यूँ तो हिंदुस्तान के कई शहर हैं जो कि नित्य प्रतिदिन ट्रेफिक जाम से जूझते रहते हैं ; परन्तु दिल्ली की ट्रेफिक समस्या दिन -प्रतिदिन विकराल होती जा रही है। जितनी कार , दो पहिया वाहन इस शहर की सड़को पर दौड़ते हैं उतने शायद ही किसी भी महानगर में दौड़ते होंगे। सड़के जितनी चौड़ी होनी थी हो चुकी। अब और गुंजाइश नहीं। हर साल ढेर सारे वाहनो का इजाफा हो जाता है। सड़क पर इन वाहनो की भीड़ बढ़ती चली जा रही है। चौड़ी - चौड़ी सड़को पर चलते हुए वाहन, चलते कम रेंगते ज्यादा नजर आते हैं।
अभी कुछ दिन पहले मै शाम छह बजे भीकाजी कामा पैलेस से अपने घर जाने की लिए निकला, रात नौ बजे घर पहुँचा। यह हालत है दिल्ली की सड़को पर रेंगते हुए चलते वाहनो की। मै तो यही सोंच कर परेशान हो गया कि जो लोग रोज इन रास्तो पर चलते होंगे उन्हें कितनी कठिनाई का सामना करना पड़ता होगा।
दिल्ली के हालात यह हैं कि कई जगहों पर तो ठेली - रेहड़ी वालो ने इस कदर अतिक्रमण किया हुआ है कि सड़क के साथ - साथ फुटपाथ पर भी इन लोगो ने कब्ज़ा कर लिया है। जिस अधिकार के साथ यह लोग अपनी ठेली या दुकान लगाते हैं ऐसा लगता है जैसे यह जगह इनकी बपौती हो। पुलिस का काम है कानून - व्यवस्था बनाये रखना। लेकिन वह अपनी जिम्मेदारी को निभाना नहीं चाहती या यूँ कहा जाय कि उसे तो अपनी जेब गर्म करने से मतलब है , इन लोगो से हफ्ता वसूलना है ।
पैदल चलने वाला अलग परेशान , चले तो कहाँ चले , सड़क पर रेंगते हुए वाहन और फुटपाथ पर रेहड़ी वाले।
किस तरह से वाहनो की तादाद बढ़ रही हैं उसका एक उदाहरण दे रहा हूँ। यह बात है आज से दस वर्ष पहले की , घर के पास ही एक अपार्टमेंट्स की बिल्डिंग है। जिसमे रहने वाले अपनी कारें अपार्टमेंट्स की बिल्डिंग के अंदर ही खड़ी किया करते थे। अंदर जगह बची नहीं परन्तु और कारे आ गई इसलिए कुछ समय बाद देखा अपार्टमेंट्स की बाउण्ड्री से लगा कर कारे एक लाइन में खड़ी है। चूँकि सड़क काफी चौड़ी है इसलिए पिछले एक-दो साल से अपार्टमेंट्स की बिल्डिंग के अंदर एवं बाउण्ड्री से लगा कर दो लाइनो में कारे खड़ी होने
लगी । आज कल सड़क के दूसरी तरफ भी कारें खड़ी होने लगी हैं। जबकि अपार्टमेंट में कोई नया निर्माण हुआ नहीं है लेकिन कारो की गिनती बढ़ती जा रही है।
दिल्ली एवं उसके आस-पास के हालत यह है कि पहले कुछ एक लोगो के पास कार हुआ करती थी फिर घर - घर में कार हो गई और अब घर में जितने मेम्बर उन सभी के पास कार होती जा रही हैं।
वह बात दूसरी कि उनके पास कार को खड़ी करने की जगह नहीं है लेकिन कार होनी चाहिए , फुटपाथ है न खड़ी करने के लिए।
मुद्दे की बात यह कि जब इस तरह से कारें बढ़ती जाएँगी तो सड़क पर भी इनकी भीड़ बढ़ेगी ही। लोगो को मंजिल तय करने में कठिनाई होगी ही।
समस्या बड़ी है लेकिन समाधान सरकार के पास है कि अगर सरकार कारों को फाइनेन्स पर बेचना या खरीदना बंद करवा दे तो इनकी बढ़ती हुई संख्या पर रोक लग जाएगी।
अभी तो फाइनेन्स के बलबूते पर जबावदेही से बच निकलते हैं लेकिन तब लाखो - करोडो की कार खरीदते समय हिसाब भी देना पड़ेगा इनकम टैक्स वालो को।
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