केंद्र सरकार के एक और राज्य तेलांगना पर मुहर लगाते ही अन्य छुट भैय्यो नेताओ ने अन्य राज्यों के टुकड़े करने के लिए मोर्चा खोल दिया है । वैसे इस खेल में कई बड़ी - बड़ी राजनीतिक पार्टियां भी अपनी रोटी सेकती नजर आ रही हैं। क्योकि अंत में तो सत्ता तो इन्ही के पास आनी है।
सोंचने की बात है कि छोटे - छोटे राज्यों की मांग का रहस्य क्या है। छोटे - छोटे राज्य यानि कि अधिक से अधिक लोगो के हाथ में सत्ता का सुख। बड़े राज्य होने पर सत्ता का आनन्द कम लोगो को मिल पाता है वहीँ छोटे - छोटे राज्य होंगे तो यही सुख अन्य लोगो को मिल सकता है।
कुछ एक राजनितिक पार्टियाँ का यहाँ कहना कि छोटे राज्य होंगे तो राज्य का विकास अधिक होगा। यह केवल एक कपोल कल्पना है जिसे कि जनता को बेबकूफ बनाने के लिए प्रयोग में लाते हैं।
हर नेता मुख्यमंत्री पद का स्वाद चखना चाहता है, जो कि केंद्रीय मंत्री से कही ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, अगर ऐसा नहीं होता तो ममता बनर्जी रेल मंत्री का पद त्याग कर मुख्य मंत्री बनना नहीं पसंद करती।
बहुत दिनों से चौधरी अजित सिंह अलग हरित प्रदेश की मांग कर रहे है। क्यों कर रहे हैं क्योकि जानते हैं कि उनकी पार्टी कभी भी उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार नहीं बना सकती। हाँ अगर उनके मन मुताबिक थोड़े से जिलो को जोड़ कर अगर एक छोटा सा राज्य बना दिया जाय तो शायद मुख्यमंत्री बनने का सपना साकार हो जाय।
न्यूज पेपर में खबर छपी " बलिदान के लिए तैयार रहे: अजित " आम बेबकूफ लोगो को भ्रमित करके उनको बलिदान के लिए तैयार रहने की बात की जा रही है।
लोगो से क्यों बलिदान करने को कह रहे हो, पहले खुद दो , लेकिन नहीं, अगर इन्होने बलिदान दे दिया फिर सत्ता का सुख फिर इन्हें कैसे मिलेगा। तभी दूसरो को प्रेरित कर रहे हैं। यह हुई न बात।
कुछ ऐसी ही गणित अन्य राज्यों के नेता भी लगाये रहते हैं।
जनता को क्या मिलता है? कुछ भी तो नहीं, उल्टे परेशानी और बढ़ जाती है। बार्डर पर चेकिंग, सामान लाने, ले जाने की अलग से मुसीबत। सबसे ज्यादा तो राज्य के बार्डर के आस -पास रहने वालो को झेलनी पड़ती है। सबसे बड़ी बात कि इन राज्यों का खर्च तो जनता को ही भुगतना पड़ता है।
मुझे याद है , उत्तराखंड बनाने के लिए क्या कुछ नहीं किया इन उत्तराखंड के लोगो ने। मुरादाबाद चौराहा कांड तो कभी भी इन लोगो के जेहन से कभी नहीं निकलेगा। कैसे भूल सकते हैं ,
मुलायम सरकार ने जो इन पर कहर बरपाया था। पर क्या मिला इन उत्तराखंड के लोगो को। अच्छा उत्तराखंड अलग बना कर भी क्या हासिल कर लिया उत्तराखंड के लोगो ने। आज भी हजारो की संख्या में वहां के लोग पलायन करके दिल्ली और अन्य नगरो में जीवका उपार्जन के लिए आ रहे हैं। लाखो वहां के लोग यहाँ रह रहे हैं। वापस तो अपने राज्य चले नहीं गए, फिर यह सब क्यों? जहाँ तक विकास की बात है तो यह सब एक ढोंग है, इसके अतिरिक्त कुछ नहीं।
कभी बीजेपी की सरकार तो कभी कांग्रेस की सरकार वहां पर बनती है। जिन लोगो ने अलग उत्तराखंड के लिए संघर्ष किया उनकी तो आज तक वहां सरकार नहीं बनी। लेकिन कौन समझाए इन बेबकूफ लोगो को जो इन नेताओ के बहकावे में आकर आत्मदाह कर लेते हैं। सरकारी सम्पतियो को आग के हवाले कर देते है, और पुलिस की लाठियां खाते हैं। । और बाद में इनके हिस्से में आता है टैक्स का बोझ।
कभी बीजेपी की सरकार तो कभी कांग्रेस की सरकार वहां पर बनती है। जिन लोगो ने अलग उत्तराखंड के लिए संघर्ष किया उनकी तो आज तक वहां सरकार नहीं बनी। लेकिन कौन समझाए इन बेबकूफ लोगो को जो इन नेताओ के बहकावे में आकर आत्मदाह कर लेते हैं। सरकारी सम्पतियो को आग के हवाले कर देते है, और पुलिस की लाठियां खाते हैं। । और बाद में इनके हिस्से में आता है टैक्स का बोझ।
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