Wednesday 31 October 2012

अरविन्द केजरीवाल बनाम नमक का दरोगा



आजकल मीडिया मे अरविन्द केजरीवाल जोर-शोर से छाये हुये हैं. जो उनके समर्थक है वह उनकी तारीफ कर रहे हैं और जो कांग्रेस के समर्थक है वह बुराई. बात भी सही है इंसान वही सुनना पसंद करता है जो उसे अच्छा लगे.
अरविन्द केजरीवाल को लेकर मेरे मन मे चिंतन शुरु हो गया. चिंतन के बाद जो बात निकल कर आई वह यह कि व्यक्ति दिग्भ्रमित है. सबसे पहले अर्जुन की तरह अपना लक्ष्य चुनना चाहिये था और तदुपरान्त उसको भेदना चाहिये था. लक्ष्य का अर्थ है उसे  ना तो पेड़ दिखना चाहिये था और ना ही उस पर बैठी चिड़िया. दिखना चाहिये था पेड़ पर बैठी चिड़िया की आंख . पर समस्या यह है वह पेड़ देख रहा है और उस पर बैठी हुई बहुत सी चिड़िया , कबूतर , तोते , कौए आदि आदि. और कभी कौए पर  निशाना लगा रहा है तो कभी तोते पर. अभी क्या है कभी कांग्रेस पर वार करता है फिर उसको बीच मे ही छोड़ कर भाजप पर वार करने लगता है. अब अगर सभी को अपना दुश्मन बना लेगा तब तो लड़ाई जीत ही नही सकता. सारे मिल कर इस पर वार करेंगे
राजनीति का पहला अध्याय है पहले अपना लक्ष्य चुनो. और यही बात इसको समझ नही आ रही है.

हमारे पुराण और हमारा इतिहास हमे बहुत कुछ शिक्षा देता है. इसको चाहिये था  चाणक्‍य की तरह एक गुरु की, जो कि सही मार्ग दर्शन कर सके. महाभारत का युद्ध क्या पांडव जीत सकते थे अगर उनके साथ कृष्ण रूपी गुरु ना होते. राजनीति मे प्रवेश करना भी एक तरह से युद्ध  है और इस युद्ध मे अगर एक एक कर दुश्मन बनाये और फिर उसे पराजित करेगा तब तो जीत होगी पर अगर बहुत से दुश्मन बना लेगा और उनसे एक साथ  युद्ध करेगा तब इसको हार का सामना करना पड़ेगा.
अभी तो मुंशी प्रेमचंद कि  कहानी नमक का दरोगा की याद आ रही है, जिसमे अदालत नमक के दरोगा वंशीधर पर व्यंग्य कसते हुए कहती है नमक से हलाली ने उसके विवेक और बुध्दि को भ्रष्ट कर दिया”  कुछ ऐसा ही अरविन्द केजरीवाल के साथ है.

Monday 29 October 2012

और राजा इन्द्र ने तपस्या भंग कर दी.


हमारे पुराणो मे कई सारी ऐसी कथाये हैं जिनमे बताया गया है कि भगवान से कुछ प्राप्त करने के लिये जब कोई मुनि, ऋषि, या राजा तपस्या करते थे तब सबसे पहले देवताओ के राजा इंद्र को डर हो जाता था कि कहीं तपस्या करने वाला यह व्यक्ति भगवान से मेरा सिंहासन ना मांग ले. ज्यो-ज्यो वह कठिन तपस्या की ओर बढ़ता था राजा इंद्र उसकी तपस्या को भंग करने के लिये कभी अग्नि को भेज कर उसके चारो तरफ अग्नि लगवा देते थे, तो कभी सूर्य को तो कभी वायु को या स्वयं वर्षा को भेज देते थे. कुल मिलकर उद्देश्य उसके तप को भंग करना ही होता था.
आज के समय मे भी कुछ ऐसा ही है. कोई बदलाव नही आया है. सब कुछ वैसे का वैसा ही है अंतर यह है कि आज राजा इंद्र की जगह प्रधान मंत्री हैं और अग्नि, वायु, सूर्य वर्षा की जगह उनके मंत्री हैं. और तपस्या करने वाले बाबा रामदेव या अन्ना हजारे जैसे लोग हैं. जो कि अनशन करने बैठते हैं और ज्यो –ज्यो ही उनके अनशन को जनता का समर्थन मिलता है त्यो- त्यो ही इंद्र रूपी सरकार के मुखिया , प्रधान मंत्री को अपनी गद्दी डगमगाती नजर आने लगती है और अनशन को भंग करने के लिये कभी पुलिस द्वारा लाठी चार्ज करवाते हैं या पानी की कैनाल से भीड़ को तितर-बितर करते हैं. मंत्री लोग वायु, सूर्य, अग्नि का दायत्व निभाते हुए तरह –तरह से व्यवधान डालते हैं. किसी ना किसी तरह से उसके तप रूपी अनशन को भंग करवा दिया जाता है. किस बुरी तरह से इन लोगो के अनशन को खत्म करवाया गया यह तो हम सब जानते ही हैं.
जय हो राजा इंद्र की

Sunday 28 October 2012

एक फैसला अमेरिकी अदालत का, रजत गुप्ता


एक फैसला अमेरिकी अदालत कासाल भर पहले की बात है जब रजत गुप्ता जो कि अमेरिका मे बहुत ही हाई प्रोफाइल स्टेटस के प्रभावशाली व्यक्ति हैं, को न्यूयार्क की पुलिस ने breach of trust के आरोप मे गिरफ्तार किया था. आरोप था कि उन्होने गोल्डमैन सॉक्स की गुप्त सूचनाओं को हेज फंड संस्थापक राज राजारत्नम के पास पहुँचाई . न्यूयार्क की अदालत ने उन्हे शायद 5 लाख डालर के भुगतान करने पर जमानत दे दी थी. उस समय संचार मंत्री ए. राजा 2 जी स्केम मे और सुरेश कलमाड़ी कामन वेल्थ गेम्स घोटाले मे न्यायिक हिरासत मे जेल मे थे रजत गुप्ता को जमानत दिये जाने की खबर के उपर केन्द्र सरकार मे मंत्री सलमान खुर्शीद और कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह के अखवार मे कमेंट्स छपे थे. अमेरिका की अदालत के फैसले की वाह वाही करते हुए यहाँ की न्याय प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए कहा था कि यहाँ भी इस तरह से इन लोगो को जेल ना भेज कर जमानत दे देनी चाहिये थी. हाँलाकि कुछ दिनो बाद ही इन लोगो को जमानत मिल भी गयी.
अब जब की साल भर मे ही वहां की अदालत का फैसला आ गया, जिसमे रजत गुप्ता को 2 साल की सजा और 50 लाख डालर के जुर्माने की सजा दी गयी. देखा जाय तो हिन्दुस्तान मे तो शायद ही इसे इतना बड़ा अपराधिक जुर्म माना जाता और इतने प्रभावशाली व्यक्ति को सजा मिलती. परंतु अमेरिका मे साल भर मे ही नतीजा सबके सामने आ गया.
प्रश्न उठता है क्या हिन्दुस्तान मे ब्रीच ऑफ ट्रस्ट पर इतने प्रभावशाली व्यक्ति को सजा मिल सकती है.
अब कोई मंत्री या महासचिव यह नही कह रहा है कि यहाँ भी अमेरिकी अदालत की तरह ए. राजा, सुरेश कलमाड़ी के भी केस का फैसला होना चाहिये.
उस समय इन लोगो को जेल से बाहर निकलवाना चाहते थे इसलिये अमेरिकी अदालतो की तरफदारी की जा रही थी पर अब कोई भी नही बोल रहा है.
मै तो कहता हूँ कोई लोकपाल की जरूरत नही पड़ेगी अगर साल भर के अंदर -अंदर हर तरह् के मुकदमे का फैसला हो जाय पर दुर्भाग्य यह है कि ऐसा हो नही पा रहा है इसलिये ही रोज नये-नये घपले और घोटाले होते जा रहे हैं.

हम करे तो साला करेक्टर ढीला है




कई बार कुछ फिल्मी गाने ऐसे होते हैं कि उनके बोल बहुत समय तक स्म्रतिपटल मे स्थान बना लेते हैं. मेरे इस लेख का शीर्षक भी एक फिल्मी गाने के ही बोल हैं जो कि आजकल के नवीनतम घटनाक्रम पर सही बैठता है. बात चल रही है रॉबर्ट वढेरा और नितिन गडकरी की. एक भारतीय  जनता पार्टी के अध्यछ हैं तो दूसरे सत्तारूढ़ सरकार के मुखिया के दमाद. अरविन्द केजरीवाल ने पहले राबर्ट वढेरा को कटघरे मे खड़ा किया तदुपरान्त नितिन गडकरी को. रॉबर्ट वढेरा के मामले मे  तो सारे के सारे मंत्री , कांग्रेस के प्रवक्ता , महासचिव  एक स्वर मे क्लीन चिट देते नजर आये पर जैसे ही नितिन गडकरी का मामला सामने आया सारे के सारे कांग्रेस के प्रवक्ता और मंत्री बिना कोई छान -बिन के  जांच बैठाने को आतुर हो गये. परंतु ऐसी आतुरता रॉबर्ट वढेरा या सलमान खुर्शीद के मामले मे नही दिखाई गयी.
सारे के सारे न्यूज पेपर मे नितिन गडकरी छाये हुए हैं, रॉबर्ट वढेरा के बारे मे कोई बात नही कर रहा है. आनन-फानन से हरियाणा सरकार ने कमेटी बैठा कर रॉबर्ट वढेरा को क्लीन चिट भी दे दी.
दूसरी तरफ नितिन गडकरी साहब हैं, जिनकी अध्यछ की सीट ही खतरे मे पड गयी है. आरोप भी उन पर बहुत बढियाबढिया लगे हैं. उन्होने अपने ड्राइवर को डाइरेक्टर बनाया हुआ है. अपने अकाउंटटेंट  को अपनी कम्पनियो का डाइरेक्टर बनाया हुआ है. उनकी कम्पनी के रजिस्टर्ड आफिस का पता झुग्गी-झोपड़ी का है आदि-आदि.
यह खबर आते ही सारे के सारे न्यूज पेपर मे प्रतिक्रियो की तो झड़ी ही लग गयी. व्यंग लेखक को बढिया मसाला मिल गया. कहने लगे हमे भी ड्राइवर बना लो हम भी डाइरेक्टर बन जायेंगे. अब ऐसे लोगो को ज्यादा कुछ कम्पनी लॉ के बारे मे जानकारी तो होती नही है बस गाल बजाने से मतलब होता है. अरे आप तो नितिन गडकरी की बात कर रहे हैं बहुत से लोग अपने आफिस मे पानी पिलाने वाले को भी अपनी किसी कम्पनी का डाइरेक्टर बना देते हैं. पता नही क्यो ऐसी खबर से  सबके पेट मे दर्द शुरु हो जाता है. यह तो अपनी- अपनी सुविधा का सवाल है. मेरी कम्पनी है मै किसको डाइरेक्टर  बनाता हूँ और किसको नही, मेरी मर्जी.कौन सा कानून कहता है कि हम अपने ड्राइवर को , अपने नौकर को अपनी कम्पनी का डाइरेक्टर नही बना सकते.
अरे इसी कांग्रेस सरकार को ही देखो. प्रतिभा पाटील को राष्ट्रपति बना दिया. अपनी सुविधा ही तो देख कर बनाया.   बाद मे  कांग्रेस  के ही  विधायक ने प्रतिभा पाटील का कच्चा चिट्ठा खोल  कर रख दिया.
तो भई सही बात है ना हम करे तो साला करेक्टर  ढीला है

Friday 19 October 2012

Mussoorie- Dhanaulti


मसूरी-धनोल्टी
बात है अगस्त - 2009 की जब हम आफिस स्टाफ के लोगो ने पहाड़ो पर घूमने जाने का प्रोग्राम बनाया. इस तरह के घूमने जाने के  प्रोग्राम जब कई लोग साथ मिल कर बनाते हैं तब सभी के अपनेअपने destination  होते हैं.अलगअलग रायफिलहाल ज्यादा माथा- पच्ची करने की जरूरत  नही पड़ी मैने कहा  धनोल्टी  चलते  है   पर  साथ ही साथ  इसमे केम्पटी  फाल ऋषिकेश, मसूरीसहस्त्रधाराहरिद्वार भी उसी रास्ते पर हैं तो वहां भी चलेंगे. अगस्त  के महीने मे 15 अगस्त और जन्माष्टमी की छुट्टी  एक साथ मिल रही थी. .इस वर्ष 14 अगस्त शुक्रवार के दिन  जन्माष्टमी  पड रही थी अगले दिन शनिवार को 15 अगस्त की छुट्टी थी उसके अगले दिन रविवार थाइस तरह से हम लोगो के पास 3 दिन   थे. जैसा कि आमतौर पर इस तरह के टूर प्रोग्राम मे होता है कुछ लोग जो कि पहले चलने को तैयार होते हैं वह पीछे हट जाते हैं और कुछ जुड़ जाते हैं. कुल मिला कर हम  23 लोगो का जाने का प्रोग्राम बना इनमे से  कुछ एक के परिवार के सदस्य भी शामिल थे. 23 लोगो के  जाने के लिये  एक 35 सीटर  बस तय कर ली. इससे पहले धर्मशाला के टूर मे भी हम लोग बस ले कर ही गये थे, इसलिये 2X2 की  पुश बॅक बस से चलना तय हुआ.  23000 रुपये मे बस तय हो गयी.
हर टूर मे कुछ ना कुछ नया सीखने को मिलता है. इस बार तय हुआ  रास्ते मे खाने – पीने, नाश्ते का  सामान  खरीद कर साथ ले चलेंगे  साथ ही साथ पानी की 20 लीटर की दो- तीन बोतले भी बस मे रख लेंगे.
13 अगस्त को रात 10 बजे बस हमारे नोऐडा आफिस  आ गयी. ज्यदातर  स्टाफ के लोग सुबह आफिस आते समय ही  अपना सामान ले कर आ गये थे. हम तीन  लोग थे मैने कहा  बस तो मोहन  नगर होकर ही जायेगी, (मै राजेंद्र नगर मे रहता हूँ जो  मोहन नगर के बहुत नजदीक है.) बस को लेकर मेरे राजेंद्र नगर घर आ जाना वही पर सब लोग चाय  पी कर  चलेंगे  साथ ही साथ पानी की बोतले और दूसरा सामान  भी उसमे रख लेंगे. इस बात से किसी को कोई दिक्कत नही थी. बस रात करीब 1 बजे घर पहुंची पता लगा   बस ड्राइवर जानबूझ कर देर से चला क्योकि बस  दिल्ली की थी अगर वह रात बारह बजे से पहले दिल्ली बॉर्डर पार करता तो उसे एक दिन का अतिरिक्त टॅक्स देना होता है इसलिये सभी ड्राइवर रात 12 बजे के बाद ही एक राज्य से दूसरे राज्य का  बॉर्डर पार करते हैं. ऐसा धर्मशाला टूर मे भी ड्राइवर ने किया था. चाय
 पी कर सभी  आगे के सफर के लिये चल दिये. 
प्रोग्राम यह बना था कि पहले दिन हम लोग मसूरी मे रुकेंगे और उसी दिन केम्पटी फाल  घूम आयेंगे. दूसरे दिन धनोल्टी जायेंगे. अगर मसूरी मे होटेल अच्छा मिल गया तो शाम को वापस जायेंगे अन्यथा धनोल्टी मे रुकेंगे और तीसरे दिन सहस्त्रधारा,   ऋषिकेश और हरिद्वार होते हुए वापस दिल्ली जायेंगे.
मसूरी से कुछ किलोमीटर पहले मौसम एकदम सुहाना हो गया. झमाझम वारिश शुरु हो गयी. ड्राइवर ने इस सुहाने मौसम मे  चाय पीने के लिये बस रोक दी. कुछ लोग बारिश मे  बस से नीचे उतर कर चाय  की चुस्कियो के साथ मौसम का आनन्द लेने लगेवैसे भी सभी दिल्ली की गर्मियो से भाग कर ही इन जगहो पर आनंद लेने पहुंच जाते हैं.
इंडो-तिब्बत पुलिस हेड क्वॉर्टर के पास होटेल के इंतजार मे आफिस स्टाफ 

सुबह के 8 बजे  होंगे जब हमारी बस मसूरी पहुंच गयी. ड्राइवर ने बस को मसूरी के बाहर लाइब्रेरी चौक  वाले मार्ग से पहले इंडो-तिब्बत पुलिस हेड क्वॉर्टर के पास रोक दी और  बोला जा कर होटेल देख  आओअंदर ज्यादा समय बस खड़ी नही कर सकता. मैने आफिस स्टाफ के 2-3 लडको को होटेल देखने  के लिये भेजा. तब तक सभी बस मे आराम  करते रहे कुछ एक बस के  आस-पास टहलते रहे. एक घंटे से ज्यादा समय उन लोगो को गये हो गया पर उन्हे कोई होटेल नही मिला. अब मै स्टाफ के दो लोगो के साथ अलग से होटेल ढूढने निकला. जिधर जाता वही फुल का बोर्ड मिल जातावैसे भी पहाड़ो  पर होटेल ढूढना भी इतना आसन नही होता हैस्थानीय लोगो से पूछा और उनके बताये हुए जगहो पर गया. पर होटेल मिलना एक समस्या बन गया. हमारे जैसे बहुत से लोग  मसूरी की सडको पर अपना सामान लिये हुए होटेल की तलाश मे घूम रहे थे. सभी परेशान थे पर करे तो करे क्या. यही समस्या सबके सामने थीमै 3-4 वर्ष पहले भी यहाँ आफिस स्टाफ के साथ आया था परंतु तब होटेल मिलने की कोई समस्या नही आई थी. मसूरी की सडको पर भीड़ ही भीड़ नजर  रही थी  मसूरी मे एक समस्या और है यहाँ होटेल तो बहुत हैं पर उनके एजेंट  नही है. अगर नैनीताल जाओ तो बस अड्डे पर ही ढेरो एजेंट  होटेल दिलवाने के लिये मिल जाते हैं जिस रेंज का कमरा चाहिये मिल जायेगा. थक हार कर हमलोग वापस बस मे आये. अभी तक हमारी पहली टीम वापस नही आई थी. मैने उन लोगो को फोन मिलाया पता लगा अभी तक होटेल नही मिला है,. इस समय सुबह के 11 बज रहे थे. मुझे लगा अब यहाँ पर समय खराब करना उचित नही है, धनोल्टी चलते हैं वर्ना  अगर यहाँ के निराश लोग वहां पहुंच गये तब वहां  भी नही मिलेगा. यह सोंच कर उन लोगो को वापस बुलाने के लिये फोन  किया पर वह लोग हार मानाने को तैयार नही थे. बार-बार फोने करने के बाद करीब एक घंटे के बाद वह लोग लौटे. अब मैने बस ड्राइवर को धनोल्टी चलने के लिये निर्देश दिये. यहाँ से वापस बस लोटने के लिये ड्राइवर ने बस को मसूरी का एक चक्कर लगा कर वापस धनोल्टी के लिये चल दिया.

धनोल्टी का रास्ता

 धनोल्टी का रास्ता



मुझे तो धनोल्टी का रास्ता काफी  खतरनाक लगा. सड़क मसूरी वाले रास्ते की तरह चौड़ी नही थी. पतली सी सर्पीली सड़क पर हमारी बस धीमी गति से ही चढ़ाई पर चढ रही थी. बरसात के मौसम होने के कारण हर तरफ हरियाली थी. परंतु कई स्थानो पर सड़क टूटी हुई थी. वैसे भी कुमायूँ काफी हरा-भरा है. 


धनोल्टी का रास्ता


रास्ते मे ड्राइवर धनोल्टी  जाने का रास्ता भूल गये और बस दूसरे रास्ते पर चल दी. काफी आगे जाने पर ड्राइवर को अपनी गलती का अहसास हुआ तब दूसरी तरफ से आते एक गाड़ी वाले से पूछने पर पता लगा यह धनोल्टी का रास्ता नही है. पहाड़ो पर पतली सी सड़क पर बस को वापस मोड़ना भी आसन काम नही होता है. एक-दो किलोमीटर  जाने के बाद थोड़ी जगह मिली तब वापस मोड़ कर धनोल्टी के रास्ते पर चले. रास्ते मे कई लोग जो अपनी कार या टैक्सी से जा रहे थे रुक कर यहाँ की खूबसूरती को निहार रहे थे. करीब 3 बजे बस धनोल्टी से कुछ किलोमीटर पहले ड्राइवर ने  सड़क के किनारे होटेल बने देख कर रोकी और बोला जाकर देख आओ अगर होटेल मे आप लोगो को कमरे मिल जाये. यहाँ पर इक्के - दुक्के ही होटेल बने थे वह भी छोटे- छोटे,  स्टाफ के दो लोगो को लेकर होटेल पता करने चल दिया. होटेल मे कमरे खाली नही थे वापस दस मिनट बाद लौट कर आया देखा सारे लोग बस से उतर कर वहीं सड़क के किनारे बनी दुकानो पर  मैगी खाने मे मस्त हैं. वैसे भी  सुबह से किसी ने नाश्ता तो किया नही था. जो रास्ते मे खाने के लिये चिप्स, नमकीन व्गैरह रखी थी वही खाकर बैठे हुए थे पर मुझे चिंता हो रही थी की जल्दी से जल्दी धनोल्टी पहुँचा जाय, कहीं ऐसा ना हो कि मसूरी की तरह यहाँ भी कमरा ना मिले.



 मैगी खाने मे मस्त

 मैगी खाने मे मस्त


मै  होटेल ढूढने गया और यहाँ फोटो शूट 


मै  होटेल ढूढने गया और यहाँ फोटो शूट 




4 बजे  बस धनोल्टी पहुंची. देखा यहाँ भी इक्के-दुक्के ही होटेल बने हुए  हैं. बस को ड्राइवर ने . पार्क से करीब 500-700  गज पहले ही सड़क के किनारे होटेल बने देख कर रोक दी. अब फिर हम लोग अलग-अलग होटेल मे कमरे की तलाश मे चल दिये.थोड़ी सी ही देर मे स्टाफ के दो लड़के मेरे पास आकर बोले कि  चल कर बात कर ले पीछे वाले होटेल मे कमरे हैं. होटेल बाहर से तो काफी बड़ा बना हुआ था लग रहा था यहाँ पर शायद सबको कमरे मिल जाये पर जाकर पूछने पर पता लगा कि इस समय दो बड़े बड़े कमरे खाली हैं. होटेल वाला बोला आप सभी लोग दोनो कमरे मे ठहर सकते हो. दो-तीन बिस्तरे अलग से दे दूंगा. अब समस्या यह थी कि आफिस स्टाफ के लोग थे सभी का अलग-अलग ढंग का रहन- सहन. एक ही परिवार के हो तब तो किसी तरह से काम चला सकते थे.  मैने सोंचा अगर यह होटेल छोड़ दिया और दूसरे होटेल  मे भो जगह ना मिली तो रात  बस मे गुजारनी होगी उससे अच्छा है इन दो कमरो मे ही एडजस्ट  कर लेते हैं. उन दो बड़े कमरो का किराया बताया 10000 रुपये. काफी मोल-भाव  के बाद होटेल वाला 9000/ रुपये मे राजी हुआ.
 धनोल्टी  होटेल



अब मैने कहा , सभी महिलाये, लड़कियां  तो एक कमरे मे ठहर जाये और सभी जेन्ट्स दूसरे कमरे मे रात मे सोएंगे. सभी को यह सुझाव पसंद आया. दोनो कमरो मे एकएक डबल बेड और तीन-चार सिंगल बेड  थे. थोड़ी सी परेशानी,  पर सभी एडजस्ट हो गये.
जन्माष्टमी का दिन होने के करण मेरी श्रीमती जी ने व्रत रखा था. शाम ढल चुकी थी मैने सोंचा कुछ फल वगैरह ला दू. होटेल से बाहर आकर पूछने पर पता लगा थोड़ा सा आगे बस स्टॅंड है वहां पर फल मिल सकते हैं. थोड़ा सा आगे जाने पर भी दुकाने नही नजर आई फिर वहां से गुजरते पहाड़ी लोगो से पूछा, उनका वही जबाव , बस थोड़ा सा आगे चले जाओ. हमारे जैसे लोगो के लिये पहाड़ो पर 100-200 गज चलना ही काफी दूर हो जाता है पर पहाड़ी लोग एक किलोमीटर की दूरी भी थोड़ा सा आगे ही बताते है. जैसे-तैसे बस स्टॅंड पहुँचा. यहाँ पर केवल 2-3  दुकाने ही थी जिसमे से एक मे  थोड़ी सी सब्जीफल रखे थे. फल खरीद कर वापस लौटते समय तक शाम काफी गहरी हो गयी थी. बरसात का मौसम होने के कारण बादलो ने आस-पास का वातावरण ढक दिया था. दूर का साफ नही दिख रहा था. इस समय सड़क पर कोई चहलकदमी नही हो रही थी. मेरे आगे - आगे दो लड़के बाते करते हुए जा रहे थे अन्यथा वातावरण मे नीरवता छाई हुई  थी. मै तेज कदमो से होटेल की तरफ बढ रहा  था. ऐसे समय पर पुरानी बाते याद आ जाती हैं. इससे पिछले वर्ष मै मुक्तेश्वर गया था. मुक्तेश्वर उत्तराखंड मे ही एक हिल स्टेशन है. यहाँ से नेपाल की तरफ का हिमालय दिखता है.  तो बात कर रहा था मुक्तेश्वर की ( बताना आवश्यक हो गया था , कई लोग मुक्तेश्वर के नाम से ग़ह्र मुक्तेश्वर समझने लगते हैं.) यहाँ मै रेड रूफ रिज़ॉर्ट मे ठहरा था. रिज़ॉर्ट के मलिक मिस्टर. प्रदीप विष्ट से बातो ही बातो मे पता लगा की शाम के समय कभी-कभी रिज़ॉर्ट के सामने ही बाघ आ जाता है. उन्होने एक बाघ की फोटो भी अपने रिज़ॉर्ट मे लगा रखी थी जो कि  जाड़े के समय  उनके रिज़ॉर्ट के सामने बैठा हुआ धूप सेक रहा था. उनके रिज़ॉर्ट के पास ही एक महिला  को होटेल है. बताने लगे कि एक दिन शाम का अंधेरा ढल गया था, वह अपनी कार से मेरे रिज़ॉर्ट के सामने से गुजर रही थी कि तभी अचनक बाघ  उनकी कार के सामने आकर खड़ा हो गया. उन्होने ने कार के ब्रेक लगाये, बाघ थोड़ी देर तक  खड़ा कार को घूरता रहा  फिर छलांग मार कर दूसरी तरफ चला गया. इस समय मुझे वही बात याद आ रही थी कि कहीं यहाँ पर भी अचनक बाघ आ गया तब क्या करेंगे. चलते  समय होटेल वाले से  पूछना भूल गया था कि  इस इलाके मे बाघ  तो, वह नही है. खैर रास्ते मे बाघ तो नही मिला, सकुशल होटेल पहुंच गया. अगर मिल जाता तो गया था श्रीमती जी के खाने का इंतजाम करने और बाघ के खाने का इंतजाम कर बैठता.  वापस आकर  पहले होटेल वाले से पूछा पता लगा यहाँ पर बाघ नहीं है.
होटेल के बाहर सुबह की मॉर्निग वॉक 

होटेल के बाहर सुबह की मॉर्निग वॉक 
होटेल की छ्त  पर फोटो शूट , एक हम  दोनो का 

एक फोटो श्रीमती जी का

होटेल की छ्त  पर फोटो शूट 

होटेल की छ्त  पर फोटो शूट , कैमरा नही तो मोबाइल से ही 

उठते हुए बादल

घाटी से उठते हुए बादल

धनोल्टी

अगले दिन सुबह सभी धनोल्टी घूमने के लिये निकल पड़े. दो-एक लोगो ने तो घोड़े की सवारी भी करना शुरु कर  दी
धनोल्टी घूमने ,घोड़े की सवारी 

बहुत ही खूबसूरत प्राक्रतिक द्रश्यो से भरपूर धनोल्टी है. होटेल के सामने घाटी से उठते हुए बादलो को देख कर दिल बाग़-बाग़  कर उठा. पहाड़ तो सभी जगह एक से होते हैं पर सभी जगहो की कुछ अपनी अलग ही सुन्दरता होती है. हमारे साथ दो लड़कियां जो कि मूल रूप से कोसानी  की रहने वाली थी.  वह भी यहाँ की नैसर्गिक सुन्दरता देख मंत्रमुग्ध थी
घाटी से उठते हुए बादल

प्राक्रतिक द्रश्यो से भरपूर धनोल्टी,घाटी से उठते हुए बादल
प्राक्रतिक द्रश्यो से भरपूर धनोल्टी

प्राक्रतिक द्रश्यो से भरपूर धनोल्टी

पास ही ईको पार्क था. सभी ईको पार्क मे घूमने के लिये 10 रुपये का  प्रवेश टिकट लेकर अंदर पहुंचे. काफी सुन्दर  पार्क है यह. इस पार्क की मुख्य बात यह थी कि प्राक्रतिक सुन्दरता से भरपूर यह पार्क है. आप अपने आप को प्रक्रति  के नजदीक महसूस करते हैं. पार्क मे जाने के लिये एक रास्ते पर अम्बर लिखा है और दूसरे पर धरा, आप किसी भी रास्ते से जाये लौट कर वहीं पर मिलेंगे,  इस समय बादलो की धुंद  से मौसम मे थोड़ी सी ठंडक थी. सभी यहाँ आकर बहुत खुश थे. पूरी तरह से यहाँ के मौसम का लुत्फ उठा रहे थे. लगभग 12 बजे सभी घूम कर होटेल पहुंच गये
सुन्दरता से भरपूर ईको पार्क 


ईको पार्क मे स्टाफ के लोग 



ईको पार्क मे स्टाफ के लोग 

ईको पार्क मे स्टाफ के लोग 



ईको पार्क 

ईको पार्क मे स्टाफ के लोग 
ईको पार्क 
ईको पार्क पहुंच कर सभी के चेहरे की रंगत ही बदल गयी थी.

ईको पार्क पहुंच कर सभी के चेहरे की रंगत ही बदल गयी थी.

ईको पार्क पहुंच कर सभी के चेहरे की रंगत ही बदल गयी थी.

ईको पार्क मे स्टाफ के लोग 

ईको पार्क मे एक झूला यह भी


ग्रुप फोटो पर धुंद के कारण ज्यादा  स्पष्ट नही 

ईको पार्क पहुंच कर सभी के चेहरे की रंगत ही बदल गयी थी. 


ईको पार्क मे झूले का आनन्द 

ईको पार्क मे झूले का आनन्द