकार के खिलाफ उमड़ पड़ा। यह जनसैलाब किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा आवाहन करके ना तो बुलाया गया था और ना ही कोई राजनीतिक पार्टी इसका नेतृत्व कर रही थी। परन्तु देखने से लग रहा था कि एक जनाक्रोश है इस सरकार के खिलाफ। आज के नवयुवक – नवयुवती पुरे जोर-शोर से रेप पीड़ता के लिए न्याय मांग रहे थे । उनकी कोई अनुचित मांग नहीं थी। प्रजातंत्र में प्रजा ही सरकार होनी  चाहिए परन्तु ऐसा होता नहीं है। जो भी पार्टी चुनाव में चुन ली जाती है  वही सरकार होती है फिर वह जिस तरह से  चाहें उसी तरह से  प्रजा को चलाती  है।
सबसे दुर्भाग्य पूर्ण तो सरकार का रवैया रहा जोकि इस जनाक्रोश को राजनीतिक द्रष्टि से  देखते हुए नफा-नुकसान का आकलन करता नजर आ रहा था। पुलिसिया कारवाई से  लोग और भड़क गए। बात भी सही है वह लोग तो न्याय मांग रहे थे और आप उन पर डंडे बरसा कर क्या प्रमाणित करना चाहते हैं। गृह मंत्री इन सभ्य समाज के लोगो की तुलना माओ वादियों से करते नजर आये। ऐसा लग रहा है  एक घमंड से भरी सरकार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचा है इस सरकार में।

मुझे याद आ रहा है कुछ इसी तरह का जनसैलाब तब भी उमड़ पड़ा था जब अन्ना हजारे ने इस सरकार से बढ़ते हुए भ्रष्टाचार के विरोध में जंतर  - मंतर पर लोकपाल बिल लाने के लिए धरना प्रदर्शन किया। बाद में योगगुरु बाबा रामदेव ने भी रामलीला मैदान में धरना दिया। दिल्ली में हजारो लोगो  धरना स्थल पर पहुँच कर समर्थन दिया। ऐसा लग रहा था कि समाज इस सरकार के कामकाज से खुश नहीं है और जनता का विश्वास यह सरकार खो चुकी है। जनाक्रोश इतना अधिक इस सरकार  के खिलाफ देखने को मिल रहा था कि अगर अभी चुनाव हो जाए तो यह सरकार सत्ता खो देगी। जनता इसे नकार देगी। कहीं भी नहीं लग रहा था कि इस सरकार को चुनाव में जनता का जरा सा भी समर्थन मिलेगा।
परन्तु हाल में हुए विधान सभा चुनावो के नतीजो को देख कर लगा जनाक्रोश तो सरकार के काम-काज के प्रति लोगो में है परन्तु फिर भी लोग वोट देकर इस सरकार के प्रति अपनी आस्था व्यक्त कर रहे हैं। उत्तराखंड में भाजपा की सरकार थी। कांग्रेस के पास चली गयी। इसी तरह अभी जल्दी में हुए चुनावो में हिमाचल की सरकार भी कांग्रेस की झोली में चली गयी। केवल गुजरात की सरकार बच  सकी। सोंचने का विषय है कि जिस तरह से जनता में इस सरकार के प्रति आक्रोश दिखाई देता है वह जनता के द्वारा वोट देते समय कहाँ चला जाता है। मुझे लगता है जनता त्रस्त है लगातार बढती  मंहगाई से, जनता त्रस्त है बढ़ते हुए भ्रष्टाचार से, कानून व्यस्था से, बढती हुई गुंडागर्दी से और नित नए उजागर हो रहे घोटालो से, पर फिर भी काँग्रेस को लोग पसंद कर रहे हैं। उसकी सरकार चुन रहे हैं।
यह एक चिंता का विषय है कि हमारा समाज जा कहाँ रहा है। वह  धर्म निरपेछ्ता का ढोंग करने वाले लोगो को चुन कर साबित क्या करना चाहता  है।
इन सबका सबसे बड़ा कारण जो मुझे समझ में आता है वह यही है कि हमारी सामंतवादी मानसिकता। हम सालो साल राजाओ और नबाबो के आधीन रहे हैं। हमारे रोम – रोम में यही  मानसिकता  धर गयी है।  ज्यादातर लोग उसी मानसिकता से जी रहे हैं और कांग्रेस को वोट दे कर उपकृत करते आ रहे हैं। उनका यही मानना है कि कांग्रेस ने हमें अंग्रेजो से आजादी दिलवायी है।  नेहरु- गाँधी परिवार को ही अपना भाग्य विधाता मानते हुए उसको वोट दे  रहे हैं। हम कल भी पिछड़े थे और आज भी पिछड़े हैं। विश्व में दुसरे नंबर पर हमारी जनसँख्या है। परन्तु हम कहाँ हैं।  आजादी के इतने साल बाद भी हम अपने आप को विकसित  नहीं कर पाए हैं। हम आज भी विकासशील कह कर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं।

Saturday 17 November 2012

कैग और सरकार


कल शाम दो मुख्य समाचर टीवी चैनल  पर छाये हुये थे. पहला बाल  ठाकरे की तबियत खराब होने का और दूसरा 2जी स्पेक्ट्रम के नीलामी का.
बात शुरु करता  हूँ 2जी स्पेक्ट्रम से .
मनीष तिवारी को तो देख कर लग रहा था जैसे इन्होने कोई क़िला जीत लिया हो.   जोर – जोर से दहाड़े लगा कर कैग को और विपक्षी पार्टियों  को कोस रहे थे सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने की वकालत करते नजर आ रहे थे.
एक दूसरे कांग्रेसी नेता , लादेन जी के भक्त भी जोर शोर से कैग  प्रमुख को निशाना बना रहे थे. बड़े ही गहन- गंभीर मुद्रा में  भारी -भरकम शब्दों का प्रयोग करते हुए आत्मचिंतन, आत्ममंथन की सलाह कैग को दे  रहे थे.लेकिन एक बात गौर  करने वाली थी, सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ कोई कुछ भी नही बोल रहा था जिसने इनके द्वारा आवंटित लाइसेंस को रद्द कर दियानिचली कोर्ट ने  इनके मंत्री एवं कुछ अन्य को जेल भेज दिया.
क्यो भाई उनसे माफी मांगने को क्यो नही कह रहे होइसका मतलब कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ गडबड तो हुई थी पर किस तरह से यह  राजनीति के धुरंधर पब्लिक को बरगलाते  हैंयह तो इनके जोर – जोर से चिल्लाने से ही पता लग रहा था.
आज इस सरकार मे बैठे हुए लोगो को कैग अपना सबसे बड़ा दुश्मन नजर  रहा हैजहां भी मौका मिलता है उसको नसीहत  देना शुरु कर देते हैं ,तो कभी कैग प्रमुख को राजनीतिक महत्वकांछी बताते हैंउद्देश्य होता है कि   किसी भी तरह से उसको गलत साबित करके, नीचा  दिखाने काजिससे कि  वह आगे इनके हर एक कृत्य को सही ठहराये। 
याद होगा इसी कैग ने रा  ग  सरकार के समय ताबूत को विदेशो से बहुत अधिक कीमत पर खरीदने पर टिप्पणी   की थी  तब यही कांग्रेसी कैसे कुलांचे भर-भर कर जार्ज फर्नाडीज को कोस रहे थेकफन चोर जैसी संज्ञा  से सुशोभित कर रहे थेतब इन्हे कैग मे कोई बुराई नही नजर  रही थीपर आज कैग से बड़ा इन्हे कोई दुश्मन नही नजर  रहा है.
कहते हैं किसी झूठ को अगर बार बार  सच बताया जाय तो वह सच से ज्यादा  सच लगने लगता है. ठीक वैसे ही यह लोग  झूठ को हुंकारे भर कर, झूठ को सच साबित करने मे लगे हुए हैं. जबकि हकीकत  यह है कि  केवल 22 स्पेक्ट्रम की नीलामी से 9407 करोड़
मिले जबकि 122 लाइसेंस के बदले मे 9200 करोड़ ही मिले थे. सीधा सा गणित का सवाल है. लेकिन लगे हुए हैं किस तरह से बेबकूफ बनाया जाय.  अब 4जी भारत मे  चुका है. 3जी तो आम बात हैतो फिर 2 जी की नीलामी से अब उतना पैसा नही मिलेगा जितना   पहले मिलता.
अब देखना यह है कि किस करवट उंट बैठता है.

Thursday 8 November 2012

बेगानी शादी मे अब्दुल्ला दीवाना



बेगानी शादी मे अब्दुल्ला दीवाना

जी हाँ भारतीय मीडिया की कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया थी बराक ओबामा के दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने पर
शाम को आफिस से लौटने पर न्यूज सुनने के लिये टेलेविजन खोला, देखता क्या हूँ  सारे  के सारे न्यूज चैनल पर बराक ओबामा के दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने की खबरे आ रहीं थी,  लग रहा था खुशियाँ मना रहे हों. कहीं उनकी जीत का विश्लेषण  हो रहा था तो कही बधाईयां दी जा रही थी. कुल मिला कर ऐसा लगता था, जश्न का माहौल हो. सारे के सारे पलके बिछाये ओबामा की जीत का इंतजार कर  रहे थे. ओबामा की जीत की न्यूज का आगे अन्य समाचारो को कोई तबज्जो ही नही दी जा रही थी. सुबह  सारे न्यूज पेपर्स चाहे वह हिन्दी के हों या अंग्रेज़ी के , सभी के मुख प्रष्ठ मोटे - मोटे हेडिंग मे बस यही  समाचार प्रकाशित किया गया था. न्यूज पेपर्स  अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के चुनाव जितने  की खबर से अटे पड़े थे.
मन मे विचार आया क्या अमेरिका  मे भी हिन्दुस्तान के इलेक्शन होने पर ऐसा ही माहौल होता होगा. क्या  वहां  के भी सारे न्यूज चैनल यहाँ के इलेक्शन की खबरे लगातार दे रहे होते होंगे. समझ मे नही आता कि कब हमारे मीडिया का   स्वाभिमान जागेगा. अरे यह वही अमेरिका है जहां हमारे राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम  की तलाशी ली गयी थी.  जिसे  की  बाद मे अमेरिकी अधिकारियों ने सुरचा जांच के लिये आवश्यक बताया था. क्या अमेरिकियों को इतने बुजुर्ग आदमी से भी कोई खतरा हो सकता है.
अरे जब वह लोग हमे इज्जत नही दे सकते तब हम क्यों उनके आगे इस तरह से झुके रहते हैं. अरे न्यूज चैनल वालो कुछ तो शर्म करो. क्यो अपने स्वाभिमान का गला घोंट रहे हो

Sunday 4 November 2012

डेंगू से बचाव और इलाज


डेंगू से बचाव और इलाज


हर वर्ष विशेष रूप से बरसात के मौसम में डेंगू का प्रकोप बढ़ जाता है।  कुछ समय पहले तक तो लोग डेंगू नाम की बीमारी को जानते तक ना थे पर हाल के कुछ वर्षो मे यह बीमारी दिन – प्रतिदिन बढ़ती  जा रही है. यह एक बहुत ही खतरनाक बीमारी  है जिसमे समय रहते ध्यान देने की और सही ढंग से इलाज करवाने की आवश्यकता है ; अन्यथा इसके परिणाम बहुत गंभीर हो सकते हैं।  .
सबसे बड़ी बात यह है कि इस बीमारी के बाद स्वस्थ होने में बहुत समय लगता है।  यह बीमारी  शरीर को बुरी तरह से तोड कर रख देती है।   हाथ पैरो मे सूजन  होना उनका ऐठना और कमजोरी का बना रहना लगा ही रहता है। ही रहती है.
यहाँ डेंगू से बचने और डेंगू होने पर कुछ  आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियो के बारे मे बता रहा हूँ. डेंगू से बचने के किये इनको अमल  मे लाना चाहिये.  डेंगू मे पपीते के पत्ते का रस, बकरी का दूध, गिलोय का काढ़ा और एलोबेरा/घ्रत कुमारी या ग्वार पाठा  का सेवन बहुत लाभकारी होता है.
गिलोय: यह एक तरह की बेल होती है .जो की उत्तर भारत मे बहुतायत लगी होती है.  इसकी बेल  की लकड़ी परचून, किराने की दुकान मे मिल जाती है. इसको पानी मे खूब उबाल कर  एक- दो चम्मच प्रतिदिन  आजकल पीना चाहिये.



एक पौधा , जिसे आयुर्वेद में  घृत कुमारी कहते हैं , आम बोल - चाल  की ग्रामीण भाषा में ग्वार पाठा, और शहर की  भाषा में लोग इसे एलोबेरा के नाम से जानते हैं।  इसको प्रयोग करने के लिए इसके ऊपर के हरे छिलके को चाकू से छील कर निकाल दे उसके बाद  अंदर के पारदर्शी गूदे को जल के साथ सेवन करना चाहिए।  एक बार में कम से कम दो से तीन इंच लेना चाहिए।  दिन में दो से तीन बार सेवन करने से ब्लड प्लाज्मा तेजी से बढ़ने लगते हैं।
डेंगू होने पर निम्नलिखित उपाय करना चाहिये. डेंगू के मरीज को बहुत जल्द फायदा पहुंचता है.



पपीता : पपीते के पत्ते का रस दिन मे दो- तीन बार , एक - एक चम्मच , डेंगू  ग्रस्त मरीज को पिलाना चाहिये. इसका रस कड़वा अवश्य होता है. परन्तु फायदा बहुत तेजी से  करता है।  

यूँ तो बकरी का दूध शहरो में  मिलना मुश्किल है परन्तु हो सके तो बकरी का दूध: डेंगू ग्रस्त मरीज को  नियमित देना चाहिये.यह  डेंगू को कंट्रोल करने में बहुत मदद करता है।
गिलोय की बेल की लकड़ी का काढ़ा बना कर दिन मे दो - तीन बार पिलाना चाहिये.
आजकल डाक्टर भी इन्ही चीजो पर ज्यादा विश्वास कर के मरीज को अपनी दवाईयो के साथ साथ इनका सेवन करने की सलाह देते हैं. अगर कोई उपरोक्त चीजो का प्रयोग करता है तो उसे निश्चित फायदा होता है.

Wednesday 31 October 2012

अरविन्द केजरीवाल बनाम नमक का दरोगा



आजकल मीडिया मे अरविन्द केजरीवाल जोर-शोर से छाये हुये हैं. जो उनके समर्थक है वह उनकी तारीफ कर रहे हैं और जो कांग्रेस के समर्थक है वह बुराई. बात भी सही है इंसान वही सुनना पसंद करता है जो उसे अच्छा लगे.
अरविन्द केजरीवाल को लेकर मेरे मन मे चिंतन शुरु हो गया. चिंतन के बाद जो बात निकल कर आई वह यह कि व्यक्ति दिग्भ्रमित है. सबसे पहले अर्जुन की तरह अपना लक्ष्य चुनना चाहिये था और तदुपरान्त उसको भेदना चाहिये था. लक्ष्य का अर्थ है उसे  ना तो पेड़ दिखना चाहिये था और ना ही उस पर बैठी चिड़िया. दिखना चाहिये था पेड़ पर बैठी चिड़िया की आंख . पर समस्या यह है वह पेड़ देख रहा है और उस पर बैठी हुई बहुत सी चिड़िया , कबूतर , तोते , कौए आदि आदि. और कभी कौए पर  निशाना लगा रहा है तो कभी तोते पर. अभी क्या है कभी कांग्रेस पर वार करता है फिर उसको बीच मे ही छोड़ कर भाजप पर वार करने लगता है. अब अगर सभी को अपना दुश्मन बना लेगा तब तो लड़ाई जीत ही नही सकता. सारे मिल कर इस पर वार करेंगे
राजनीति का पहला अध्याय है पहले अपना लक्ष्य चुनो. और यही बात इसको समझ नही आ रही है.

हमारे पुराण और हमारा इतिहास हमे बहुत कुछ शिक्षा देता है. इसको चाहिये था  चाणक्‍य की तरह एक गुरु की, जो कि सही मार्ग दर्शन कर सके. महाभारत का युद्ध क्या पांडव जीत सकते थे अगर उनके साथ कृष्ण रूपी गुरु ना होते. राजनीति मे प्रवेश करना भी एक तरह से युद्ध  है और इस युद्ध मे अगर एक एक कर दुश्मन बनाये और फिर उसे पराजित करेगा तब तो जीत होगी पर अगर बहुत से दुश्मन बना लेगा और उनसे एक साथ  युद्ध करेगा तब इसको हार का सामना करना पड़ेगा.
अभी तो मुंशी प्रेमचंद कि  कहानी नमक का दरोगा की याद आ रही है, जिसमे अदालत नमक के दरोगा वंशीधर पर व्यंग्य कसते हुए कहती है नमक से हलाली ने उसके विवेक और बुध्दि को भ्रष्ट कर दिया”  कुछ ऐसा ही अरविन्द केजरीवाल के साथ है.

Monday 29 October 2012

और राजा इन्द्र ने तपस्या भंग कर दी.


हमारे पुराणो मे कई सारी ऐसी कथाये हैं जिनमे बताया गया है कि भगवान से कुछ प्राप्त करने के लिये जब कोई मुनि, ऋषि, या राजा तपस्या करते थे तब सबसे पहले देवताओ के राजा इंद्र को डर हो जाता था कि कहीं तपस्या करने वाला यह व्यक्ति भगवान से मेरा सिंहासन ना मांग ले. ज्यो-ज्यो वह कठिन तपस्या की ओर बढ़ता था राजा इंद्र उसकी तपस्या को भंग करने के लिये कभी अग्नि को भेज कर उसके चारो तरफ अग्नि लगवा देते थे, तो कभी सूर्य को तो कभी वायु को या स्वयं वर्षा को भेज देते थे. कुल मिलकर उद्देश्य उसके तप को भंग करना ही होता था.
आज के समय मे भी कुछ ऐसा ही है. कोई बदलाव नही आया है. सब कुछ वैसे का वैसा ही है अंतर यह है कि आज राजा इंद्र की जगह प्रधान मंत्री हैं और अग्नि, वायु, सूर्य वर्षा की जगह उनके मंत्री हैं. और तपस्या करने वाले बाबा रामदेव या अन्ना हजारे जैसे लोग हैं. जो कि अनशन करने बैठते हैं और ज्यो –ज्यो ही उनके अनशन को जनता का समर्थन मिलता है त्यो- त्यो ही इंद्र रूपी सरकार के मुखिया , प्रधान मंत्री को अपनी गद्दी डगमगाती नजर आने लगती है और अनशन को भंग करने के लिये कभी पुलिस द्वारा लाठी चार्ज करवाते हैं या पानी की कैनाल से भीड़ को तितर-बितर करते हैं. मंत्री लोग वायु, सूर्य, अग्नि का दायत्व निभाते हुए तरह –तरह से व्यवधान डालते हैं. किसी ना किसी तरह से उसके तप रूपी अनशन को भंग करवा दिया जाता है. किस बुरी तरह से इन लोगो के अनशन को खत्म करवाया गया यह तो हम सब जानते ही हैं.
जय हो राजा इंद्र की

Sunday 28 October 2012

एक फैसला अमेरिकी अदालत का, रजत गुप्ता


एक फैसला अमेरिकी अदालत कासाल भर पहले की बात है जब रजत गुप्ता जो कि अमेरिका मे बहुत ही हाई प्रोफाइल स्टेटस के प्रभावशाली व्यक्ति हैं, को न्यूयार्क की पुलिस ने breach of trust के आरोप मे गिरफ्तार किया था. आरोप था कि उन्होने गोल्डमैन सॉक्स की गुप्त सूचनाओं को हेज फंड संस्थापक राज राजारत्नम के पास पहुँचाई . न्यूयार्क की अदालत ने उन्हे शायद 5 लाख डालर के भुगतान करने पर जमानत दे दी थी. उस समय संचार मंत्री ए. राजा 2 जी स्केम मे और सुरेश कलमाड़ी कामन वेल्थ गेम्स घोटाले मे न्यायिक हिरासत मे जेल मे थे रजत गुप्ता को जमानत दिये जाने की खबर के उपर केन्द्र सरकार मे मंत्री सलमान खुर्शीद और कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह के अखवार मे कमेंट्स छपे थे. अमेरिका की अदालत के फैसले की वाह वाही करते हुए यहाँ की न्याय प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए कहा था कि यहाँ भी इस तरह से इन लोगो को जेल ना भेज कर जमानत दे देनी चाहिये थी. हाँलाकि कुछ दिनो बाद ही इन लोगो को जमानत मिल भी गयी.
अब जब की साल भर मे ही वहां की अदालत का फैसला आ गया, जिसमे रजत गुप्ता को 2 साल की सजा और 50 लाख डालर के जुर्माने की सजा दी गयी. देखा जाय तो हिन्दुस्तान मे तो शायद ही इसे इतना बड़ा अपराधिक जुर्म माना जाता और इतने प्रभावशाली व्यक्ति को सजा मिलती. परंतु अमेरिका मे साल भर मे ही नतीजा सबके सामने आ गया.
प्रश्न उठता है क्या हिन्दुस्तान मे ब्रीच ऑफ ट्रस्ट पर इतने प्रभावशाली व्यक्ति को सजा मिल सकती है.
अब कोई मंत्री या महासचिव यह नही कह रहा है कि यहाँ भी अमेरिकी अदालत की तरह ए. राजा, सुरेश कलमाड़ी के भी केस का फैसला होना चाहिये.
उस समय इन लोगो को जेल से बाहर निकलवाना चाहते थे इसलिये अमेरिकी अदालतो की तरफदारी की जा रही थी पर अब कोई भी नही बोल रहा है.
मै तो कहता हूँ कोई लोकपाल की जरूरत नही पड़ेगी अगर साल भर के अंदर -अंदर हर तरह् के मुकदमे का फैसला हो जाय पर दुर्भाग्य यह है कि ऐसा हो नही पा रहा है इसलिये ही रोज नये-नये घपले और घोटाले होते जा रहे हैं.

हम करे तो साला करेक्टर ढीला है




कई बार कुछ फिल्मी गाने ऐसे होते हैं कि उनके बोल बहुत समय तक स्म्रतिपटल मे स्थान बना लेते हैं. मेरे इस लेख का शीर्षक भी एक फिल्मी गाने के ही बोल हैं जो कि आजकल के नवीनतम घटनाक्रम पर सही बैठता है. बात चल रही है रॉबर्ट वढेरा और नितिन गडकरी की. एक भारतीय  जनता पार्टी के अध्यछ हैं तो दूसरे सत्तारूढ़ सरकार के मुखिया के दमाद. अरविन्द केजरीवाल ने पहले राबर्ट वढेरा को कटघरे मे खड़ा किया तदुपरान्त नितिन गडकरी को. रॉबर्ट वढेरा के मामले मे  तो सारे के सारे मंत्री , कांग्रेस के प्रवक्ता , महासचिव  एक स्वर मे क्लीन चिट देते नजर आये पर जैसे ही नितिन गडकरी का मामला सामने आया सारे के सारे कांग्रेस के प्रवक्ता और मंत्री बिना कोई छान -बिन के  जांच बैठाने को आतुर हो गये. परंतु ऐसी आतुरता रॉबर्ट वढेरा या सलमान खुर्शीद के मामले मे नही दिखाई गयी.
सारे के सारे न्यूज पेपर मे नितिन गडकरी छाये हुए हैं, रॉबर्ट वढेरा के बारे मे कोई बात नही कर रहा है. आनन-फानन से हरियाणा सरकार ने कमेटी बैठा कर रॉबर्ट वढेरा को क्लीन चिट भी दे दी.
दूसरी तरफ नितिन गडकरी साहब हैं, जिनकी अध्यछ की सीट ही खतरे मे पड गयी है. आरोप भी उन पर बहुत बढियाबढिया लगे हैं. उन्होने अपने ड्राइवर को डाइरेक्टर बनाया हुआ है. अपने अकाउंटटेंट  को अपनी कम्पनियो का डाइरेक्टर बनाया हुआ है. उनकी कम्पनी के रजिस्टर्ड आफिस का पता झुग्गी-झोपड़ी का है आदि-आदि.
यह खबर आते ही सारे के सारे न्यूज पेपर मे प्रतिक्रियो की तो झड़ी ही लग गयी. व्यंग लेखक को बढिया मसाला मिल गया. कहने लगे हमे भी ड्राइवर बना लो हम भी डाइरेक्टर बन जायेंगे. अब ऐसे लोगो को ज्यादा कुछ कम्पनी लॉ के बारे मे जानकारी तो होती नही है बस गाल बजाने से मतलब होता है. अरे आप तो नितिन गडकरी की बात कर रहे हैं बहुत से लोग अपने आफिस मे पानी पिलाने वाले को भी अपनी किसी कम्पनी का डाइरेक्टर बना देते हैं. पता नही क्यो ऐसी खबर से  सबके पेट मे दर्द शुरु हो जाता है. यह तो अपनी- अपनी सुविधा का सवाल है. मेरी कम्पनी है मै किसको डाइरेक्टर  बनाता हूँ और किसको नही, मेरी मर्जी.कौन सा कानून कहता है कि हम अपने ड्राइवर को , अपने नौकर को अपनी कम्पनी का डाइरेक्टर नही बना सकते.
अरे इसी कांग्रेस सरकार को ही देखो. प्रतिभा पाटील को राष्ट्रपति बना दिया. अपनी सुविधा ही तो देख कर बनाया.   बाद मे  कांग्रेस  के ही  विधायक ने प्रतिभा पाटील का कच्चा चिट्ठा खोल  कर रख दिया.
तो भई सही बात है ना हम करे तो साला करेक्टर  ढीला है