कई बार कुछ फिल्मी गाने ऐसे होते हैं कि उनके बोल बहुत समय तक स्म्रतिपटल मे स्थान बना लेते हैं. मेरे इस लेख का शीर्षक भी एक फिल्मी गाने के ही बोल हैं जो कि आजकल के नवीनतम घटनाक्रम पर सही बैठता है. बात चल रही है रॉबर्ट वढेरा और नितिन गडकरी की. एक भारतीय जनता पार्टी के अध्यछ हैं तो दूसरे सत्तारूढ़ सरकार के मुखिया के दमाद. अरविन्द केजरीवाल ने पहले राबर्ट वढेरा को कटघरे मे खड़ा किया तदुपरान्त नितिन गडकरी को. रॉबर्ट वढेरा के मामले मे तो सारे के सारे मंत्री
, कांग्रेस के प्रवक्ता , महासचिव एक स्वर मे क्लीन चिट देते नजर आये पर जैसे ही नितिन गडकरी का मामला सामने आया सारे के सारे कांग्रेस के प्रवक्ता और मंत्री बिना कोई छान -बिन के जांच बैठाने को आतुर हो गये. परंतु ऐसी आतुरता रॉबर्ट वढेरा या सलमान खुर्शीद के मामले मे नही दिखाई गयी.
सारे के सारे न्यूज पेपर मे नितिन गडकरी छाये हुए हैं, रॉबर्ट वढेरा के बारे मे कोई बात नही कर रहा है. आनन-फानन से हरियाणा सरकार ने कमेटी बैठा कर रॉबर्ट वढेरा को क्लीन चिट भी दे दी.
दूसरी तरफ नितिन गडकरी साहब हैं, जिनकी अध्यछ की सीट ही खतरे मे पड गयी है. आरोप भी उन पर बहुत बढिया – बढिया लगे हैं. उन्होने अपने ड्राइवर को डाइरेक्टर बनाया हुआ है. अपने अकाउंटटेंट को अपनी कम्पनियो का डाइरेक्टर बनाया हुआ है. उनकी कम्पनी के रजिस्टर्ड आफिस का पता झुग्गी-झोपड़ी का है आदि-आदि.
यह खबर आते ही सारे के सारे न्यूज पेपर मे प्रतिक्रियो की तो झड़ी ही लग गयी. व्यंग लेखक को बढिया मसाला मिल गया. कहने लगे हमे भी ड्राइवर बना लो हम भी डाइरेक्टर बन जायेंगे. अब ऐसे लोगो को ज्यादा कुछ कम्पनी लॉ के बारे मे जानकारी तो होती नही है बस गाल बजाने से मतलब होता है. अरे आप तो नितिन गडकरी की बात कर रहे हैं बहुत से लोग अपने आफिस मे पानी पिलाने वाले को भी अपनी किसी कम्पनी का डाइरेक्टर बना देते हैं. पता नही क्यो ऐसी खबर से सबके पेट मे दर्द शुरु हो जाता है. यह तो अपनी- अपनी सुविधा का सवाल है. मेरी कम्पनी है मै किसको डाइरेक्टर बनाता हूँ और किसको नही, मेरी मर्जी.कौन सा कानून कहता है कि हम अपने ड्राइवर को , अपने नौकर को अपनी कम्पनी का डाइरेक्टर नही बना सकते.
अरे इसी कांग्रेस सरकार को ही देखो. प्रतिभा पाटील को राष्ट्रपति बना दिया. अपनी सुविधा ही तो देख कर बनाया. बाद मे कांग्रेस के ही विधायक ने प्रतिभा
पाटील का कच्चा चिट्ठा खोल कर रख दिया.
तो भई सही बात है ना “ हम करे तो साला करेक्टर
ढीला है”
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