यूँ तो नौटंकी भारतवर्ष के अलग- अलग राज्यों में कलाकार अलग- अलग ढंग से प्रदर्शित करते हैं। यहाँ मै अपने शहर शाहजहाँपुर में होने वाली नौटंकी की बात कर रहा हूँ। जो कि बचपन की भूली - बिसरी यादो में से एक है ।
आज से तीस - चालीस साल पूर्व मनोरंजन के सीमित साधनो में से एक साधन थी नौटंकी। आमतौर पर गर्मी या बरसात के दिनों में ही नौटंकी का आयोजन होता था।
नौटंकी के लिए कोई स्थान विशेष नहीं होता था। शहर के किसी तिराहे या चौराहे पर नौटंकी का आयोजन किया जाता था । मोहल्ले के लोग आपस में चंदा इकठ्ठा करके नौटंकी करने वाले कलाकारों से नौटंकी करवाते थे। जहाँ तक मुझे याद है उस समय 50 /- से 100 /- रूपये में ही इसका आयोजन हो जाता था। नौटंकी रात के करीब ग्यारह- बारह बजे शुरू होती थी और पौ फटने तक चलती थी। इसके विषय होते थे लैला - मजनू , सुल्ताना डाकू , आल्हा - उदल , राजा हरिश्चंद्र, अमर सिंह राठौर आदि। इनमे से किसी एक विषय पर नौटंकी खेली जाती थी।
जिस जगह नौटंकी होने को होती थी उस तिराहे या चौराहे पर दिन के समय एक सफ़ेद चादर तान दी जाती थी। जिससे उस रास्ते से आने- जाने वाले लोगो को पता लग जाता था।
नौटंकी में बहुत ही सीमित पात्र होते थे जिनमे से दो- तीन स्त्री और दो- तीन पुरुष होते थे। वही सब तरह के रोल अदा करते थे। कहानी दिलचस्प रखने के लिए वीरता, प्रेम, मज़ाक़, नाच - गाना मिलाया जाता था। कलाकार का प्रयास रहता था कि सभी चीजो में तारतम्य बना रहे । नाच - गाना इसका आवश्यक अंग था। नाच - गाने के बीच में कई दर्शक रूपये देते थे। रूपये देने वाला दर्शक अपनी जगह से ही रुपया दिखता था जिसे जोकर या भांड आकर ले लेता था और उसका नाम पूछ कर नाचने वाली को बता देता था । नाचने वाली उसका नाम पुकार कर उसके नाम से ठुमका लगा देती थी। दर्शको द्वारा दिए जाने वाले रूपये -पैसे ही इन नौटंकी के कलाकारों की आय का मुख्य साधन थे।
नौटंकी की सबसे विशेष बात थी इसका नगाड़ा। यह नगाड़ा ही नौटंकी का विशेष वाद्य यंत्र हुआ करता था। वादक एक बड़े नगाड़े के सामने एक छोटा नगाड़ा रख कर बजाता था। वही वादक अच्छा माना जाता था जिसके नगाड़े की गूंज रात के सन्नाटे में कई कोस तक चली जाती थी। नगाड़े के अतिरिक्त हारमोनियम एवं तबला का प्रयोग भी किया जाता था।
उस जमाने में टेन्ट हाउस वगैरह तो होते नहीं थे , रात ढलते ही , अड़ोस - पड़ोस रहने वालो के यहाँ से तख्त इकठ्ठे करके सड़क के बीच में नौटंकी का स्टेज बनाया जाता था। पुरुष - बच्चे स्टेज के चारो तरफ बैठ कर एवं महिलाये पड़ोस के घर के छज्जो या छतो से नौटंकी देखते थे।
सबसे बड़ी बात , कि रात में, उस रास्ते से गुजरने वाले ट्रक , बस के ड्राइवर भी अपने ट्रक या बस को एक साइड में खड़ा करके नौटंकी देखते थे। कोई किसी तरह का विरोध नहीं करता था कि नौटंकी के कारण रास्ता रोक रखा है या फिर अड़ोसी - पड़ोसियों को रात में उनकी नींद में खलल पड़ने से विरोध करना पड़े । आज के समय में तो जो बाहुबली हैं वह अपने आप ही निपट लेते अन्यथा अन्य पुलिस बुला लेते या फिर कोर्ट केस कर देते।
क्या जमाना था दुसरो की ख़ुशी में खुश , दुसरो के गम में दुःख। कितनी गुंजाईश लोगो में होती थी लोगो के दिलो मे।
वक्त के गुजरने के साथ ही साथ नौटंकी भी गुजरे वक़्त यादो में सिमट गई है।