Wednesday 11 June 2014

माइग्रेन का आयुर्वेदिक इलाज


माइग्रेन का आयुर्वेदिक इलाज 
 मेरी जानकारी में  कुछ एक  ऐसे नुस्खे हैं जिनसे माइग्रेन से छुटकारा पाया जा सकता है।  आयुर्वेदिक  पद्धति से माइग्रेन के रोगी बहुत आसानी से ठीक हो जाते हैं। 

१. घरेलू उपचार में देशी गाय का ताजा घी सुबह-शाम दो  बूंद नाक में रुई से टपकाने से इस रोग में आराम होता है। 

२. पिसी हुई सफ़ेद मिर्च चौथाई चम्मच से भी कुछ कम , मिश्री या चीनी आधा चम्मच  , देशी घी आधा चम्मच , इन तीनो को मिला कर सुबह  नाश्ते से पहले खाये।  साथ में दूध या चाय भी ले सकते हैं।  पहले दिन से ही आराम महसूस होना शुरू हो जायेगा।  लगभग 10 से 15 दिन तक प्रयोग में ले।  

३. पोस्त दाना अर्थात खसखस एक चम्मच , 7 -8 मुनक्का बीज निकाल कर   , तरबूज के बीज एक चम्मच।  इन तीनो को रात में पानी में भीगा दे।  सुबह सिलबट्टे  पर  पीस ले। किसी छोटी कढ़ाई या पैन में  एक चम्मच देशी घी डाल कर ,  हल्का सा भून कर दूध के साथ सुबह नाश्ते से पहले खाए।  

४. सप्तामृत लौह किसी अच्छी आयुर्वेदिक दवाई बनाने वाली कम्पनी का ले।  एक से दो रत्ती , अगर गोली में है तो दो गोली सुबह -शाम देशी घी के साथ लेने से सभी तरह के मस्तिष्क विकारो से छुटकारा मिल जाता है।  
५. सुबह - सुबह योग करे , विशेष रूप  से अलोम -  विलोम 

६. अगर कब्ज की शिकायत रहती है तो एक चम्मच भर कर त्रिफला चूर्ण हलके गुनगुने जल से रात को सोने से पहले ले।  

यूं तो और बहुत से नुस्खे हैं परन्तु मै समझता हूँ कि इनमे से कोई एक - या दो को भी अगर अमल में लाएगा तो निश्चित रूप से उसे इस व्याधि से छुटकारा मिल सकता है।  

Wednesday 4 June 2014

क्या गोपी नाथ मुंडे की आकस्मिक मृत्यु के लिए दिल्ली ट्रैफिक पुलिस की कार्यप्रणाली भी जिम्मेदार है ?


कल बीजेपी नेता केंद्रीय मंत्री गोपी नाथ मुंडे की रोड एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई।  विभिन्न समाचार पत्रो में छपी खबरों  से पता लगा  कि घटना सुबह साढ़े छह बजे  की है।  उस समय रोड एकदम खाली थी।  रेड लाइट चल रही थी पर कोई पुलिस कर्मी   तैनात नहीं था।  मंत्री जी के ड्राइवर ने खाली सड़क देख रेड लाईट क्रास करने की चेष्टा की, तभी सामने से  इंडिका  कार आ रही थी। उसकी तरफ से ग्रीन लाइट थी। मुंडे की कार अचानक उसके सामने आ गई। इंडिका के ड्राइवर ने पूरी जोर से ब्रेक मारा, लेकिन तब भी कार घिसटते हुए मुंडे की कार से जा टकराई।

यह था कारण इस  एक्सीडेंट का।  अक्सर बहुत से एक्सीडेंट रेड लाईट के कारण ही होते हैं।  कुछ समय पहले मेरे घर के पास रहने वाले एक बहुत अच्छे दांतो के डाक्टर के साथ भी कुछ इसी तरह की घटना घटित  हुई थी।  वह रात के लगभग 11 -12  बजे दिल्ली में कहीं जा रहे थे ,  सड़क सुनसान थी , वह  रेड लाईट क्रॉस कर रहे थे , तभी एक्सीडेंट हुआ और वह कोमा में चले गए।  

अगर तिराहे या चौराहे पर ऐसे समय पर येलो लाईट जल रही हो तब लोग देखभाल कर सड़क पार करते हैं।  क्योकि उन्हें पता होता है कि इस समय ट्रैफिक कंट्रोल करने के लिए ट्रैफिक पुलिस नहीं है।   दिल्ली में अक्सर ऐसा देखने में आता है कि देर रात या बहुत सुबह भी रेड -ग्रीन लाइटे जल रही होती हैं ; हाँलाकि उस समय सड़को पर सन्नाटा पसरा होता है।  पुलिसवाले इनको चलता छोड़ कर चले जाते हैं।  ऐसे समय में इन लाइटों को चालू रखने का कोई अौचित्य नहीं है परन्तु क्या कर सकते हैं जबकि इतने पढ़े -लिखे अधिकारियो के दिमाग में यह बाते क्यों नहीं आती हैं।  
 इन्हे  तो पहले  यह समझना होगा कि इनको लगाया क्यों जाता है? पुलिस यह समझती है कि इन रेड लाईटो को लगा देंगे तो ट्रैफिक कंट्रोल हो जायेगा और एक्सीडेंट नहीं होंगे।  पर यह समझने को तैयार नहीं हैं कि जब सड़क पर ट्रैफिक ही बहुत कम या न के बराबर चल रहा है ऐसे समय पर इन्हे चालू रखना एक्सीडेंट को न्योता देना ही है।  
मैंने स्वयं इस बात को महसूस किया और अपने ग्वालियर यात्रा वृतांत में इस विषय पर लिखा भी था।  प्रस्तुत है  लेख के उस भाग के अंश।  

 "पाँच बजे से कुछ मिनट पहले ही  तैयार होकर  नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के लिए निकल पड़ा।  इस समय अच्छा - खासा अँधेरा छाया हुआ था।  सड़क पर एक - दो लोग ही  आते जाते दिखाई दे रहे थे।   बहुत ही कम ट्रैफिक इस समय सड़क पर चल रहा था।  
 सुबह के समय की खाली सड़क पर बिना किसी रूकावट के मोहन नगर से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन आधे घंटे में पहुँच गया।  हाँलाकि एक - दो जगह हमारे विद्वान पुलिसवालो ने रेड लाइट चालू कर रखी थी जिसका कि इस समय कोई औचित्य नहीं था।  ज्यादातर रेड लाइट को तवज्जो न देते हुए अपनी गाडी भगाए चले जा रहे थे और मै रेड लाइट  का सम्मान करता हुआ खड़ा सोंच रहा कहीं कोई पीछे से आकर ठोंक न दे।  लेकिन क्या किया जाय इन पुलिस वालो की सोंच का।  इनकी समझ को दाद देनी पड़ती है।  मै  समझता हूँ ऐसे समय पर दुर्घटना होने के ज्यादा चांस रहते हैं।"

मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि पुलिस अपने कार्यप्रणाली का फिर से गम्भीरता से विचार करे तभी वह सही मायने में जनता का भला कर पायेगी।