Wednesday, 8 May 2013

क्या प्रजातंत्र मूर्खो का शासन है



शेक्सपियर ने कहा था प्रजातंत्र मूर्खो का शासन है। कुछ ऐसा ही दिखता  है हाल में हुए कुछ राज्यों के चुनावी परिणामो पर। 
एक तरफ देखता हूँ प्रतिदिन  न्यूज पेपर में बढती हुई मंहगाई पर चर्चा हो रही होती है, चर्चा हो रही होती है बढ़ते हुए अपराधो पर  चिंता व्यक्त की जा रही होती है कि इस कदर  बढती हुई मंहगाई  की  मंहगाई  सुरसा के  मुंह की तरह बढती जा रही है। दूसरी तरफ केंद्र  की सरकार के  नित्य नए घोटाले जनता के सामने रहे हैं पर फिर भी अगर जनता भ्रष्ट लोगो को ही अगर चुनती है तो इसका अर्थ क्या हैफिर तो यही  कहना पड़ेगा कि  प्रजातंत्र मूर्खो का शासन है।
जनता क्या है हम और आप ही तो जनता है फिर यह कैसी सोंच है हमारी कि हमारे लिए ईमानदारी और नैतिक मुल्य कुछ भी नहीं है। हमें भ्रष्ट लोग ही प्रिय हैं। कुछ साल पहले हमें भ्रष्टाचार से इतनी चिढ थी कि हमने केवल उनके मंत्री के  आरोपों के कारण ही राजीव गाँधी से सत्ता वापस ले ली थी। पर आज इन वर्षो में हमारा इतना नैतिक पतन हो गया है कि हमें सच या झूठ में  अंतर क्या है यही नहीं दिख रहा है। हमने घोटालो और भ्रष्टाचार की माला अपने गले में पहन ली है। हम इन्हें सत्ता का ताज पहना कर महिमामंडित कर रहे हैं 
 इसी सन्दर्भ में चेतन भगत ने अपने ट्वीट में लिखा " भाजपा ने भ्रष्ट मुख्यमंत्री को हटा दिया। वह कर्नाटक में चुनाव हार रही है। अगर वह उन्हें साथ रखती तो जीत जाती। अगर मतदाता ही भ्रष्टाचार की परवाह नहीं करते तो फिर दोष किसे दें।
इस तरह के परिणामो से हर वह व्यक्ति व्यथित हो जाता है जो समाज से उच्चतर मानदंडो की उम्मीद करता है पर जब नैतिक मूल्यों का ह्रास होता हुआ देखता है तो मन में टीस तो होती ही है। कितना नैतिक पतन हो चुका  है हमारा। 
एक बात और जब इस तरह से हम भ्रष्टाचार, घोटाले  करने वालो को समर्थन देते हैं तब तो उनका और मनोबल उठ जाता है। टीवी चैनल पर देखे,  जीत हासिल करने के बाद  किस तरह गर्व के साथ हम पर मुस्करा रहे होते हैं। बड़े आये भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले। देखो हम फिर जीत गए। 
पर इन सबसे होता क्या है हम विश्व अर्थव्यस्था में, देश के विकास में  और पिछड़ते चले जा रहे हैं। हम आज से साठ  साल पहले भी विकासशील थे आज भी विकासशील हैं। विश्व में कई  छोटे - छोटे देश जो कि हमारे एक राज्य से भी छोटे हैं आज  विकसित हैं। हम उनसे टेक्नोलोजी उधार मांगते हैं। उनके उत्पाद खरीद रहे होते हैं। क्योकि हम इतने सछम नहीं हैं। 
जब तक समाज इन लोगो को समर्थन देता रहेगा तब तक हमें कोई भी धमकी दे कर हमारी भूमि को हथियाने की चेष्टा करता रहेगा। 

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