मेरा यह मानना है कि जितने ज्यादा कानून बनाये जाते हैं उतना ही ज्यादा भ्रष्टाचार बढ़ता है। ज्यो - ज्यो हम नए - नए कानून बनाते हैं त्यों - त्यों ही उस कानून को पालन करवाने वालो की मुस्कान बढ़ जाती है , जेब गर्म करवाने का नया हथियार मिल जाता है। इतने कानून हैं कि अगर कोई बच के निकलना चाहे तो भी नहीं निकल सकता। इतने सारे कानूनों का चक्रव्यूह है अगर आप एक से निकलने की कोशिश करेंगे तो दुसरे में फंस जायेंगे। मैंने यह महसूस किया है कि इसमें सबसे ज्यादा फंसता है बिजिनेसमैन। इस बात को वही समझ सकता है जो बिजिनेस कर रहा है। सरकार ने एक बिजिनेसमैन के लिए जो कि अपनी छोटी सी भी फैक्ट्री चलाना चाहता है, उसके लिए इतने कानून बना रखे हैं कि बिना रिश्वत दिए वह बिजिनेस चला ही नहीं सकता। चलने ही नहीं देंगे यह कानून के पालनकर्ता। कभी ESI का इंस्पेक्टर तो कभी PF का इंस्पेक्टर, कभी लेबर लॉ का ,कभी फैक्ट्री एक्ट का ,कभी POLLUTION का या फिर फायर बिग्रेड का, सेल्स टैक्स , सर्विस टैक्स , इनकम टैक्स और न जाने कितने टैक्स और कितने डिपार्टमेंट पहुँच जाते हैं कानून के पैरोकार बन कर। निपटो आप कितनो से निपटोगे यही आप को निपटा देंगे।
इन सब कानूनों का दर्द तो वह बिजिनेसमैन ही समझ सकता है जो बिजिनेस कर रहा है इन कानून के रखवालो का क्या , इन्हें तो अपनी कमाई से मतलब होता है।
कुछ समय पहले की बात है एक दिन मेरे एक मित्र का अमेरिका से फोन आया। बहुत सारी वहां की विशेषताओ के बारे में बताने लगा बाद में विशेष रूप से बताने लगा कि यहाँ अमेरिका में अगर कोई यह कहे कि उसने रिश्वत दे कर अपने आप को बचा लिया तो वह झूठ बोलता है वैसे ही हिंदुस्तान में कोई यह कहे कि वह वगैर रिश्वत दिए बच गया तो वह भी झूठ बोलता है।
मुझे उसकी यह बात बहुत अच्छी लगी। एक कटु सत्य उसने कहा था।
कुछ समय पहले मै एक फैक्ट्री के ड्राइवर के पेमेंट वाउचर चेक कर रहा था। TV बनाने की कम्पनी थी उनके अपने दो ट्रक थे जिससे कम्पनी के टीवी और दूसरे प्रोडक्ट डिस्ट्रीब्यूटर के पास भेजे जाते थे। उन वाउचरो में कुछ एक वाउचर ट्रैफिक चालान के थे, जो कि कुछ इस तरह से थे , पहला चालान था गाड़ी में N/P यानि कि नेशनल परमिट आधा लाल और आधा नीले रंग के गोल सर्किल में नहीं लिखा था। इस कारण चालान किया गया था।
दूसरा चालान हॉर्न बजाने के लिए हाथ से भोपू बजाने वाला नहीं था पता लगा प्रेशर हॉर्न मना है। मैंने ड्राइवर से पूछा क्यों नहीं रखते हो, वोला साहब कई बार खरीद चुके हैं रात में गाड़ी कही कड़ी कर दी तो सुबह गायब मिलता है।
तीसरा चालान गाड़ी पर कम्पनी ने अपने टीवी का स्लोगन लिखा हुआ था इसलिये किया गया था।
चौथा चालान गाड़ी में दूसरा ड्राइवर रात के सफ़र में जरुरी है इसलिए था।
इसी तरह के कुछ अन्य चालान लगे थे। मतलब यह कि अगर ट्रैफिक पुलिस ने एक बार हाथ दे कर रोक लिया तो बिना चालान कटाये या वगैर कुछ लिए - दिए बच नहीं सकते।
यह तो एक छोटा सा उदहारण दिया अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए अन्यथा यह बात तो सभी समझते हैं किस तरह से कानूनों का पालन करवाते हैं यह लोग।
एक कम्पनी की एक्सपोर्ट शिपमेंट जा रही थी। बिल के ऊपर कम्पनी का सेल्स टैक्स नम्बर नहीं लिखा था। माल पकड़ गया। दो अब हर्जाना, वह भी हजारो में।
एक कम्पनी ने बिल पर सेल्स टैक्स नम्बर तो लिखा पर एड्रेस रजिस्टर्ड आफिस का लिख दिया, फैक्ट्री जहाँ से माल बन कर एक्सपोर्ट के लिए जा रहा था , नहीं लिखा, अब दो जुर्माना। छोटी - छोटी सी गलतियों को सुधरवाया भी जा सकता है पर नहीं। अगर ऐसा किया तो हजारो - लाखो के वारे - न्यारे कैसे होंगे।
यह एक ऐसी टीस है जो हर बिजिनेसमैन को झेलनी पड़ती है।
ऐसे - ऐसे आफिसर है जो आते ही कहते हैं हमने लाखो रूपये दे कर अपना ट्रांसफर करवाया है। कमाने के लिए आये हैं।
नीचे से लेकर ऊपर तक व्यवस्था ही ऐसी बन गई है। जिसको बदलना नामुमकिन ही है।
आज ही दैनिक जागरण में खबर छपी है। दुसरे पेज पर हेडिंग है " दिल्ली का हर आदमी देता है सालाना 16 हजार घूस"
अभी कुछ दिन पहले फायर बिग्रेड के इंस्पेक्टर से बात हो रही थी, बताने लगे बीस पॉइंट वह चेक करते हैं तब आपको फायर सर्टिफिकेट मिलेगा तब जा कर फैक्ट्री चला सकते हैं।
लो कर लो बात।
मैंने कहा ऐसा क्यों, कहने लगे वर्कर की , फैक्ट्री की सेफ्टी का सवाल है। मन ही मन सोंचा और जो सरकारी आफिसो में आग लगती रहती है उसका क्या तब यह बीस पॉइंट कहाँ जाते हैं।
जहाँ जाओ वहीँ यही देखने को मिलता है कि पहले कानून का हौवा दिखाया जाता है फिर लेने- देने की बात के साथ निपटारा करने की बात शुरू हो जाती है।
टाटा टी के विज्ञापन में अक्सर देखने को मिलता है कि वह भी इस भ्रष्टतंत्र से त्रस्त हैं। इसलिए अपने विज्ञापन के माध्यम से अपनी बात कह रहे हैं।
अभी कुछ दिन पहले मै मोहन नगर से दिलशाद गार्डन , दिल्ली बार्डर जाने के लिए सवारी टैम्पू पर बैठा। उसने मुझे बार्डर से कुछ पहले ही उतार दिया। मैंने उससे कहा कुछ टैम्पू तो आगे उतार रहे हैं , तुम पहले क्यों उतार रहे हो, बोला वह लोग तीन हजार रुपया महिना देते हैं हम चक्कर के हिसाब से देते हैं इसलिए आगे नहीं जा सकते।
मन में आया क्या करेगा अन्ना हजारे का लोकपाल यहाँ पर। हर तरफ तो गोल माल है।
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