Tuesday, 30 April 2013

अमरिकी जाँच पर बवाल क्यों

अगर हम भावनाओं में वह  कर ना बात करे तो सच यह है कि अमरिकी अपनी सुरक्षा  को लेकर बहुत चौकन्ने हैं। कुछ समय पहले मैंने पढ़ा था कि किसी फिल्म की शूटिंग के लिए कमल हासन वहां गए थे। अमरिकी  अधिकारियो ने उनसे वहां आने का उद्देश्य पूछा, उन्होंने मजाक में बोल दिया कि शूट करने आया हूँ। बताते हैं उनका इतना कहना भर था तुरंत अमरिकी  अधिकारियो ने उन्हें अलग बैठा लिया और लगे पूछ- ताछ करने वह तो भला हो कि यूनिट के  अन्य  लोग साथ थे जिहोने बड़ी मुश्किल से अमरिकी  अधिकारियो को समझाया तब कहीं उन्हें जाने को मिला।
अब अगर यह कहें कि खान लोगो को वह लोग संदेह की नजर से देखते हैं तो  पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के आगे तो खान नहीं लगा है पर उनकी भी जाँच पड़ताल हुई थी जो कि नहीं होनी चाहिए थी, पर उन्होंने इस बात को तूल नहीं दिया। बड़ी ही शालीनता से कह दिया यह तो मात्र सुरक्षा  जाँच थी। 
दूसरी तरफ इस तरह के लोग हैं जो बात  का बतंगड़ बना कर अपने आप को विशिष्ट साबित करने की चेष्टा में लगे रहते हैं। सही तो यह है कि जब आदमी के पास अथाह  पैसा  होता है या अधिकारों से लबालब होता है तब वह यही सोंचता है कि मै जहाँ भी जाऊँगा वहीँ  लोग पलके बिछाए प्रहरी की तरह खड़े हो जायेंगे। एअरपोर्ट से होटल तक रेड कारपेट बिछा होगा। पर जब उन्हें साधारण नागरिक की तरह व्यवहार मिलता है तब गुस्सा तो आएगा ही। 
वैसे भी कहा गया है कि "प्रभुता पाई काहू मद नाही"
किसी को पावर का नशा है तो किसी को पैसे का या सेलेब्रिटीज का। 
एक बात और है कि इस सारी  चर्चा के बीच न्यूज पेपर में कुछ लोग यह कहते सुने गए कि आज इन्हें अपना अपमान लग रहा है पर जब यह दुसरो का अपमान करते थे, ट्रेन अटेंडेंट को मुर्गा  बना देते थे, बड़े - बड़े अधिकारियों का अपमान करते थे तब क्या उसका अपमान नहीं होता था। आज जब खुद पर गुजरी है तो तिलमिला रहे हैं। कहते हैं ना कि "ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती " 
इनसे पहले शाहरुख़ खान भी खूब भड़के थे क्योकि वह भी तो किंग खान के नाम से जाने जाते हैं, पैसा है गाँधी परिवार से मेल -मुलाकात है , अच्छे सम्बन्ध हैं और इन सबके बाबजूद अमेरिका की मजाल की वह वजाय  रेड कारपेट बिछाने के जाँच करने लगे तो गुस्सा तो आएगा ही। 
यह सब तो बेकार की बात है कि हम मुसलमान है इसलिए हमें  नीचा दिखने के लिए अमेरिका ऐसा करता है। अगर ऐसा होता तो अमेरिका इन्हें वीसा ही नहीं देता। क्या बिगड़ लेते यह अमेरिका  का। यह तो मुसलमान होने का फायदा उठा  कर ऐसी बाते करते हैं। 
अंत में एक तरफ तो कहते हो" सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा " फिर क्यों जाना चाहते हो  वहां 
कुल मिलाकर एक ही बात समझ में आती है कि यह सब व्यक्तिगत अहंकार के अतरिक्त कुछ नहीं है। 

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