Friday 24 March 2017

राजधानी एक्सप्रेस में फर्स्ट AC की यात्रा



कई लोगो में अहंकार तो कूट - कूट कर भरा होता है विशेष रूप से जब वह राजधानी के  फर्स्ट AC से सफर कर  रहा होता है।
लगता है वह सफर करने नहीं बल्कि फाइव स्टार होटल में खाने के लिए आये हैं।
अभी दो हफ्ते पहले ही बम्बई  जाना हुआ , आजकल रेलवे की  फ्लेक्सी फेयर स्कीम के कारण , ट्रेन के किराये से सस्ता  हवाई जहाज का किराया है इसलिए गया तो हवाई जहाज से ही था पर लौटने की टिकेट राजधानी के  फर्स्ट AC  में मिल गई तो उसमे ही बुक करवा ली ।
ट्रेन में जब पहुंचा तो अपने कूपे में मैं अकेला यात्री ही था , परन्तु गाड़ी चलने से कुछ पहले
 कूपे में एक लगभग 70 वर्षीय महिला का,  सह यात्री के रूप में आगमन हुआ।
अँग्रेजियत में लिप्त , बड़ी नफासत के साथ अपनी बर्थ पर विराजमान हो गई।
जी हाँ उसे नफासत  ही कहेंगे जो अक्सर उम्रदराज महिलाओ में पाई जाती है , लखनऊ की ।  
खैर गाड़ी चलने के थोड़ी ही देर में टीटी साहब टिकेट चेक करने आये, उनके साथ एक शख्स भी था ,टाई लगाये , उसके बारे  में बताया कि यह यात्रा के दौरान हमारी टेक केयर करेंगे।  बड़ी तहजीब से उस शख्स ने हमें नमस्कार किया और चला गया ।
गाड़ी अपनी तीव्र गति से दौड़ रही थी।  लगभग  छह बजे पेन्ट्री कार वालो ने  पहले शाम का स्नैक्स सर्व करना शुरू किया।  हम तो वेजेटेरियन हैं इसलिए शाकाहारी लिया लेकिन उक्त महिला ने नॉन-वेज  कॉन्टिनेंटल का ऑर्डर दिया।
 नॉन-वेज   के साथ खाना -पीना मुझे थोड़ा अटपटा  सा लगता है परन्तु यह ट्रेन हैं आपका घर नहीं।
लगभग साढ़े सात बजे सूप सर्व करने के लिए आ गया।
महिला ने अपने लिए कॉन्टिनेंटल सुप की मांग की , हम तो वही टॉमेटो सुप वाले थे।
लेकिन तभी  देखा , वह  महिला पेंट्री कार वाले पर नाराज हो रही हैं।
बोली "यह कौन सा तरीका है सर्व करने का , is this is the way to serve , call your manager.
अब वही टाई लगाए शख्स बैरे के साथ हाजिर हुआ।
आते ही विनम्रता से बोला क्या हुआ मैडम ?
"नहीं  आप मुझे यह बताये क्या यह तरीका है सर्व करने का ? बॉन चाइना  की क्रॉकरी क्यों नहीं है , नहीं - नहीं आप मुझे यह बतायें क्या फर्स्ट AC  में सफर करने वालो को ऐसे सर्व करते हैं।  हम कोई थर्ड या सेकंड AC  में सफर नहीं कर रहे हैं।
वह बोला मैडम यह ब्राण्ड न्यू  क्रॉकरी दिल्ली ऑफिस से आई है।  अब बॉन चाइना बंद कर दी है।
"अब बैरा हाथ जोड़ कर  बोला मैडम गलती हो गई , माफ़ कर दे "
मैडम बोली " नहीं आप क्यों  माफ़ी मांग रहे हैं , आपको जैसा कहा जायेगा आप वैसा करेंगे।  यह माफ़ी मांगेंगे।
अब वह टाई वाला भी हाथ जोड़ने लगा , माफ़ी मांगने लगा।
मेरी तो कुछ समझ में नहीं आया कि गड़बड़ हुई तो कहाँ हुई।  मुझे तो सब कुछ सामान्य लग रहा था।
हमने फर्स्ट AC  में सफर तो किया था पर राजधानी में पहली  बार कर रहा था।
मन ही मन हंस भी रहा था।
खैर इस सारे झगडे में  आठ बज गए।
रात नौ बजे खाना सर्व करना शुरू हुआ।
देखा दाल,  सब्जी सभी करीने से बाउल में डाल  कर ऊपर से एल्युमिनियम फाइल से  पैक करके ले कर आया।
महिला को  अलग टेबल लगा कर सर्व किया।
सोंचने लगा क्या जलबे हैं।
खाना समाप्त ही हुआ था  कि बड़ौदा स्टेशन आ गया।
यहाँ एक और यात्री हमारे कूपे में दाखिल हुआ।  अब हम तीन यात्री हो गए।  चौथी सीट खली ही रह गई।
लगा  अक्सर यात्रा करते हैं तभी TT एवं अन्य स्टाफ से हाय -हेलो कर रहा था।
बैरा तुरंत खाने का ऑर्डर लेने आ गया ,  बोले , चिकन फुल बॉयल्ड , लाइट फ्राई विथ कॉन्टिनेंटल सॉस  और भी जाने क्या - क्या ऑर्डर किया।
जिस तरह से वह फोन पर बाते कर रहे थे उससे लगा की हरियाणा कांग्रेस के कोई नेता हैं।
मैं बैठा - बैठा सोंच रहा था यह रेल गाड़ी का सफर कर रहे हैं या किसी फाइव स्टार होटल में खाने के लिए आये हैं।
करीब आध - पौन  घंटे के बाद बैरा खाना ले आया।
मेरी सीट नीचे  की थी,  दस बजने को हो रहे थे , मुझे भी लेटना था।
उन्होंने मुझसे रिक्वेस्ट की कि खाना खा कर ऊपर सीट पर चला जाऊंगा।
मैंने कहा ठीक है ,  कोई परेशानी जैसी बात नहीं , सफर में थोड़ा बहुत तो एडजस्ट करना ही  पड़ता है।
आधा खाना खाने के बाद फिर बैरे को बुलाया।
बैरा हाजिर , क्या हुआ ?
ऑर्डर दिया।  जाओ अपने कुक को बुला कर लाओ ,
सर पर बड़ी सी टोपी लगाए  कुक हाजिर हुआ।
आते ही बोला "क्या हुआ  सर ?"
सर  नाराज होते हुए बोले " ऐसे बनाते हैं चिकेन ?"  यह फुल बॉयल्ड चिकेन है ? मैंने बोला था "चिकन फुल बॉयल्ड , लाइट फ्राई विथ कॉन्टिनेंटल सॉस  "
ऐसा होता है क्या चिकेन?
फिर वही साहब की लल्लो -चप्पो।
साहब का पेट तो भर ही गया था ,  ऑर्डर दिया "ले जाओ इस बचे- खुचे खाने को।  "
 सोंच रहा था ,  केवल 340 रूपये ही तो दिए है खाने के , इतने में तो  रेस्टोरेन्ट में एक प्लेट सब्जी ही आएगी   ।
सुबह बैरा बेड  टी लेकर आया , ब्रेक फ़ास्ट का ऑर्डर लेने लगा।
हम तो वही शाकाहारी थे, महिला  ने कॉन्टिनेंटल की मांग की।  और तीसरे यात्री जोकि स्वघोषित कांग्रेसी नेता थे।
ऑर्डर में लिखाया , बॉयल्ड एग छिलका छिल कर लाना है साथ ही साथ थोड़ा सा पोहा , एक कटलेट , ब्रेड सैंडविच और जाने क्या।
यह सारा वाकया देख दिमाग में यही आ रहा था फर्स्ट AC  में सफर करने वालो अपने आप को किसी नबाब से कम नहीं  समझते हैं अगर रिजर्वेशन मिल गया , वरना तो TT  के आगे हाथ जोड़े,  खड़े मिलते हैं।  

Saturday 7 January 2017

रेलवे के अकर्मण्य अधिकारी


अधिकारी किस तरह से मैनेजमेंट को सब्जबाग दिखा कर अपना उल्लू साधते हैं इसका एक किस्सा है।
बात  करीब तीस वर्ष  पहले एक टीवी कंपनी की  है  , उस समय कम्पनी की दिल्ली की बिक्री लगभग 25 लाख़  महीने की थी , मार्केटिंग  स्टाफ पर हर समय कंपनी की सेल बढ़ाने का दबाव रहता है। इसीलिए वे तरह - तरह की स्कीम लाते रहते थे।  एक बार   उन्होंने  एक नई स्कीम डीलरों को विदेश यात्रा करवाने की,   लांच की।   यह स्कीम दो महीने के लिए थी और  इस   स्कीम में  दिल्ली  की सेल 25 लाख़ महीना से बढाकर 50 लाख करनी थी यानि कि दो महीने में एक करोड़ की   सेल  करना था , सभी डीलरों को टारगेट दे दिया गया कि जो डीलर इसमें सफल हो जायेंगे उन्हें कंपनी के खर्च पर हांगकांग घुमाने ले जाया जायगा।  आज से तीस वर्ष पहले हांगकांग घूमने जाना बड़ी बात हुआ करती थी।  कई  डीलरों के पास उस समय पासपोर्ट तक नहीं थे , उनके पासपोर्ट बनवाये गए।   मैनेजमेंट  ने भी इस स्कीम को अप्रूव कर दिया क्योकि कम्पनी की  सेल दोगुना हो  रही थी।  अब मार्केटिंग वाले बोले कम्पनी की सेल दोगुना हो रही है तो  डीलरों की क्रेडिट लिमिट बढाओ।  मैनेजमेंट ने  वह भी अप्रूव कर दी ।
दो महीने पूरा होते  - होते मार्केटिंग वालो ने क्रेडिट पर माल देकर  ज्यादातर डीलरों का  टारगेट पूरा करवा दिया।  अब क्या था, स्कीम सक्सेस फुल हुई ,  सभी बहुत उत्साहित थे।  मार्केटिंग  टीम ने फटाफट सबके टिकेट बुक करवाये और डीलरों को लेकर एक हफ्ते की  हांगकांग की सैर के लिए निकल पड़े।
वहां से लौट के आने बाद सारे के सारे बड़े खुश होकर अपनी पीठ थपथपा रहे थे।  मैनेजमेंट भी खुश , कमाल कर दिया लड़को ने , दो महीने में कम्पनी के सेल दोगुनी हो गई।  अब अन्य राज्यो की मार्केटिंग टीम भी इस स्कीम को लांच करने में लग गई।
अब बारी थी मेरी , स्कीम खत्म होने के दो महीने के बाद ऑडिट शुरू किया ,  तो पता लगा अगले दो महीने में कंपनी की सेल घट कर 50 % ही रह गई।  मतलब यह कि जहाँ कंपनी हर महीने अपने टीवी 25 लाख के बेचती थी  वह अब केवल 10 से 12 लाख  के बेंच रही है इसके अतिरिक्त डीलरों पर उधार अलग से बढ़ गया। मैने इसे बेहतर तरीके से समझाने के लिए  ग्राफ पेपर  का सहारा लिया , एक बढ़िया सा चार्ट तैयार करके मैनेजमेंट के सामने रखा गया।  तब जाकर मार्केटिंग टीम का खेल  समझ में आया कि क्रेडिट लिमिट बढ़ा कर स्टॉक को डीलरों के पास डंप कर दिया गया , कंपनी को बताया गया सेल बढ़ रही है और इस तरह से  सारे के सारे डीलरों के साथ कम्पनी के खर्च पर हांगकांग की सैर कर आये।  कंपनी को क्या मिला करीब 4 लाख रूपये का अतिरिक्त खर्च।

कुछ ऐसा ही रेलवे में हो रहा है,  अधिकारी   यह तो बता रहे हैं कि फ्लेक्सी फेयर स्कीम से रेलवे को तीन महीने में 130 करोड़ का फायदा हुआ है और इसीलिए उसको जारी रख रहे हैं।  लेकिन यह नहीं बता रहे हैं कि  इस स्कीम की वजह से जो सीटे खाली रह गई,  उनसे कितने हजार करोड़ का नुकसान  रेलवे को हुआ है।
अब कोई मेरे जैसा होता तो पहले तो यह डाटा निकलवाता कि पिछले तीन महीने में कितनी सीटे खाली रह  गई और उनसे कितने किराये का नुकसान  हुआ. उसके बाद सभी को बर्खास्तगी का नोटिस थमा देता।  लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है।