मनुष्य हमेशा अपने भविष्य के लिए चिंतित रहता है। वह अतीत की सोचता है, भविष्य की सोचता है, क्योंकि डरता है वर्तमान से , वर्तमान के क्षण में जीवन भी है और मृत्यु भी। वर्तमान में ही दोनों है एक साथ है क्योंकि वह वर्तमान में ही मरेगा और वर्तमान में ही जियेगा । न तो कोई भविष्य में मर सकता है और न भविष्य में जी सकता है।
क्या तुम भविष्य में मर सकते हो? जब मरोगे, तब अभी और यहीं, वर्तमान के क्षण में ही मरोगे। आज ही मरोगे। कल तो कोई भी नहीं मरता। कल मरोगे भी तो कैसे? कल क्या आता है कभी? कल तो आता ही नहीं है। जब मर नहीं सकते कल में तो जियोगे कैसे? कल का कोई आगमन ही नहीं होता। कल तो है ही नहीं। जो है वह अभी है और यहाँ है हमारे वर्तमान में , फिर कल की बात ही क्यों ? लेकिन फिर भी वह भविष्य में ही जीना चाहता है, भविष्य के लिए ही चिंतित है ; जबकि सत्य यही है की वह वर्तमान में जी रहा है।
हमें अपने अतीत से प्रेरणा लेनी चाहिए , भविष्य की योजनाएं बनाना चाहिए एवं वर्तमान का आनंद लेना चाहिए। हम वर्तमान में जी रहे हैं इसलिए वर्तमान का आनंद लेना ही हमें जीवन जीने की कला सीखा सकता है। अतीत की भटकन से दूर , भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है , उसके लिए जिज्ञासा न कर , वर्तमान को आनन्दमय बनाये। यही है जीवन जीने की कला।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (16-04-2014) को गिरिडीह लोकसभा में रविकर पीठासीन पदाधिकारी-चर्चा मंच 1584 में "अद्यतन लिंक" पर भी है।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
एक सुखद अनुभूति होती है जब किसी रचना को आप लोग पसंद करते हैं।
Deleteसधन्यवाद।
अच्छा जीवन-दर्शन है !
ReplyDeleteएक सुखद अनुभूति होती है जब किसी रचना को आप लोग पसंद करते हैं।
Deleteसधन्यवाद।