Thursday 14 April 2016

क्या न्यायपालिका राजनीति का अखाडा बन गई है



लगता है न्यायपालिका , न्यायपालिका नहीं , राजनीति का अखाडा बन गई है।  जिसे देखो वही  अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने पहुँच जाता है हाईकोर्ट और  सुप्रीमकोर्ट।
मजे की बात यह है कि कोर्ट को भी इस तरह के मुकदमे सुनने में दिलचस्पी दिखाती है।  फटाफट सुनवाई हो रही है।  सालो से न  जाने कितने मुकदमे विचाराधीन है उनका नंबर ही नहीं आ रहा है।
शनि मंदिर में औरतों को भी  पूजा करनी है , पहुंच गए सुप्रीम कोर्ट , कोर्ट ने भी कह दिया हाँ करो पूजा ।
जबकि कोर्ट को देखना चाहिए था कि कहीं  केवल राजनीति तो नहीं कर रही है यह महिला।  क्या वास्तव में  यह महिला धार्मिक है या केवल ड्रामे कर रही है।  दिन में कितने बार मन्दिर दर्शन के लिए जाती है ? शायद महीने में भी एक बार नहीं जाती होगी।
पूछना चाहिए था कि केवल हिन्दू धर्म की महिलाओं के लिए  क्यों अधिकार मांग रही हो ? जो अन्य धर्मो की महिलाएं हैं उनके अधिकारों के बारे में क्यों बात नहीं कर रही हो ?
केवल  एक यही एक मामला नहीं है अभी जल्दी में कई  ऐसे मामले आये हैं जिन्हे देख कर लगता है कि कोर्ट तो केवल राजनीति का अखाडा बन  कर  गई है।
अभी - अभी IPL पर पानी की बर्बादी को लेकर हाईकोर्ट ने उनको महाराष्ट्र से कहीं और  करवाने के लिए आदेश कर दिए हैं।
जबकि BCCI कह रही है कि वह RECYCLE वाटर ही ग्राउंड में यूज़ करेगी।  बात अमिताभ ठाकुर की भी सही है कि जब बॉम्बे में पानी की इतनी बड़ी किल्लत है तो यह नियम सभी पर लागू होना चाहिए , चाहें वह पांच सितारा होटल के स्वीमिंग पुल हों  या हरे भरे उद्यान।
दूसरी बात अब जब वहाँ पर मैच नहीं होंगे तो क्या  स्टेडियम की घास को जब तक बारिश नहीं होती सूखने दिया जायेगा।
यह वाही लोग हैं जिन्हे होली पर रंग खेलने पर पानी की बर्बादी नजर आती है।
अभी कुछ दिन पहले श्री श्री रविशंकर द्वारा एक आध्त्यमिक प्रोग्राम यमुना किनारे किया गया।  लोगो के पेट में दर्द शुरू हो गया।  पंहुच गए कोर्ट NGT , उनकी गिरफ्तारी की मांग तक एक तोतले नेता ने कर डाली।  जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाबजूद आज भी हजारो लोग यमुना के किनारे रह रहे हैं तब इन्हे पर्यावरण की चिंता नहीं होती है।
एक और केस सुनाने में आया है कि  अमिताभ  बच्चन पर किसी ने केस किया है कि उन्होंने ने राष्ट्रीयगान 52  सेकण्ड से ज्यादा समय में गया अत; उन पर अपराधिक कार्यवाही होना चाहिए।
मैं होता तो सबसे पहले शिकायतकर्ता से कहता कि पहले तू 52 सेकण्ड में गाए , अगर न गा  पाया तो सबसे पहले तेरे को जेल भेजेंगे।  गायब हो जाता पता नहीं लगता कहाँ गया।  लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
एक और केस सुनने में आया है कि किसी ने हाईकोर्ट में मोदी जी के खिलाफ केस दर्ज कराया है कि उन्होंने ने इण्डिया गेट पर योग करते समय जो गमछा गले में  लपेट रखा था उससे अपना मुँह पोछा जबकि वह गमछा तिरंगे रंग  का था।
बुजर्ग कहते आये हैं कि भगवान न करे कि कोर्ट कचहरी के दर्शन करने पड़े लेकिन यहाँ तो लगता है इन लोगो के लिए इस तरह के केस करना एक तरह से पिकनिक है।
अब जब न्यायपालिका इस तरह के केस स्वीकार करती है और उनपर सुनवाई करती है तो कोई अच्छी छवि नहीं आम जनता के मन में न्यायपालिका के लिए बनेगी।
यह न्यायपालिका का दायित्व है कि वह अपनी साख को बना कर रखे।  

Saturday 19 March 2016

सर्राफा व्यापारी की हड़ताल पर सरकार खामोश क्यों


 आम आदमी की नजर में  सबसे सरल और सुरक्षित बचत का साधन ज्यूलरी है। जो वक़्त- जरूरत उसके काम आती है।  किसी  भी समय  कैश की जा सकती है।  इसीलिए भारतीय लोग सबसे ज्यादा ज्यूलरी  पर इन्वेस्ट करते हैं।
विशेष रूप से गाँव -देहात में तो बहुत बड़े पैमाने पर लोगो की जरूरते इसी के माध्यम से पूरी होती हैं।  जब जरूरत पड़ी गिरवीं रख दी या बेंच दी। और जब जरूरत हुई खरीद ली।  इस तरह से  छण भर में उनकी जरूरत पूरी हो जाती हैं।    गांव का गरीब किसान तो अपनी फसल पैदा करने के लिए इसी पर निर्भर रहता है।  फसल उगाने  के लिए बीज , खाद की जरूरते  ज्यूलरी गिरवीं रख कर पूरी करता है और जैसे ही फसल तैयार होती है उसे बेंच अपनी  ज्यूलरी छुड़वा लेता है।  
कहने का आशय यह है कि आम आदमी के लिए बचत का सबसे सरल साधन ज्यूलरी है।
सरकार का उद्देश्य भी  बचत को बढ़ावा देना होता  है इसीलिए  इन्कम  टैक्स में बचत पर तरह - तरह की छूट देती है।  लेकिन जिस तरह की योजनाओ पर सरकार इन्कम  टैक्स में छूट देती है वह केवल नौकरीपेशा के लिए हैं।  आम आदमी के लिए तो ज्यूलरी ही बचत का श्रेष्ठ साधन है।
अब आता हूँ मुख्य मुद्दे पर कि इस बार वित्त मंत्री ने लोगो की इस बचत पर टैक्स लगा दिया है।  सर्राफा व्यापारी इस तरह के टैक्स के खिलाफ एक तरह से आम आदमी के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।  पिछले कई दिनों से अपनी दुकाने बंद रख कर हड़ताल किये हुए हैं।  दूसरी तरफ वित्त मंत्री इस पर अड़ियल रुख अपनाये हुए हैं।  उन्हें आम आदमी से कोई मतलब नहीं क्योकि वह न आम आदमी थे और न हैं।
मोदी जी के शब्दों में कहा जाय  तो जैसे वह राहुल गांधी के लिए मुहावरा प्रयोग करते थे कि वह तो  मुंह में चांदी  का चम्मच लिए हुए पैदा हुए हैं। तो यही बात अरुण जेटली के ऊपर भी apply होती है।   उन्हें क्या मालूम कि एक किसान की रोटी कैसे चलती है।  कैसे वह अनाज पैदा करता है।  यह सब तो उसे मालूम होता है जो इन परिस्थितियों के मध्य से गुजरा हो या उसने नजदीकी से यह सब देखा हो।
जो मंत्री कई - कई एकड़ के भवन में रहते है ढेरो नौकर - चाकर उनके आगे पीछे लगे रहते हैं उन्हें क्या मालूम कैसे तिनका - तिनका जोड़ कर एक आदमी अपनी बिटिया के लिए जेवर खरीदता है।  और आपको उस पर भी टैक्स चाहिए।  क्योकि मुंह में खून जो लगा है उसका स्वाद कैसे भुला दे यह नेता लोग।
कोई बड़ी बात नहीं कि इस तरह से जेटली जी मोदी जी की राह में  में कांटे बिछा रहे हो ।
मोदी जी के राज्यसभा  में दिए गए धन्यवाद प्रस्ताव में पढ़ी  गई  निंदा फाजली की गजल के कुछ इस तरह के मायने तो नहीं हैं।
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिराके अगर तुम सम्भल सको तो चलो
ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो
निदा फ़ाज़ली

Saturday 2 January 2016

केजरीवाल के ओड - इवेन फार्मूले का सच क्या है


दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करने के लिए केजरीवाल सरकार द्वारा लाया जा रहा ओड - इवेन फार्मूला एक तरह से इस कहावत को चरितार्थ करता है कि " हरड़ लगे न फिटकरी रंग चोखा आए।  अगर सरकार  दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करना चाहती है तो तथ्यों पर आधारित एक ऐसी प्रणाली को लागु करना होगा जिससे  जनता महसूस करे कि सरकार वास्तव में दिल्ली को प्रदूषण मुक्त  करने के लिए कृतसंकल्प है।  लेकिन जिस तरह से आप पार्टी और केजरीवाल रेडियो , टीवी  पर अपना प्रचार कर रहे हैं उससे तो यही लगता है जैसे कोई इलेक्शन कैंपेन चलाया जा रहा है।
दिल्ली की सड़को से वाहन को कम करने के लिए एक कठोर कदम उठाना पड़ेगा और वह है वाहनो को फाइनेन्स स्कीम के तहत बेचा या ख़रीदा नहीं जा सकता।  यानि की खरीदार अगर एक 45,00,000 /- लाख की कार खरीदने जायेगा तो उसे 45,00,000 /- लाख रूपये एक मुश्त भुगतान करना होगा।  होगा यह कि इतनी बड़ी रकम भुगतान करना लोगो के लिए आसान नहीं होगा।  आज के हालात यह हैं कि एक 15000 /- से 20000 /- की तनख्वाह लेने वाला भी एक छोटी - मोटी  कार तो  खरीद ही लेता है।
अब सवाल उठता है कि सरकार ऐसी पॉलिसी  बनाती  क्यों नहीं ; तो सच यह है कि सरकार वाहनो की खरीद फरोख्त से अपनी आमदनी को कम नहीं करना चाहती।
अभी जल्दी में मेरे एक परिचित ने नॉएडा में ऑडी कार  45,00,000 /- लाख की खरीदी।  जिस पर सरकार को वैट एवं रोड टैक्स टैक्स के रूप में लगभग 10 लाख रूपये मिले।  अभी एक्साइज ड्यूटी इसके अतिरिक़्त है।  सोंचने की बात है कि कितना बड़ा रेवेन्यू सरकार को केवल एक कार से प्राप्त होता है।
दूसरी तरफ जब कार सड़क पर चलेगी तो पेट्रोल/ डीजल के टैक्स रूप में अलग कमाई होगी।  तीसरा एम्प्लॉयमेंट पर भी फर्क पड़ेगा।  वह घटेगा।  एक तरह से देश के जीडीपी पर फर्क पड़ेगा।  यह तो नुकसान है इस स्कीम को अपनाने में लेकिन फायदे भी हैं कि एक तो सड़क पर से वाहनो का  बोझ कम हो जायेगा।  दूसरा हमारी तेल की खपत भी कम होगी जिसके कारण विदेशी मुद्रा भी बाहर कम जाएगी।
अब आते हैं केजरीवाल के ओड - इवेन फार्मूले के मुद्दे पर , तो कुछ पॉइन्ट यहाँ पर ध्यान देने योग्य हैं।

1. दिल्ली  में 10000  नए थ्री व्हीलर के लिए लाइंसेस जारी किये हैं अब इन पर मिलने वाली  लाइसेंस फी , वैट , रोड टैक्स से अतिरिक्त कमाई होगी।  यानि कि अगर एक ऑटो पर अगर 100000 /-   रूपये लाइंसेन्स  के और टैक्स के मिलते हैं तो 100 करोड़ की आमदनी तो केवल ऑटो से हो हो जाएगी। मतलब  सरकार की जेब से तो कुछ गया नहीं कमाई मुफ्त में।  इसे कहते हैं  हरड़ लगे न फिटकरी रंग चोखा आए।
2 . यह भी पता लगा है कि जो 10000  नये थ्री व्हीलर के लिए लाइसेंस जारी किये जा रहे हैं वह बजाज कम्पनी के लिए ही हैं।  यानि कि  एक विशेष कम्पनी पर इस तरह की दरियादिली क्यों ?. जबकि हर समय अडानी एवं अम्बानी के खिलाफ भाषण बाजी करते रहे हैं केजरीवाल और अब बजाज पर मेहरबानी का अर्थ क्या है।
3 . इसी तरह से 3000 बसो को भी परमिट दिए जा रहे हैं उनसे  जाने कितने करोड़ कमाई होगी।
4 . अब सवाल उठता है कि अगर इनकी स्कीम फेल हो गई जिसका अंदाजा इन्हे खुद है तब क्या इन अतिरिक़्त थ्री व्हीलर और बसो के लाइसेंस कैंसिल किये जायेंगे , शायद नहीं।    यानि कि करोड़ो की कमाई मुफ्त में हो जाएगी ।
5. एक प्रश्न और हम जब कार इस कोई वाहन खरीदते हैं तब सरकार रोड टैक्स , रोड पर वाहन चलाने के लिए हमसे वसूलती है।  अब जब हम साल में आधे दिन ही अपना वाहन चला पाएंगे तो क्या आधा रोड टैक्स वह वापस करेगी।  एक केस इस मुद्दे पर भी कोर्ट में चलना चाहिए।
आज ही न्यूज में पढ़ा कि एक आदमी का  आफिस जाते समय ट्रेफिक पुलिस ने चालान काटा , ट्रेफिक पुलिस अधिकारी ने ही बताया कि उसे इस नियम की जानकारी थी परन्तु  उसके पास आफिस जाने के लिए अन्य कोई विकल्प नहीं है क्योकि वह  नॉएडा में पारी चौक पर रहता है  और वहां से दिल्ली के लिए परिवहन का कोई सुगम मार्ग नहीं है।
यही समस्या दिल्ली एवं  उसके आस-पास रहने वालो के साथ है।  हर व्यक्ति दिल्ली की ट्रेफिक समस्या से जूझ रहा है।  लेकिन उसकी मजबूरी है कि बिना अपने वाहन के वह अपने गंतव्य स्थान पर कैसे पहुंचे।  जब से मेट्रो चली है लाखो लोग इस ट्रेफिक से बचने के लिए नजदीकी मेट्रो स्टेशन पर अपनी गाड़ी खड़ी  करके मेट्रो से सफर कर रहे हैं।
 सच बात यह है कि यह एक तरह का  तुगलकी फरमान  है और इससे  आम जनता का कोई भला नहीं होगा वल्कि आम जनता को आम आदमी पार्टी त्रस्त करती नजर आ रही है।