Wednesday, 31 October 2012

अरविन्द केजरीवाल बनाम नमक का दरोगा



आजकल मीडिया मे अरविन्द केजरीवाल जोर-शोर से छाये हुये हैं. जो उनके समर्थक है वह उनकी तारीफ कर रहे हैं और जो कांग्रेस के समर्थक है वह बुराई. बात भी सही है इंसान वही सुनना पसंद करता है जो उसे अच्छा लगे.
अरविन्द केजरीवाल को लेकर मेरे मन मे चिंतन शुरु हो गया. चिंतन के बाद जो बात निकल कर आई वह यह कि व्यक्ति दिग्भ्रमित है. सबसे पहले अर्जुन की तरह अपना लक्ष्य चुनना चाहिये था और तदुपरान्त उसको भेदना चाहिये था. लक्ष्य का अर्थ है उसे  ना तो पेड़ दिखना चाहिये था और ना ही उस पर बैठी चिड़िया. दिखना चाहिये था पेड़ पर बैठी चिड़िया की आंख . पर समस्या यह है वह पेड़ देख रहा है और उस पर बैठी हुई बहुत सी चिड़िया , कबूतर , तोते , कौए आदि आदि. और कभी कौए पर  निशाना लगा रहा है तो कभी तोते पर. अभी क्या है कभी कांग्रेस पर वार करता है फिर उसको बीच मे ही छोड़ कर भाजप पर वार करने लगता है. अब अगर सभी को अपना दुश्मन बना लेगा तब तो लड़ाई जीत ही नही सकता. सारे मिल कर इस पर वार करेंगे
राजनीति का पहला अध्याय है पहले अपना लक्ष्य चुनो. और यही बात इसको समझ नही आ रही है.

हमारे पुराण और हमारा इतिहास हमे बहुत कुछ शिक्षा देता है. इसको चाहिये था  चाणक्‍य की तरह एक गुरु की, जो कि सही मार्ग दर्शन कर सके. महाभारत का युद्ध क्या पांडव जीत सकते थे अगर उनके साथ कृष्ण रूपी गुरु ना होते. राजनीति मे प्रवेश करना भी एक तरह से युद्ध  है और इस युद्ध मे अगर एक एक कर दुश्मन बनाये और फिर उसे पराजित करेगा तब तो जीत होगी पर अगर बहुत से दुश्मन बना लेगा और उनसे एक साथ  युद्ध करेगा तब इसको हार का सामना करना पड़ेगा.
अभी तो मुंशी प्रेमचंद कि  कहानी नमक का दरोगा की याद आ रही है, जिसमे अदालत नमक के दरोगा वंशीधर पर व्यंग्य कसते हुए कहती है नमक से हलाली ने उसके विवेक और बुध्दि को भ्रष्ट कर दिया”  कुछ ऐसा ही अरविन्द केजरीवाल के साथ है.

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