Sunday 7 September 2014

शिर्डी के साईं बाबा


यह विचार कई बार दिमाग में कौंधता है कि शिर्डी के साईं बाबा  उर्फ़ चाँद मियाँ एक मुस्लिम फ़क़ीर थे पता नहीं किस तरह रातो - रात सनातन धर्म में प्रवेश कर गए और सनातन धर्म के  मंदिरो में उनकी मूर्ति स्थापित करके पूजा होनी शुरू  हो गई।  
देखा जाय तो भारतवर्ष में बहुत से पहुंचे हुए संत , महात्मा हुए हैं।  और  वह लोग करिश्माई व्यक्त्तिव के संत होते थे परन्तु किसी को भी सनातन धर्म में  भगवान के बराबर रख कर नहीं पूजा गया या जाता है ।  अपवाद केवल  शिर्डी के साईं बाबा उर्फ़ चाँद मियाँ हैं ।
हालांकि बहुत से लोग इसे कांग्रेस की एक चाल मानते हुए शंकराचार्य के खिलाफ हो गए हैं।  वह इसे एक राजनीतिक साजिश मानते हैं ;परन्तु यह बात तो सभी को स्वीकार करनी ही पड़ेगी कि लाखो लोगो को तो यह पता ही नहीं था कि असल में शिर्डी के साईं बाबा कौन  हैं।  उन्होंने एक सत्य से लोगो को अवगत कराया है।  इसके लिए मै बिना किसी लाग -लपेट  के उन्हें साधुवाद देता हूँ कि कम से कम उन्होंने इतनी हिम्मत तो दिखाई और एक सच सभी के सामने रखा वरना बहुत थोड़े से लोग ही इस सच्चाई को जानते थे।
वापस फिर उसी विषय पर आता हूँ कि आखिर कैसे उन्हें भगवान राम , कृष्ण , विष्णु , हनुमान जी के बराबर बैठा दिया गया।
इसे कहते हैं मार्केटिंग , बहुत अच्छी  मार्केटिंग की गई है उन्हें भगवान बनाने के लिए।
मै किसी भी साधू - संत , फ़क़ीर के खिलाफ नहीं हूँ ; परन्तु यह भी  तो स्वीकार नहीं किया जा सकता कि एक व्यक्ति की मूर्ति को  सनातन धर्म के  मंदिरो में  स्थापित करके भगवान राम , कृष्ण , विष्णु , हनुमान , या अन्य देवी - देवताओ  के बराबर पूजा की जाय।
आज के हालत यह हैं   कि शिर्डी , सनातन धर्म के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है।  लाखो लोग हर साल उनके दर्शन के लिए जाते हैं।  लाखो - करोडो रूपये का चढ़ावा वहाँ पर चढ़ता है।  कारण वही है कि जबरदस्त मार्केटिंग की गई है और इंसान तो लकीर का फ़क़ीर होता ही है।  एक से दूसरा , दूसरे  से तीसरा , और तीसरे  चौथा , इस  तरह से पिछले कुछ वर्षो में अप्रत्याशित रूप से सांई भक्तो की वृद्धि हुई है।
अब कुछ साईं भक्त  कहेंगे कि हमें वहाँ जाने से फंला - फंला फायदे हुए।  इसका सीधा सा जबाव है कि कष्ट तो हर मनुष्य के जीवन में आते हैं  और उनका निवारण भी एक समय अवधि के लिए तय है।  यह प्रकृति का नियम है।  कुछ लोगो का निवारण जल्द हो जाता है कुछ का देर से और इस बीच अगर कोई उसे किसी दरगाह या फ़क़ीर के पास मन्नत मांगने के लिए भेज देता है।  और यह वक्त वह होता है जबकि प्रकृति उसके कष्ट का निवारण  करने जा  रही होती है  तब मनुष्य यही समझता है कि उसके कष्ट का निवारण फलांने मंदिर , दरगाह या फ़क़ीर की दुआ से हुआ है जबकि यह सच नहीं है परन्तु उसका विश्वास उस मौलवी , फ़क़ीर पर अटूट हो जाता है और हर अपने मिलने वाले को वहाँ पर जाने के लिए प्रेरित करता है।  कुछ इसी तरह से सांई की भी मार्केटिंग की गई है जो कि अब सबके सामने है।
अंत में सच तो यह है कि मनुष्य कितनी भी मन्नते कर ले  , दरगाह होकर आ जाय या फ़क़ीर के पास चला जाय , जो कर्म के आधार पर कष्ट उसके लिए लिखे हैं उसे कोई भी खत्म नहीं कर सकता, टाल नहीं सकता ।  वह कष्ट तो उसे भोगने ही होंगे।  यही प्रकृति का न्याय है।   

Wednesday 11 June 2014

माइग्रेन का आयुर्वेदिक इलाज


माइग्रेन का आयुर्वेदिक इलाज 
 मेरी जानकारी में  कुछ एक  ऐसे नुस्खे हैं जिनसे माइग्रेन से छुटकारा पाया जा सकता है।  आयुर्वेदिक  पद्धति से माइग्रेन के रोगी बहुत आसानी से ठीक हो जाते हैं। 

१. घरेलू उपचार में देशी गाय का ताजा घी सुबह-शाम दो  बूंद नाक में रुई से टपकाने से इस रोग में आराम होता है। 

२. पिसी हुई सफ़ेद मिर्च चौथाई चम्मच से भी कुछ कम , मिश्री या चीनी आधा चम्मच  , देशी घी आधा चम्मच , इन तीनो को मिला कर सुबह  नाश्ते से पहले खाये।  साथ में दूध या चाय भी ले सकते हैं।  पहले दिन से ही आराम महसूस होना शुरू हो जायेगा।  लगभग 10 से 15 दिन तक प्रयोग में ले।  

३. पोस्त दाना अर्थात खसखस एक चम्मच , 7 -8 मुनक्का बीज निकाल कर   , तरबूज के बीज एक चम्मच।  इन तीनो को रात में पानी में भीगा दे।  सुबह सिलबट्टे  पर  पीस ले। किसी छोटी कढ़ाई या पैन में  एक चम्मच देशी घी डाल कर ,  हल्का सा भून कर दूध के साथ सुबह नाश्ते से पहले खाए।  

४. सप्तामृत लौह किसी अच्छी आयुर्वेदिक दवाई बनाने वाली कम्पनी का ले।  एक से दो रत्ती , अगर गोली में है तो दो गोली सुबह -शाम देशी घी के साथ लेने से सभी तरह के मस्तिष्क विकारो से छुटकारा मिल जाता है।  
५. सुबह - सुबह योग करे , विशेष रूप  से अलोम -  विलोम 

६. अगर कब्ज की शिकायत रहती है तो एक चम्मच भर कर त्रिफला चूर्ण हलके गुनगुने जल से रात को सोने से पहले ले।  

यूं तो और बहुत से नुस्खे हैं परन्तु मै समझता हूँ कि इनमे से कोई एक - या दो को भी अगर अमल में लाएगा तो निश्चित रूप से उसे इस व्याधि से छुटकारा मिल सकता है।  

Wednesday 4 June 2014

क्या गोपी नाथ मुंडे की आकस्मिक मृत्यु के लिए दिल्ली ट्रैफिक पुलिस की कार्यप्रणाली भी जिम्मेदार है ?


कल बीजेपी नेता केंद्रीय मंत्री गोपी नाथ मुंडे की रोड एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई।  विभिन्न समाचार पत्रो में छपी खबरों  से पता लगा  कि घटना सुबह साढ़े छह बजे  की है।  उस समय रोड एकदम खाली थी।  रेड लाइट चल रही थी पर कोई पुलिस कर्मी   तैनात नहीं था।  मंत्री जी के ड्राइवर ने खाली सड़क देख रेड लाईट क्रास करने की चेष्टा की, तभी सामने से  इंडिका  कार आ रही थी। उसकी तरफ से ग्रीन लाइट थी। मुंडे की कार अचानक उसके सामने आ गई। इंडिका के ड्राइवर ने पूरी जोर से ब्रेक मारा, लेकिन तब भी कार घिसटते हुए मुंडे की कार से जा टकराई।

यह था कारण इस  एक्सीडेंट का।  अक्सर बहुत से एक्सीडेंट रेड लाईट के कारण ही होते हैं।  कुछ समय पहले मेरे घर के पास रहने वाले एक बहुत अच्छे दांतो के डाक्टर के साथ भी कुछ इसी तरह की घटना घटित  हुई थी।  वह रात के लगभग 11 -12  बजे दिल्ली में कहीं जा रहे थे ,  सड़क सुनसान थी , वह  रेड लाईट क्रॉस कर रहे थे , तभी एक्सीडेंट हुआ और वह कोमा में चले गए।  

अगर तिराहे या चौराहे पर ऐसे समय पर येलो लाईट जल रही हो तब लोग देखभाल कर सड़क पार करते हैं।  क्योकि उन्हें पता होता है कि इस समय ट्रैफिक कंट्रोल करने के लिए ट्रैफिक पुलिस नहीं है।   दिल्ली में अक्सर ऐसा देखने में आता है कि देर रात या बहुत सुबह भी रेड -ग्रीन लाइटे जल रही होती हैं ; हाँलाकि उस समय सड़को पर सन्नाटा पसरा होता है।  पुलिसवाले इनको चलता छोड़ कर चले जाते हैं।  ऐसे समय में इन लाइटों को चालू रखने का कोई अौचित्य नहीं है परन्तु क्या कर सकते हैं जबकि इतने पढ़े -लिखे अधिकारियो के दिमाग में यह बाते क्यों नहीं आती हैं।  
 इन्हे  तो पहले  यह समझना होगा कि इनको लगाया क्यों जाता है? पुलिस यह समझती है कि इन रेड लाईटो को लगा देंगे तो ट्रैफिक कंट्रोल हो जायेगा और एक्सीडेंट नहीं होंगे।  पर यह समझने को तैयार नहीं हैं कि जब सड़क पर ट्रैफिक ही बहुत कम या न के बराबर चल रहा है ऐसे समय पर इन्हे चालू रखना एक्सीडेंट को न्योता देना ही है।  
मैंने स्वयं इस बात को महसूस किया और अपने ग्वालियर यात्रा वृतांत में इस विषय पर लिखा भी था।  प्रस्तुत है  लेख के उस भाग के अंश।  

 "पाँच बजे से कुछ मिनट पहले ही  तैयार होकर  नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के लिए निकल पड़ा।  इस समय अच्छा - खासा अँधेरा छाया हुआ था।  सड़क पर एक - दो लोग ही  आते जाते दिखाई दे रहे थे।   बहुत ही कम ट्रैफिक इस समय सड़क पर चल रहा था।  
 सुबह के समय की खाली सड़क पर बिना किसी रूकावट के मोहन नगर से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन आधे घंटे में पहुँच गया।  हाँलाकि एक - दो जगह हमारे विद्वान पुलिसवालो ने रेड लाइट चालू कर रखी थी जिसका कि इस समय कोई औचित्य नहीं था।  ज्यादातर रेड लाइट को तवज्जो न देते हुए अपनी गाडी भगाए चले जा रहे थे और मै रेड लाइट  का सम्मान करता हुआ खड़ा सोंच रहा कहीं कोई पीछे से आकर ठोंक न दे।  लेकिन क्या किया जाय इन पुलिस वालो की सोंच का।  इनकी समझ को दाद देनी पड़ती है।  मै  समझता हूँ ऐसे समय पर दुर्घटना होने के ज्यादा चांस रहते हैं।"

मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि पुलिस अपने कार्यप्रणाली का फिर से गम्भीरता से विचार करे तभी वह सही मायने में जनता का भला कर पायेगी।  

Monday 14 April 2014

कल की चिंता क्यों


मनुष्य  हमेशा अपने भविष्य के लिए चिंतित रहता है।  वह  अतीत की सोचता है, भविष्य की सोचता है, क्योंकि डरता है वर्तमान से , वर्तमान के क्षण में जीवन भी है और मृत्यु भी। वर्तमान में ही दोनों है एक साथ है क्योंकि वह वर्तमान में ही मरेगा  और वर्तमान में ही जियेगा । न तो कोई भविष्य में मर सकता है और न भविष्य में जी सकता है।
क्या तुम भविष्य में मर सकते हो?  जब मरोगे, तब अभी और यहीं, वर्तमान के क्षण में ही मरोगे। आज ही मरोगे। कल तो कोई भी नहीं मरता। कल मरोगे भी तो कैसे?  कल क्या आता है कभी?  कल तो आता ही नहीं है। जब मर नहीं सकते कल में तो जियोगे कैसे?  कल का कोई आगमन ही नहीं होता। कल तो है ही नहीं। जो है वह अभी है और यहाँ है हमारे वर्तमान में , फिर कल की बात ही क्यों ? लेकिन फिर भी वह भविष्य में ही जीना चाहता है, भविष्य के लिए ही चिंतित है ; जबकि सत्य यही है की वह वर्तमान में जी रहा है।  

हमें अपने अतीत से  प्रेरणा लेनी चाहिए , भविष्य की योजनाएं बनाना चाहिए एवं वर्तमान का आनंद लेना चाहिए।  हम वर्तमान में जी रहे हैं इसलिए वर्तमान का आनंद लेना ही हमें जीवन जीने की कला सीखा सकता है।  अतीत की भटकन से दूर , भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है , उसके लिए जिज्ञासा न कर , वर्तमान को आनन्दमय बनाये।  यही है जीवन जीने की कला।  

Sunday 13 April 2014

बीजेपी के वरिष्ठ नेताओ द्वारा मोदी की आलोचना का अर्थ क्या है


आज एक वक्तव्य पढ़ा कि देश में  मोदी की लहर नहीं , बीजेपी की लहर है।  मजे की बात यह है कि इस तरह के वक्तव्य देने वाले किसी अन्य पार्टी के न होकर बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी हैं।  सोंचने की बात है की जोशी जी को इस तरह का वक्तव्य देने की क्या आवश्यकता पड़  गई।  शायद उनका अहं उनको यह स्वीकार करने नहीं दे रहा है कि इस बार उन्हें  अपने से कम उम्र के व्यक्ति के नेतृत्व में चुनाव लड़ना पड़  रहा है।  एक बात यह भी है कि बीजेपी में मुरली मनोहर जोशी जैसे कई वरिष्ठ नेता हैं जिन्हे मोदी की लोकप्रियता से ईर्ष्या होने लगी है।  अभी पिछले दिनों ही उमा भारती  ने भी कुछ इसी तरह का वक्तव्य देकर चर्चा का विषय बना दिया था  कि मोदी में अटल जैसी भाषण देने कि कला नहीं है।  मुझे लगता है कि ज्यो - ज्यो मोदी की लहर आंधी में तब्दील होने लगी है इन वरिष्ठ नेताओ के पेट में दर्द होने लगा है।  इन्हे लगने लगा है कि अगर मोदी की सरकार बन गई तो इन जंग लगे नेताओ की छुट्टी तय है।  इनके  बड़बोलापन पर अंकुश लगना तय है इसलिए अपनी अहमियत दर्ज करने के लिए इस तरह की सोंची - समझी रणनीति अपना रहे हैं।
सही बात तो यह है कि मोदी के प्रादुर्भाव होते ही बीजेपी में रक्तसंचार होना शुरू हुआ है अन्यथा जिस तरह से एक के बाद एक बीजेपी के गढ़ ध्वस्त हो रहे थे उससे तो लग रहा था बीजेपी नेपथ्य में चली जाएगी।  पहले उत्तराखंड से बीजेपी की छुट्टी हुई , फिर हिमाचल और कर्नाटक भी हाथ से चले गए।
यह वह समय था जबकि लग रहा था कि बीजेपी अपना परचम फहरायेगी परन्तु उसके उलट कांग्रेस इन राज्यों में बीजेपी को हटा कर सत्ता में आ गई।
यह वह समय था जबकि हिंदुस्तान की जनता कांग्रेस के कुशासन से तंग आ गई थी , तभी तो अन्ना हजारे के लोकपाल के लिए एक जान सैलाब उमड़ पड़ा था।  ऐसी परिस्थितियों में बीजेपी अपना बजूद नहीं कायम रख सकी और अपनी अंतर्कलह में ही फंसी रही ।
यह तो मोदी ही थे जिन्होंने इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी  गुजरात में अपना परचम लहराया।  अब  लोग मोदी में इस कुशासन से मुक्ति के लिए  उम्मीद की किरण देख रहे हैं; परन्तु बीजेपी के  इन  वरिष्ठ नेताओ का  आपसी द्वेष पार्टी के लिए आत्मघाती बनता जा रहा है।
यह प्रश्न बार - बार कौंधता है कि उस समय यह अडवाणी , जी , सुषमा जी , जोशी जी , उमा जी कहाँ थे जब बीजेपी के हाथो से राज्यों की सत्ता निकलते जा रही थी।  उस समय मुझे बहुत तकलीफ हुई थी कि किस तरह से एक के बाद एक घोटाले , केंद्र सरकार के , जनता के सामने आ रहे हैं , मंहगाई सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती जा रही है परन्तु लोग फिर भी कांग्रेस को चुन रहे हैं।  इस पराजय के बाद निराश होकर मैंने एक लेख भी लिखा था जिसका शीर्षक था क्या प्रजातंत्र मूर्खो का शासन होता है।
आज जब मोदी के नेतृत्व में राजस्थान वापस मिल गया , मध्यप्रदेश , छत्तीसगढ़ में विजय मिली दिल्ली में भी अगर केजरीवाल ने नौटंकी न की होती तो दिल्ली में भी बीजेपी की सरकार होती।  यह सब देख कर भी यह नेता गण अगर अपना स्वार्थ देख रहे हैं तो इनसे घृणित अन्य कोई कृत्य हो ही नहीं सकता।  मै समझता हूँ कि इन नेताओ पर , राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ही  इस तरह के बड़बोलेपन पर लगाम लगा सकती है।