Saturday, 14 March 2015

क्या दिल्ली वर्ल्ड क्लास सिटी बन पायेगी

गंदगी 
झुग्गी झोपडी
झुग्गी झोपडी


कल मैं दिल्ली मेट्रो से दिलशाद गार्डन से पीतमपुरा तक गया।  रास्ते भर यही देखता रहा कि किस तरह से यह नेता लोग दिल्ली को world क्लास city बनाने की बात करते हैं।  केवल एक रास्ते में  ही जाने कितनी झोपड़ पट्टी , अवैध रूप से बसाई गई कालोनियां ,  गंदगी एवं कूड़े के ढेर देखनो को मिल रहे थे ।  यह तो एक रास्ते का हाल था जबकि पूरी  दिल्ली में हजारो अवैध रूप से बनाई  गई  बेतरतीब कालोनियां , झुग्गी झोपडी  हैं ,  गंदे नाले बह रहे हैं।
केजरीवाल जी ने भी अपने चुनावी घोषणा पत्र में दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी बनाने का वादा किया है , हमारे प्रधान मंत्री जी भी चाहते हैं कि दिल्ली वर्ल्ड क्लास सिटी बने।  परन्तु जो हालात दिल्ली के हैं उसे देख कर तो यही कहा जा सकता है कि दस साल अगर इसी पर कार्य किया जाय तब भी दिल्ली वर्ल्ड क्लास सिटी नहीं बन पायेगी।
कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट की सख्ती को देखते हुए यमुना किनारे बसी सभी  झुग्गी झोपडी हटा दी गई थीं।  लेकिन अब देखने में आ रहा है फिर से नई झुग्गी झोपडी यमुना किनारे बस गई हैं।
मोदी जी कहते है कि वह 2022  तक दिल्ली को झुग्गी झोपडी मुक्त कर देंगे।  सभी झुग्गी झोपडी वालो को  पक्के मकान मिल जायेंगे।  लेकिन यह सम्भव कहाँ है।
पिछले 35 सालो से तो मै देख रहा हूँ कि न जाने कितनी बार झुग्गी हटाई गई और इन झुग्गी वालो को मिटटी के मोल जमीन , मकान दिए गए लेकिन फिर भी दिल्ली की झोपड़ पट्टी की समस्या वहीँ की वहीं रही।  दिल्ली की बहुत सी कॉलोनियां तो झुग्गी वालो की ही हैं।
बहुत पहले मैंने एक हिंदी समाचार पत्र  में इस  विषय पर एक लेख पढ़ा था कि किस तरह से इन झुग्गी - झोपडी बसाने  वालो का सिंडिकेट इनको बसाता है।  इन्हे बसाने  में पुलिस , MCD , DDA  आदि सभी की मिली भगत रहती है।
कुछ वर्ष पहले की बात है जब समाचार पत्र  में पढ़ा था कि  NH 24 को निजामुद्दीन यमुना के पुल  से यूपी गेट तक  जल्द ही 8 लेन का किया जायेगा। मुझे नित्य इसी रास्ते से होकर ऑफिस जाना होता था , सड़क कम चौड़ी होने के कारण अक्सर ट्रेफिक जाम से जूझना पड़ता था।  मन में ख़ुशी हुई कि चलो ट्रेफिक की समस्या से छुटकारा मिलेगा।   लगभग दो वर्ष बाद इस पर कार्य शुरू हुआ क्योकि सड़क के किनारे हजारो झुग्गी-झोपडी बसी हुई थी , दो वर्ष उन झोपड़ पट्टी वालो के पुनर्वास में लग गए। मैंने देखा  सभी झोपड़ पट्टी वालो ने  अपने मकान तोड़ कर उसकी ईंटे वगैरह लेकर चले गए।  फिर जाकर सड़क चौड़ी करने का कार्य शुरू हुआ।
साल दो साल लगे और  सड़क चौड़ी हो गई।  मुश्किल से साल भर गुजरा होगा जो जगह बच गई थी उस पर फिर से झुग्गी - झोपडी  बसना शुरू हो गई।  इस समय  सैकड़ो झुग्गियां वहां पर हैं।
एक  अंतहीन सिलसिला चलता चला जा रहा है।  सही बात तो यह है कि ये भू माफिया हैं जो कि जहाँ कहीं  भी जगह देखी उस पर कब्जा करना शुरू कर देते है।  बाद में इन्ही झोपड़ पट्टी का किराया वसूलते हैं या फिर हजारो- लाखो रूपये में बेंच देते हैं।
बहुत से नेताओ , समाजिक कार्य कर्ताओ को इनसे बहुत हमदर्दी रहती है , जब  चुनाव होंगे इनके बारे में ही लुभावनी बाते  होंगी , क्योकि  इनसे थोक के भाव  वोट  मिलते हैं।  लेकिन मेरी नजर में तो यह खुल्ल्मखुल्ला खाली पड़ी जमीन पर कब्जा करके उसकी डकैती करते हैं।
आप कहते हैं कि इनके पास रहने की जगह नहीं है इसलिए यह दूसरे की या सरकारी जमीं पर अपना घर बसा रहे हैं।
मेरा सवाल है तो क्या जिसके पास खाने के लिए पैसे नहीं होते हैं और वह दूसरे के पैसे डकैती या चोरी करके हासिल करता है तो फिर वह भी जायज ठहराना चाहिए।  क्यों पुलिस उन्हें पकड़ती है , क्यों उन्हें जेल भेजती है।
एक बार मैंने पढ़ा था कि दिल्ली सरकार हर थाने की जबाबदेही तय करेगी जिस किसी थाना छेत्र में झुग्गी - झोपडी बसाई जाएगी उस एरिया के थाना इंचार्ज इसके लिए जिम्मेदार होगा ।  लेकिन व्यवहार में इसे लाया नहीं गया और उसी का यह नतीजा है कि दिन - प्रतिदिन झुग्गी बस्तिया बस्ती चली जा रही हैं।  मै तो कहता हूँ जिस दिन पुलिस की जबावदेही तय कर दी जाएगी उसी दिन से दिल्ली में इसका व्यापार खत्म हो जायेगा।

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