Monday 23 July 2012

Amarnath Yatra


अमरनाथ यात्रा
पिछले वर्ष यूँ  तो हमारा प्रोग्राम यमनोत्री एवं गंगोत्री जाने का था पर वहाँ जाना तो हो नही सका परन्तु अचानक अमरनाथ धाम  जाने का प्रोग्राम बन गया और हम पहुँच  गये बाबा अमरनाथ  के दरबार मे. कहते है ना सब कुछ हमारी मर्ज़ी से नही होता है. जो जिस तरह से होना है वैसे  ही होगा. कभी सोचा भी नही था कि   हम अमरनाथ धाम की कठिन यात्रा कर सकेंगे. यह पढ़ा  और सुना था  यह एक कठिन यात्रा है. पहाड़ो  पर लगभग 34 किलोमीटर  . की चढ़ाई इतनी  आसान नही होती है. समतल रोड  मे एक दो किलोमीटर  चलना कठिन हो जाता है और यहा तो उचे नीचे , उबड़- खाबड़ , पत्थरो के बीच  पहाड़ो   पर  चलना  था. पर शायद श्रधा और आपका का विश्वास  ही आपको हिमालय की उँचाई  तक पहुँचा देता है. कुछ ऐसी ही श्रधा और लगन से हम चल दिए बाबा अमरनाथ  के दर्शन के लिए.
सबसे पहला काम  तो  रेजिस्ट्रेशन करवाने का था. पता लगा कि  रेजिस्ट्रेशन के वगैर वहाँ  जाने नही देंगे. बड़ी मुश्किल से रेजिस्ट्रेशन हुआ, क्योकि दिल्ली  मे फार्म ख़त्म  हो गये थे, केवल गुड़गाँव  मे यसबैंक  के पास थे.  पहले उसने बालटाल से यात्रा का रेजिस्ट्रेशन कर दिया, जब हमारी जानकारी मे आया तब हमने  दोबारा वाया पहलगाम के लिए रेजिस्ट्रेशन करवाया.  हमने पहलगाम हो कर जाना तय किया था..पहलगाम हो कर पवित्र  गुफा जाने का रास्ता परंपरागत रास्ता है,  भगवान शिव इसी  रास्ते से होकर मॉ पार्वती के साथ गुफा तक पहुचे थे., कहते है  बालटाल का रास्ता काफ़ी ख़तरनाक है.  जैसे - तैसे रेजिस्ट्रेशन हो गया , अब दूसरा  काम  था दिल्ली  से जम्मू तक का ट्रेन रिज़र्वेशन का.  तत्काल मे रिज़र्वेशन के लिए सुवह  5 बजे  दो लोग स्टेशन जा कर लाइन मे लग गये.  फिलहाल  तत्काल मे रिज़र्वेशन हो गया.
हम 11 लोग थे, जिसमे से एक हमारे भतीजे का मित्र अहमदाबाद से सीधे जम्मू पहुँच  रहा था बाकी हम 10 लोग  दिल्ली  से  जम्मू के लिए रवाना हुए . हम 16 जुलाइ-2011 शनिवार की शाम राजधानी एक्सप्रेस से  चल कर दूसरे दिन सुवह  5 बजे  जम्मू पहुँच  गये. यहाँ हमारे  भतीजे के दोस्त ने एक टाटा विंगेर 7000/- रुपये किराए  पर  कर लिया था  जो कि हमसे एक दिन पहले अहमदाबाद से यहाँ पहुंच गया था. अब सुवह  - सुवह  टॅक्सी ढुढने   के झंझट से बच गये. सब लोग पहले उसके होटेल गये वहां से फ्रेश हो कर सुबह 7 बजे जम्मू से पहलगाम के लिए चल दिए.
रास्ते मे बहती हुई एक बड़ी नदी  पर  ड्राइवर ने बताया यह झेलम नदी है, जो कि बहुत गहरी है, थोड़ा  आगे  जाने पर उस पर बाँध  भी बना हुआ देखा. अनंतनाग से दो रास्ते जा रहे थे एक श्रीनगर को और दूसरा पहलगाम. शाम लगभग 6 बजे हम पहलगाम पहुँच गये.
पहलगाम  से पहले  यात्रियो   की चेकिंग 



                         टीम के  सदस्य


एक ठीक- ठाक  होटेल मिल गया. 3 रूम का किराया 3600/-  सब 3 कमरो मे आराम से  एडजुस्ट  हो गये. पहलगाम मे यात्रियो के ठहरने के लिए टेंट भी लगे थे पर हमने होटेल मे ठहरना उचित समझा

पहलगाम  साफ सुथरा छोटा सा खूबसूरत शहर है जो कि लिद्दर नदी के किनारे  बसा  है, यह चारो तरफ उँचे-उँचे पहाड़ो  से घिरा हुआ है. . हमारे होटेल के ठीक  सामने सड़क के दूसरी  तरफ  लिद्दर नदी बह रही थी रात के शांत वातावरण मे कल-कल नाद करती हुई  उच्छृंखलता के साथ बहती हुई लिद्दर  नदी की आवाज़ गूँज रही थी, बहुत ही सुंदर द्र्श्य   था. पहलगाम धरती पर स्वर्ग माने जाने वाले कश्मीर के सबसे खूबसूरत हिल स्टेशनों में एक  है. पहलगाम की खूबसूरती के बारे मे  गुलशन नंदा ने अपने  उपन्यास मे भी लिखा था

                                                पहलगाम  मे   लिद्दर  नदी 
                        पहलगाम  मे   लिद्दर  नदी 
पहलगाम  मे   लिद्दर  नदी 
लिद्दर नदी के किनारे पार्क मे खिले फूल 

                                        लिद्दर नदी के किनारे पार्क मे खिले फूल 
                       लिद्दर नदी के किनारे पार्क मे खिले फूल 

रात मे ही हमने आगे की यात्रा का प्रोग्राम बना लिया. पता लगा पहलगाम से चंदनवाड़ी तक . 70/ रुपये प्रति व्यक्ति  टॅक्सी कार चार्ज करती है.  हम सभी सुवह  5 बजे  उठ कर आगे जाने की तैयारी  करने लगे. ज़रूरी समान को छोड़ कर अतिरिक्त समान होटेल मे रखवा दिया.  टॅक्सी होटेल के सामने  ही मिल गयी सभी लोग चंदनवाड़ी  के लिए चल दिए. रास्ते मे एक बहुत  खूबसूरत घाटी पड़ी, ड्राइवर ने बतया यह “ बेताब घाटी है, बेताब फिल्म की शूटिंग  यही हुई थी तब से इसका नाम बेताब घाटी पड़ गया है, बहुत  सुंदर बेताब घाटी का नज़ारा है.  पहलगाम से चंदनवाड़ी  लगभग 15 किलोमीटर  है . जो कि  हम लगभग आधा – पोने घंटे मे पहुँच गये यहाँ  सुवह - सुवह  यात्रियो की काफ़ी भीड़ थी, चंदनवाड़ी   से आगे  घोड़े , पालकी या पैदल शेषनाग , पंचतर्णी  होते हुए गुफा तक पहुँचते है, ज़्यादातर यात्री चंदनवाड़ी  से चल कर पहला पड़ाव शेषनाग पर करते है. कहते है शिव जी ने कंठाभूषण सर्पों को शेषनाग पर छोड़ दिया, इस प्रकार इस पड़ाव का नाम शेषनाग पड़ा। शेषनाग के बाद दूसरा पड़ाव पंचतर्णी है और पंचतर्णी से लोग सीधे गुफा के लिए प्रस्थान करते है, शेषनाग और पंचतर्णी दोनो ही जगह टेंट के शिविर लगाए जाते है.  यहाँ चंदनवाड़ी पर  कई भंडारे लगे थे, भक्त  बुला - बुला कर खाने के लिए आमंत्रित कर रहे थे. पहले तो मेरा प्रोग्राम यह था कि  हम पिस्सू टॉप तक तो घोड़े  से जाएगे फिर वहाँ  से शेषनाग पैदल . पिस्सू टॉप की चढ़ाई   बहुत   कठिन है, यहा पर हमे अपना  प्रोग्राम बदलना पड़ा  क्योकि मेरी श्रीमती  की कमर मे मोच आ गयी थी अब उनके लिए पैदल चलना कठिन था  उनके लिए घोड़ा  किया, अब वो अकले तो घोड़े  से शेषनाग जा नही सकती थी इसलिए मैने अपने लिए भी घोड़ा  कर लिया. दो घोड़े  के शेषनाग जाने के 1400/- रुपये तय हुए. बाकी लोगो को बता दिया कि हम दोनो लोग  तो घोड़े  से जा रहे है.. 


 पिस्सूघाटी मे लिद्दर नदी वर्फ़ के ग्लेशियर के नीचे से उफनती हुई बह रही है 

चंदनवाड़ी
 पिस्सूघाटी मे लिद्दर नदी वर्फ़ के ग्लेशियर के नीचे से उफनती हुई बह रही है 



पिस्सूघाटी


पिस्सू टॉप

पिस्सू टॉप की चढ़ाई   वास्तव मे एक  कठिन चढ़ाई   है. घोड़े  पर बैठे हुए डर  लग रहा था. इससे  पिछले  वर्ष हम केदारनाथ यात्रा पर गये थे , वहां  14 किलोमीटर की चढ़ाई  है, हम उस रास्ते को देख कर सोचते  थे कि कितना कठिन रास्ता है परंतु यहाँ  तो रास्ता ही नही था रास्ते के नाम पर उबड़ -खाबड़ पगडंडी है, कई जगह पर तो ऐसा लगा कि अब गिरे तो तब गिरे. सबसे बरी दिक्कत तो तब होती है जब घोड़ा पहाड़ से नीचे को उतरता  है.  कई लोग गिर भी जाते है, पिस्सू टॉप से शेषनाग के बीच एक बहुत सुंदर झरना गिर रहा है उसके थोड़ा पहले हमे घोड़े  वाले ने उतार दिया और बताया यहाँ से लगभग 1 किलोमीटर . आगे तक पैदल चलना होगा क्योकि घोड़े  से जाने का रास्ता नही है. अब हम पैदल आगे चल दिए, रास्ते  मे वर्फ़ के  ग्‍लेश्यार के बाद  खूबसूरत झरना बह रहा था, बहुत लोग फोटो  खिचवा रहे थे.
                      शेषनाग से पहले झरना
थोड़ा आगे हमे घोड़े  वाला मिल गया , हम फिर घोड़े  पर बैठ कर शेषनाग कॅंप के लिए चल दिए.शेषनाग पहुचने  से काफ़ी पहले से ही झील दिखने लगती है


                                                             झील से पहले रास्ते मे
                                               झील से पहले रास्ते मे 

शेषनाग  झील

शेषनाग  झील



एक जगह पर वर्फ़ का सीधा ढाल है, यह एक  ख़तरनाक ढाल  है घोड़े  पर बैठे हुए डर  लग रहा था ऐसा लगा कि नीचे गिरने वाला  हूँ  पर किसी तरह संभल गया. जान सुख गयी थी.  झील का लगभग आधा चक्कर काट कर करीब  12-1 बजे तक हम शेषनाग कॅंप पहुँच गये. झील के किनारे यहाँ टेंट का छोटा सा शहर बसा हुआ था. चारो तरफ से कांटो की बाड़ लगाई हुई थी . कॅंप मे एंट्री के लिए केवल एक गेट  था जहाँ 24 घंटे  जवान तैनात रहते थे. हर आने जाने वाले की जाँच पड़ताल करते थे  . कॅंप के बाहर कुछ दूरी पर भंडारे लगे थे जहाँ यात्रियो के  खाने का प्रबंध था.
हमने एक टेंट 12  लोगो  का ले लिया था जिसका किराया  125/- रुपये पर बेड के हिसाब से टेंट वाले ने चार्ज किया. इन टेंटो मे ज़मीन पर पतला सा गद्दा था, साथ मे एक रज़ाई थी. कोई आराम देह जगह नही थी, हम एक तरह से फ़ौजी बन गये थे. थकान के कारण खाने-पीने की भी इच्छा ख़त्म हो जाती है, जैसे- तैसे  थोड़ा बहुत भंडारे  का खा कर सो गये. रात मे हल्की- हल्की  बारिश हो रही थी सुवह  होते होते काफ़ी पानी  भर गया था, पता लग अभी यात्रा आगे जाने के लिए रोक दी है .सभी लोग अपने-अपने टेंट मे आराम करने लगे  लगभग सुबह  8-9 बजे लोगो का शोर सुना कि यात्रा का रास्ता खोल दिया गया. सब लोग आगे जाने के लिए कॅंप के बाहर निकालने लगे. काफ़ी भीड  हो गये थी. इस कारण से घोड़े   वालो के नखरे ज़्यादा हो  गये थे यहाँ हमे शेषनाग से पंचतर्णी के लिए 1600 -1700 रुपये के हिसाब से घोड़ा मिला
                            शेषनाग झील पर कॅंप 
                                शेषनाग झील पर कॅंप 
शेषनाग झील पर कॅंप  नगरी  

शेषनाग से चल कर महागुन  टॉप पर घोड़े वाले  10-15 मिनट  के लिए रेस्ट करने के लिए रुके . महागुन टॉप जिसे  गणेश टॉप भी बोलते है समुद्र तल से 14400 - 14800 फिट उँचाई  पर है जो कि  शेषनाग से लगभग 4.6 किलोमीटर की दूरी पर है ,यह एक वर्फीला दर्रा है.  कुछ लोग कह रहे थे कि कई बार तो यहाँ ऑक्सिजन इतनी कम हो जाती है कि माचिस भी नही जलती, पर इस  वक्त ऐसा कुछ नही लग रहा था,

                      खूबसूरत नज़ारा महागुन  टॉप

महागुन  टॉप से पंचतर्णी के लिए 

महागुन  टॉप पर मॅ अपनी पत्नी के साथ


महागुन  टॉप पर मॅ अपनी पत्नी के साथ


                                  महागुन  टॉप से पंचतर्णी के लिए 
महागुन  टॉप

महागुन  टॉप



चाय पी कर घोड़े  वाले फिर आगे पंचतर्णी के लिए चल दिए.  रास्ते मे पीयुषपत्री स्थान पड़ा यहाँ पर भी लंगर लगे हुए थे, भगवान शिव के गीतो की धुन लाउडस्पिकर पर बज रही थी. अब आगे को ढलान था , लगभग 4 बजे हम पंचतर्णी पहुँच  गये. पंचतर्णी  काफ़ी चौड़ी  घाटी है जिसमे कई पतली-पतली नदी की धारा बह रही है. यहाँ पाँच नदी बह रही है. कुछ लोग यहाँ स्नान कर रहे थे. नदी पार  करके हमे घोड़े  वाले ने कॅंप साइड पर उतार दिया.  मैने तो सुवह  से कुछ खाया नही था , भूख ज़ोर की लग रही थी, एक लंगर मे जा कर जो कुछ खाने को मिला खा पी कर टेंट का इंतज़ाम करने लगे. यहाँ पर टेंट  225/ रुपये पर बेड के हिसाब से मिला. यहाँ पर कॅंप की व्यवस्था शेषनाग  से ज़्यादा  अच्छी थी कॅंप के दोनो किनारो  पर भंडारे लगे थे जहाँ पर खाने-पीने का श्रधालुओ  द्वारा इंतज़ाम किया गया था.. यहाँ एक-दो कॅंप से  फ्री मेडिसिन भी दी जा रहे थी.
यात्रा पर जाने से पहले मैने इंटरनेट  पर काफ़ी कुछ जानकारी  कर ली थी . जिसमे से घोड़े  वालो द्वारा चार्ज किए जाने का रेट चार्ट भी था. परंतु कोई भी उसके हिसाब से चार्ज नही कर रहा था. मैने पहले  इस बारे मे फ़ौजी जवानो से शिकायत की पर उन लोगो ने कहा , श्राइन बोर्ड के कॅंप मे जा कर शिकायत  करू. कॅंप के लास्ट मे श्राइन बोर्ड का कॅंप लगा था. वहाँ श्राइन बोर्ड के सेक्रेटरी से मिला, उनसे बताया   यह लोग मनमर्ज़ी चार्ज कर रहे है, वो बोले इस मामले मे हम कुछ नही कर सकते, एक सज्जन की तरफ इशारा कर बताया की यह अनंतनाग के पुलिस सूपरेंटेंडेंट है पर इनसे भी ज़्यादा चार्ज किया. 
                        पंचतर्णी  हेलिपॅड


सामने ही हेलिपॅड बने हुए थे बालटाल और पहलगाम से आने जाने वाले यात्री यहाँ से ही आ- जा रहे थे. यहाँ तक पहुँचते पहुँचते  हमारे साथ के लोग इतने पस्त हो गये थे कि सामने हेलिकॉप्टर देख कर वापस हेलिकॉप्टर से जाने को प्रोग्राम बनाने लगे. हम सब लोग एंक्वाइरी करने लगे कि किस तरह से टिकेट मिलेगा.  वहाँ पर एक-दो लोगो ने बताया की सुबह 5 बजे अगर लाइन मे आ कर लग जाओ तो टिकेट मिल सकता है. दूसरे दिन सुबह  5 बजे  जा कर लाइन  मे लग  गया, 2 घंटे खड़े रहने के बाद  टिकेट नही मिला. अभी तो हमे दर्शन के लिए गुफा के लिए जाना था , फटा- फट टेंट खाली कर के घोड़े  किराए के लिए और गुफा के लिए चल दिए , थोडा  सा आगे ट्रॅफिक जाम हो गया. घोड़े  वाला बोला आप लोग उतर कर पैदल  चलो  जब जाम खुलेगा तब आगे आप बैठ जाना. अब हम घोड़े  से उतर कर पैदल धीरे -धीरे पहाड़ पर चढ़ाई  चढ़ने लगे धीरे-धीरे हम काफ़ी उँचाई  तक पहुँच गये, रास्ते मे पैदल यात्री ओम नमा शिवाय , जै  भोले की नारे लगाते हुए चढ़ते  जा रहे थे, काफ़ी उँचाई   पर चढ़ने  पर  देख कर ताज्जुब हुआ की हम क्यो नही पैदल चढ़ाई  करते पहाड़  की टॉप पर वगैर किसी परेशानी के पहुँच गये, सोचा वापसी मे पैदल ही पंचतर्णी जाएंगे . पहाड़  के टॉप पर पहुँचते पहुँचते   जाम भी खुल गया तब तक घोड़े   वाला आ गया अब हम फिर से घोड़े  पर  बैठ कर चल दिए. एक जगह पर तो मेरा घोड़ा फिसलते फिसलते बचा,  मुश्किल से मैने अपने आप को बचाया, एक तरफ खाई थी और दूसरी तरफ पहाड़ .यहाँ आ कर लगा कि  आपको अगर अमरनाथ  दर्शन के लिए आना है तो आपके शरीर मे इतनी  ताक़त होनी चाहिए कि  आप पैदल पहाड़  पर चढ़ाई कर सके  अन्यथा घर पर बैठे.   पलक झपकते राम नाम सत्य हो सकता है. यह बात  आपको डराने  के लिए नही लिख रहा हुँ. यह एक सच्चाई है. अगर आपने न्यूज पेपर मे पढ़ा  हो तो आपको पता होगा की इस वर्ष 2011 मे लगभग 115 लोगो की डेथ  हुई है. बचपन मे मैने नेहरू जी की मेरी कहानी, आत्मकथा पढी  थी   जिसमे उन्होने  लिखा था कि  किस तरह से वह वर्फ़  की खाई मे गिर गये थे और बड़ी मुश्किल से निकल पाए थे.
सारा खेल श्रधा  और विश्वास का है. जिसकी नियती मे जो लिखा है वही उसको मिलेगा. फिर भी  यह यात्रा एक कठिन यात्रा है और बहुत सोंच समझ कर ही इस यात्रा के लिए जाए. जाने कितने तो बीच रास्ते से ही वापस लौट आते है या लौटना पड़ता है क्योकि डॉक्टर उन्हे आगे जाने से मना कर देते है और भी बहुत बाते है जिन्हे लिख कर डराना  नही चाहता  पर आपके हित के लिए ही बता रहा हू. यात्रा करे तो पैदल. सबसे ज़्यादा दुर्घटनाए घोड़े से ही होती है.
अब ढलान शुरू हो गया था . हम  संगम पर पहुँच रहे थे, दूसरी तरफ से बालटाल के यात्री  भी आ रहे थे. थोड़ा आगे जाने पर घोड़े वाले ने उतार दिया. यहा पर बहुत से लोगो को गॅस पर पानी गर्म कर नहलाते  हुए देखा. प्रसाद  बेचने वालो की लाइन से दुकाने  वर्फ़ के उपर लगी थी, जहाँ अपना समान रख कर , स्नान करके आगे गुफा
दर्शन के लिए जा  सकते थे. हम  भी एक दुकान पर रुक गये जो बर्फ के उपर थी. दुकानदार ने एक मोटी सी पोलीफिल बर्फ के उपर बिछा रखी थी. उस पर बैठ कर लग ही नही रहा था की हम बर्फ पर बैठे है दुकानदार ने ही दुकान के पीछे गर्म पानी का इतजाम किया था  50 रुपये  मे एक बाल्टी पानी. दे रहा था हम लोगो ने  वही बर्फ के उपर बैठ कर स्नान किया , वर्फ़ पर स्नान भी याद रहेगा . दुकानदार ने बताया यहाँ  से गुफा लगभग  2  किलोमीटर  है
 यहा घोड़े वाले ने उतार दिया गुफा लगभग  2  किलोमीटर  है,  
                                                                   पैदल गुफा के लिए




                             गुफा के पास टेंट नगरी  



                                              पंचतर्णी से गुफा के रास्ते मे हिमालय




                                                           पंचतर्णी से गुफा के रास्ते मे हिमालय




        दूर से गुफा दिखने लगी, यह वर्फ़ है जिस पर चल कर गुफा तक पहुँचना था 


अब हम पैदल दर्शन के लिए चल दिए. काफ़ी दूर से गुफा दिखने लगी पर वहा पहुँचने मे लगभग 1-1.5 घंटा लग गया. यहाँ हमे ज़्यादातर वर्फ़ के उपर ही चलना था. एक जगह वर्फ़ का ढलान था और उपर जाना था वहाँ वहूत से यात्री फिसल रहे थे. सबसे कठिन वर्फ़ पर चलना होता है जमी हुई वर्फ़ पर फिसलने का डर  हर समय रहता है. गुफा के आस पास जम्मू -कश्मीर  पुलिस का इंतज़ाम था. बाकी सारे रास्ते बॉर्डर सेक्यूरिटी फोर्स  के पहरे मे हम लोग चल रहे होते है पूरे रास्ते मे हमने देखा चप्पे चप्पे पर बॉर्डर सेक्यूरिटी फोर्स  के जवान हमारी  सुरच्छा के लिए तैनात थे. पवित्र  गुफा से करीब 500 गज पहले सभी यात्रियो की जाँच की जा रही थी. मोबाइल , कॅम्ररा जमा किए जा रहे थे , किसी को भी गुफा मे  फोटो खिचने की इजाज़त नही थी. यहाँ गुफा मे जाने के लिए सीढ़ी बनी हुई थी. गुफा मे घुसते ही उपर से पानी की बूंदे सर पर  गिरी  ऐसा लगा कि वारिश का पानी हो पर जब सर उठा कर उपर देखा  तब पता लगा कि पहाड़ की छत से पानी बूँद -बूँद कर टपक रहा है . बाद मे देखा कुछ लोग कोशिश कर रहे थे की उन पर पानी की बूँद गिरे मैने चारो ओर निगाहे घुमा कर कबूतरो को देखने की भी चेष्टा की जिसके बारे मे किदवंती  है की उन्होने भगवान शिव द्वारा सुनाई जा रही अमर कथा को सुना है और वो अमर है. मुझे वो सफेद कबूतर तो नही दिखे हाँ  जंगली कबूतर ज़रूर दिखे. हो सकता है कि यही वह कबूतर हो . गुफा समुद्रतल से 13,600 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। इस की लंबाई (भीतर की ओर गहराई)19 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर है। गुफा 11 मीटर ऊँची है। , गुफा मे प्रवेश कर के हम भगवान शिव  के दर्शन के लिए आगे बढ़े देखा पूरा चबूतरा उपर तक लोहे के जाल से बंद किया हुआ है, जबकि फोटो मे 2-3 फिट उँचा लोहे का जाल देखा था . सीधे हाथ पर भगवान शिव वर्फ़ के रूप मे विद्यमान थे. यहाँ सही व्यवस्था ना होने के कारण हर कोई एक-दूसरे को धक्का देकर जाल के पास जा कर दर्शन करना  चाह रहा था. मैने  दूर से दर्शन किए. गुफा मे शिवलिंग जिस चबूतरे पर विद्यमान है , पूरे  चबूतरे पर आधा से एक फिट  बर्फ  जमा थी. हम 3 फिट नीचे खड़े  थे वहाँ बिल्कुल बर्फ नही थी थोड़ी देर गुफा मे बिता कर अब हम वापस चले, यहाँ गुफा के पास भी श्रधालुओ ने भंडारे का इंतज़ाम किया हुआ था. सुबह से नेसी ने कुछ खाया नही था  एक भंडारे मे रुक कर भोजन  किया. यहाँ भंडारे मे ख़ाने के लिए उतना ही लेना चाहिए जितना खा सके, प्लेट मे छॉड्ना मना हैदर्शन हो गये थे अब हमे वापस लोटने की जल्दी थी. लगभग 4 बजे हम वापस उसी दुकान पर पहुचे जहाँ हमने अपना समान छोड़ा था. तब तक तेज हवा बहने लगी, ऐसा लग तेज बारिश-तूफान आ सकता है. एक बार मन हुआ रात यही रुक जाते है , आख़िर वहाँ रुकने का प्रोग्राम कॅन्सल कर के वापस पंचतर्णी के लिए चल दिए. मैने पहले ही तय कर लिया था कि पैदल ही लौटना है  हम कुछ लोग तो पैदल अपना पिट्टू बैग  कंधो पर लटकाए चल दिए कुछ लोग घोड़े  से गये. पंचतर्णी  पहुँचते पहुँचते तेज बारिश आ गई. दौड़  कर हम एक खाली पड़े सरकारी टेंट मे घुस  गये. अब रात यही पंचतर्णी मे गुजारनी थी , हमारे साथियो ने जो पहले घोड़े से पहुँच गये थे , टेंट कर लिया था कोई दिक्कत नही थी. सब लोग आराम करने लगे.
दूसरे दिन  वापस पहलगाम लोटना था,  एक राय बनी, तय किया कि पिस्सू टॉप तक तो घोड़े से  और पिस्सू टॉप से पैदल चंदनवाड़ी पहुँचेंगे. व्रहस्पतिवार  सुबह करीब 7 -8 बजे  पिस्सू टॉप तक के लिए घोड़े किए इस बार हमे घोड़ा सस्ता मिल गया क्योकि भीड़ थी नही. 1300/- रुपये घोड़ा , पंचतर्णी से पिस्सू टॉप तक. जबकि जाते समय शेषनाग से पंचतर्णी तक के  1700/- रुपये  घोड़े वाले को देने पड़े थे. अब हम लॉट रहे थे इसलिए जी भर कर रास्ते की सुंदरता को मन मे बैठा लेना चाहता  था . लगभग 3 बजे हम लोग पिस्सू टॉप पर पहुँच गये. यहाँ हमने घोड़े छोड़ दिए अब यहाँ से पैदल चंदनवाड़ी  के लिए चल दिए.
पहाड़ो पर उतरना भी इतना आसान नही होता है, दूसरे पीछे से घोड़े -पालकी वाले तेज़ी से आते है उनसे भी बच कर चलना होता है,  एक रास्ते मे घोड़े  पैदल, और पालकीवालो सभी को चलना होता है  , रास्ता भी कई जगह पर  इतना संकीर्ण कि बहुत मुश्किल हो जाता था अपने आप को बचाना . रास्ते मे एक दर्शनार्थी ने मेरी पत्नी से पूछा  आप लोगो को दर्शन हो गये, हमारे हाँ कहने पर वो इतना भावुक हो गया के भावुकता वश वो पैर छूने  लगे. जो लोग पिस्सू टॉप की ओर चढ़ाई  कर रहे थे पूछते जा रहे थे अभी कितना और चढ़ना है, हालाँकि  यहाँ से ही चढ़ाई  शुरू हुई थी और मंज़िल दूर थी पर किसी को भी हतोत्साहित ना करते हुए हम यही कहते थे भोले की जे करते  चले जाओ , पहुँच जाओगे, उतरते समय ही एक गेरुआ वस्त्र धरी साधु कंवर लिए हुए दर्शन के लिए जा रहे थे , उत्सुकतावश  मैने पूछा , आप हरिद्वार से गंगा  जल ला रहे है क्या, पर सुन कर आश्चर्या हुआ कि वह गंगोत्री से गंगा जल ले कर यहाँ अमरनाथ मे भगवान शिव पर चढ़ाने  के लिया जा रहे थे. लोगो की हिम्मत , भगवान शिव के प्रति अगाध श्रधा देख मे  गदगद हो गया. उतरते समय यही चिंतन मन मे चल रहा था. इस जटिल मार्ग पर यात्रा करना ही इतना कठिन है वहाँ कितने ही श्रधालुओ ने भंडारे लगाए हुए थे और यात्रियो की सेवा कर रहे थे. कितना बड़ा पुण्य का काम यह लोग कर रहे है.   शाम होते-होते हम चंदनवाड़ी पहुँच गये और यहाँ से टॅक्सी कर के वापस पहलगाम के उसी होटेल मे गये जहाँ  पहले ठहरे  थे. अब भीड़  कम थी  होटेल मे कई रूम खाली थे, हमने होटेल वाले से मोल-भाव करके रूम किराया  1000/-रुपये  ठहराया. रूम  अपनी पसंद का रोड साइड का  लिया, रूम के  सामने पार्क और उसके साथ  बहती हुई लिद्दर नदी दिख रही थी.

आज व्रहस्पतिवार   था और हमारी ट्रेन की टिकट  शनिवार शाम की  थी. आज तो हमे यही रुकना था पर दूसरे दिन  शुक्रवार को  या तो जम्मू जा कर रुकते या पहलगाम मे. सभी लोग पहलगाम मे दूसरे दिन भी रुकने को तैयार  हो गये. और यह अच्छा भी था क्योकि एक तो यह समस्या थी कि जम्मू जा कर फिर होटेल ढूढ़ना  पड़ता. वैसे भी पहलगाम की सुंदरता के आगे जम्मू जा कर एक दिन ठहरना  कोई समझदारी का निर्णय  नही  होता.इसलिए हम सब शुक्रवार को पहलगाम मे ही रुके. यहाँ पर हमारे पास आस- पास घूमना या शॉपिंग करना  ही  था.
आज व्रहस्पतिवार   था और हमारी टिकेट शनिवार शाम की बुक थी. आज तो हमे यही रुकना था पर दूसरे दिन  शुक्रवार को  या तो जम्मू जा कर रुकते या पहलगाम मे. सभी लोग पहलगाम मे दूसरे दिन भी रुकने को तैयार  हो गये. और यह अच्छा भी था क्योकि एक तो यह समस्या थी की जम्मू जा कर फिर होटेल ढूढ़ना  पड़ता. वैसे भी पहलगाम की सुंदरता के आगे जम्मू जा कर एक दिन ठहरना  कोई समझदारी का निर्णय  नही  होता.इसलिए हम सब शुक्रवार को पहलगाम मे ही रुके. यहाँ पर हमारे पास आस पास घूमना या शॉपिंग करना  ही  था.. 
                           लिद्दर नदी के किनारे पार्क मे

                       लिद्दर नदी के किनारे पार्क मे

शाम को हम लोग एक रेस्टौरेंट मे बैठे थे, मैने देखा एक पुलिस ऑफीसर भी वहाँ रेफ्रेशमेंट ले रहा है, तभी एक और ऑफीसर भी उसके पास आ कर बात  करने लगा, मेरी नज़र उस पर टिक गयी मै  देखना चाहता था कि यहाँ होटेल वाले को खाने-पीने का बिल पेमेंट करते है या नही, थोड़ी देर मे देखा दोनो ऑफीसर  होटेल वाले के पास गये और पर्स निकाल कर पेमेंट करने लगे.  ऐसे ही मार्केट मे टहलते हुए मैने देखा 2-4 खोंचे वाले सड़क किनारे खड़े है, यह यहाँ के मूल निवासी नही थे, यात्रा पर रोज़गार के चक्कर मे यहाँ पहुँच  गये थे, जिग्याशा वश मैने उनसे पूछा  क्या यहाँ खड़े होने पर यहाँ की पुलिस तो नही परेशान करती है, उन लोगो ने  बताया  कि म्युनिसिपल बोर्ड वाले डेली . 20/- रुपये की रसीद काट देते है और कोई परेशान नही करता है.  सोचने लगा देहली और उसके आस-पास के शहरो मे सरकार को तो इन खोंचे  वालो से कुछ मिलता नही है  हाँ पुलिस वालो की ज़रूर जेब गर्म हो जाती है. यहाँ आकर इस बात का अहसास होता है कि अमरनाथ  की यात्रा के दौरान लाखो कश्मीरियो को रोज़गार मिलता है,  स्टेट की इनकम बदती हैहम 7 लोगो का घोड़े का खर्च 37500/- रुपये हुआ था जबकि कई स्थानो पर हम पैदल भी चले थे. इसके अलावा टॅक्सी , टेंट, होटेल, आदि कितने खर्चे. हम लोगो का प्रति व्यक्ति लगभग 8000/- से 10000/- रुपये  खर्च आया था. एक तरह से यह यात्रा कितने कश्मीरियो के लिए आय का बड़ा साधन हैपरंतु फिर भी कुछ कश्मीरी लीडर वहाँ की जनता को गुमराह करके यात्रा के खिलाफ भाषण वाजी , विरोध प्रदर्शन करवाते रहते है. बहुत तकलीफ़ होती है जब इंसान अपने स्वार्थ के कारण दूसरो की रोज़ी रोटी  पर लात  मारता है. जम्मू और कश्मीर के लिए यह यात्रा आर्थिक और सामजिक संतुलन बनाये रखने का काम करती है क्योंकि घाटी और राज्य के अन्य स्थानों के लोग वर्ष भर इस यात्रा का इंतज़ार करते हैं जिससे उनको वर्ष भर के लिए कुछ आमदनी हो जाती है और उनकी आर्थिक दशा सुधरती है 
  4 बजे जम्मू रेलवे स्टेशन पहुँचा दिया. हमारी चिंता दूर हो गयी हमारी ट्रेन 7 बजे की थी , हम समय से पहुँच गये थे.
अमरनाथ के वारे मे यहाँ विशेष जानकारी दी जा रही है
पहलगाम से चंदनवाड़ी  की दूरी लगभग 16 किलोमीटर  है, चंदनवाड़ी समुद्र तल से 9500 फीट   उँचाई  पर है, चंदनवाड़ी से पिस्सू टॉप की दूरी लगभग 3 किलोमीटर है,पिस्सू टॉप की समुद्र तल से उँचाई  11200 फीट है,पिस्सू टॉप से शेषनाग की दूरी लगभग  11 किलोमीटर है,शेषनाग समुद्र तल से लगभग 12000 फीट   उँचाई  पर है,शेष नाग से महागुनास टॉप की दूरी लगभग 4.60 किलोमीटर है,महागुनास टॉप 14500 फीट   उँचाई  पर है, महागुनूस टॉप से पंचतर्णी 9.40 किलोमीटर है. पंचतर्णी 12500 फीट   उँचाई  पर है,पंचतर्णी से संगम  3 किलोमीटर है,संगम से पवितरा गुफा  किलोमीटर है. गुफा समुद्र तल से लगभग 13600 फीट   उँचाई  पर है