Wednesday, 20 November 2013

ग्वालियर में घुमक्कड़ी भाग-1

काफी समय से आफिस के कुछ कार्यवश ग्वालियर जाना था।   दिल्ली से   ग्वालियर  जाने के लिए ट्रेन सबसे अच्छा साधन है लगभग 25 -26 ट्रेन ग्वालियर हो कर जाती हैं. आमतौर पर ट्रेन  से ग्वालियर  तक का सफ़र 5 से 6  घंटे का  है. हाँ राजधानी या शताब्दी ट्रेन, साढ़े तीन घंटे से कम समय में ही पहुँचा देती हैं. मुझे वहाँ पर एक सरकारी कार्यालय में काम था और वह भी मुश्किल से 10 -15 मिनट का. कई बार ट्रेन का टाइम टेबल देख डाला पर फिर भी असमंजस में था क्योकि इन 10 -15  मिनट की मीटिंग के चक्कर में मेरा पूरा दिन ख़राब हो रहा था।  दूसरी परेशानी यह थी कि कुछ ट्रेन नई दिल्ली स्टेशन से चलती हैं और कुछ निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से।  अगर सुबह निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से जाता हूँ तो बाइक वहीं खड़ी  करनी पड़ेगी अत;  लौटते समय भी निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन की ही ट्रेन से लौटना पड़ेगा।   काफी सोंच विचार कर निर्णय किया कि शताब्दी से जाकर वापसी भी शताब्दी ट्रेन से की जाय. परेशान इसलिए था कि सुबह 6  बजे की शताब्दी से जाने का मतलब है कि सुबह चार बजे सोकर उठना और  घंटे भर में तैयार होकर पाँच  बजे से कुछ पहले ही घर से निकलना पड़ेगा तभी समय से शताब्दी ट्रेन पकड़ सकूंगा।
मजबूरी थी जाने की इसलिए जाने - आने की टिकट शताब्दी ट्रेन से   12 नवम्बर की बुक करवा ली।  शताब्दी से जाने - आने का प्रोग्राम बनाने का मुख्य कारण यह था कि कम से कम यह ट्रेन  समय से चल कर समय से पहुँचा देती हैं।  अब समस्या थी कि सारे दिन वहाँ पर करूँगा क्या , तो कैमरा रख  लिया कि कुछ नहीं तो वहाँ पर सिंधिया महाराजा का महल वैगेरह ही घूम लूँगा । बाकी लिखने के लिए तो कुछ मसाला तो होगा नहीं। नंदन से कहूंगा कि  फोटो हैं इन्हे ही प्रकाशित कर दो. वैसे भी नेट पर भी जाकर सर्च किया तो ऐसा लगा कि ग्वालियर कोई ऐसी जगह नहीं है की घुमक्कड़ी की जाय।  मेरा एक सहायक भी ग्वालियर का रहने वाला था वह भी कोई ख़ास घूमने की जगह नहीं बताता था।  लेकिन जब वहाँ पर पहुँचा तब ऐसा लगने लगा कि यहाँ पर तो घुमक्कड़ी के लिए बहुत कुछ है और मेरी पोस्ट अगर ढंग से लिखना  शुरू  किया तो कम से कम तीन भागो में प्रकाशित  हो पायेगी।
यह तो हो गई प्रस्तावना, मेरे ग्वालियर टूर की अब बात आगे बढ़ाता हूँ। रात लगभग बारह बजे के बाद ही सोया हूँगा ,  सोते समय सुबह चार बजे का अलार्म लगाया था पर साढ़े तीन बजे ही नींद खुल गई।  आँखे बंद किये बिस्तर पर लेटा  रहा , थोड़ी ही देर में  अलार्म बजने लगा।   अलार्म बजते ही बिस्तर छोड़ कर खड़ा हो गया।  नित्यकर्म से निवृत होने , नहाने आदि में समय तो लगता ही है।   पाँच बजे से कुछ मिनट पहले ही  तैयार होकर घर से निकल पड़ा  नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के लिए।  इस समय अच्छा - खासा अँधेरा छाया हुआ था।  सड़क पर एक - दो लोग ही  आते जाते दिखाई दे रहे थे।   बहुत ही कम ट्रैफिक इस समय सड़क पर चल रहा था।  वैसे भी आजकल सर्दियां आरम्भ हो चुकी हैं और इस सर्दी में  सुबह टहलने जाने वाले भी बहुत कम लोग ही होते हैं।  वहीँ गर्मियों में सुबह के समय टहलने जाने वाले लोगो की भीड़ मिल जायेगी। पार्को में अच्छी खासी भीड़ नजर आने लगती है।   कुछ ऐसा नजारा नजर आने लगता है  जैसे बरसात में जगह - जगह कुकरमुत्ते उग आते हैं।  पढ़ने वाले बुरा न माने मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही है।
हाँ तो सुबह के समय की खाली सड़क पर बिना किसी रूकावट के मोहन नगर से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन आधे घंटे में पहुँच गया।  हाँलाकि एक - दो जगह हमारे विद्वान पुलिसवालो ने रेड लाइट चालू कर रखी थी जिसका कि इस समय कोई औचित्य नहीं था।  ज्यादातर रेड लाइट को तवज्जो न देते हुए अपनी गाडी भगाए चले जा रहे थे और मै रेड लाइट  का सम्मान करता हुआ खड़ा सोंच रहा कहीं कोई पीछे से आकर ठोंक न दे।  लेकिन क्या किया जाय इन पुलिस वालो की सोंच का।  इनकी समझ को दाद देनी पड़ती है।  मै  समझता हूँ ऐसे समय पर दुर्घटना होने के ज्यादा चांस रहते हैं।
अजमेरी गेट पर बाइक को स्टेशन से बाहर पार्किंग में खड़ा करके स्टेशन पहुँचा।  इस समय स्टेशन पर काफी गहमा - गहमी थी।  पता लगा ट्रेन एक नंबर प्लेटफार्म से जायेगी और अजमेरी गेट की तरफ का प्लेटफार्म नंबर 16 है यानि की स्टेशन के दूसरे छोर  पर जाना था।  समय काफी था इसलिए आराम से जाकर अपनी सीट पर बैठ गया।  ट्रेन सही समय से रवाना हुई।  थोड़ी देर बाद ही सुबह की चाय सर्व की जाने लगी।  आठ बजे सभी को सुबह का नाश्ता भी सर्व किया जाने लगा।  मन में विचार आ रहा था कि इन ट्रेनो में यह अच्छी बात होती है कि हर काम समय से होता है।  आपको समय से नाश्ता - खाना सर्व किया जाता है।  ↓
हमारी कोच में 12 -15  कालेज  के लड़के  एवं   लड़कियो का ग्रुप भी सफ़र कर रहा था।  जहाँ पर इतने सारे इकट्ठे हो तब तो शोर-शराबा , हंगामा न हो तो ऐसा हो नहीं सकता।  सारे के सारे इन्जॉय कर रहे थे लेकिन उनके इस शोर - शराबे से अन्य लोगो को परेशानी हो रही थी।  मै भी सोंच रहा था कि नींद पूरी कर ली जाय।  काफी देर तक मै यही देखता रहा की शायद उनके पास बैठे सह यात्री इन लोगो को थोडा शांत रह कर इन्जॉय करने के लिए बोलेगा पर सारे के सारे एक दुसरे का मुंह देख रहे और बर्दाश्त कर रहे थे।  मुझसे रहा नहीं गया तो मै अपनी सीट छोड़ कर उनके पास जाकर खड़ा हो गया।  वह  सारे मेरी ओर देखने लगे , मैंने कहा इस कोच में आप लोगो के साथ अन्य लोग भी सफ़र कर रहे हैं आप लोगो को उनका भी ख्याल रखना चाहिए।  यह कह कर मै अपनी सीट पर आकर बैठ गया।  मेरी बात का असर यह हुआ कि अब वह लोग इन्जॉय तो करते रहे परन्तु जो तेज आवाज से शोर - शराबा कर रहे थे उसमे लगाम लगा दी थी।  अच्छा लगा जब यह कम उम्र के लोग अपने से बड़े की बात का बुरा न मानते हुए सम्मान करते हैं।  यहाँ पर इस बात को लिखने का मेरा आशय यह है कि  कई लोग बर्दाश्त करते रहते हैं पर अपना विरोध दर्ज करवाने में संकोच महसूस करते हैं।


ट्रेन ने समय से सुबह के लगभग साढ़े नौ   बजे ग्वालियर स्टेशन पर उतार दिया।  स्टेशन से बाहर निकल कर आया तो असमंजस में था कि अभी आफिस तो खुला होगा नहीं , क्या किया जाय।  मैंने फोन मिला कर अपने पूर्व सहायक से अपने आने की  उसे सूचना  दी पर उसने बताया कि वह ग्वालियर में नहीं है लेकिन साथ ही साथ बोला सरकारी आफिस है  वहाँ पर बारह बजे से पहले आपको कोई नहीं मिलेगा।  वहीँ पर एक ऑटो वाला पीछे पड़ा था कि चलिए साहब आपको  होटल में कमरा दिलवा देता हूँ।  मै घंटे - दो घंटे के लिए होटल में कमरा लेने के मूड में नहीं था मैंने उससे कहा चलो पहले आफिस चलते हैं बाद में कमरा लूंगा।  आफिस पंहुचा तो देखा बंद पड़ा है।  अभी दस भी नहीं बजे थे।  सोंचा होटल में चल कर आराम करते हैं बारह बजे आउंगा।  वहीँ पास में एक होटल में होटल ले लिया और आराम करने लगा।  लेकिन ऐसे मौके पर नींद नहीं आती है जब तक काम समाप्त नहीं हो जाता है।  बारह बजे से कुछ पहले ही मै दोबारा उसी आफिस में पहुँच गया।  अब तक कुछ लोग आ गए थे पर मुझे जिनसे मिलने गया था वह अभी तक नहीं आये थे।  मै बैठ कर उन सज्जन का इन्तजार करने लगा।  देखता हूँ थोड़ी - थोड़ी देर से एक - एक कर आफिस के कर्मचारी आ रहे हैं।  आते ही अटेन्डेन्स  रजिस्टर पर साइन करते और फिर बैठ जाते एक दूसरे से हाथ मिला कर गप-शप करने के लिए।  ज्यादातर सरकारी दफतरो का यही हाल देखने को मिल जाता है।  मुझे तो इन बाबुओ पर बल्कि तरस आता है कि आखिर  यह लोग करे तो क्या करे जब इनके पास काम है ही नहीं।  कितना कठिन होता होगा आफिस में इस तरह से समय  गुजारना ।
मैंने उन सज्जन को फोन करके बता दिया था कि मै उनके आफिस में इन्तजार कर रहा हूँ।  15 -20  मिनट में पहुँच रहा हूँ मुझसे कहा पर पूरे 45  मिनट के बाद वह सज्जन आये।  मुश्किल से पंद्रह मिनट की बात-चीत और मै फ्री ही गया।  बाहर आ कर देखा एक बजने वाला था।  मुझे ऑटो ड्राइवर ने बताया था कि पहले सिंधिया का महल देखने जाना चाहिए।  एक ऑटो वाले से बात की वह पचास रूपये में चलने के लिए तैयार हो गया।  कई घुमावदार रास्तो से होता हुआ ऑटो ड्राइवर ने मुझे महल के बाहर छोड़ दिया।
महल के प्रवेश द्वार पर ही अंदर जाने के लिए टिकट काउन्टर बना हुआ है।
प्रवेश द्वार 

 महल का प्रवेश द्वार 

प्रवेशद्वार के मध्य एक बड़ी तोप


महल के अंदर प्रवेश करते ही उसकी विशालता , भव्यता और राजसी  वैभव के दर्शन होने लगे।  इस शानदार बिल्डिंग को जय विलास पैलेस या जय विलास महल के नाम से जाना जाता है। प्रवेशद्वार के एक तरफ  ग्रेनाइट  पत्थर पर जय विलास पैलेस 1874 लिखा हुआ है और दूसरी तरफ ग्रेनाइट पत्थर पर महाराजा जीवाजी राव सिंधिया म्यूजियम लिखा हुआ है साथ में दो - दो छोटी तोपे  लगी हुई हैं ।   सिन्धिया राज घराने का निवास स्थान यही महल है।  महल के एक भाग को संग्रहालय बनाया गया है जहाँ पर सिन्धिया राज-परिवार के अतीत की झाँकी देखने को मिलती है।  प्रवेशद्वार के मध्य एक बड़ी तोप के दर्शन होते हैं।




महल के अंदर  गैलरी 

यहाँ पर आम भारतीयो के लिए टिकेट 60  रूपये का है।  विदेशियो के लिए और भी ज्यादा।  कैमरा या मोबाईल कैमरा  के लिए 70 रूपये का अतिरिक्त टिकेट लेना पड़ता है।  वहीँ पर एक - दो  गाइड भी घूम रहे थे।  उन्होंने  अपनी गाइड की सर्विस देने के लिए पूछा पर मैंने सोंचा महल में घूमना ही तो है , गाइड की क्या जरुरत , मैंने मना  कर दिया।  म्यूजियम में प्रवेश करते ही सबसे पहले महाराजा जीवाजी राव सिंधिया की पीतल की  स्टेचू लगी हुई है और वहीँ आस -पास की दीवारो पर सिंधिया परिवार के सदस्यो की फोटो लगी हैं।  इस गैलरी को पार करते ही सीढ़ियों से महल के प्रथम तल पर पहुँचते हैं।
महल  के बाहर एक फोटो मेरा भी
अब यहाँ पर महल के अंदर की फोटो देखें
महल के अंदर की फोटो
महल के अंदर की फोटो



महल के म्यूजियम में एक कलाकृति


यहाँ पर एक कमरे से दूसरे कमरे होते हुए महल के विभिन्न भागो में मै मंत्रमुग्ध घूम रहा था।  हर एक कमरा अपने सुनहरे अतीत और भव्यता  की दास्तान सुना रहा था।




महल के अंदर की फोटो

उस समय प्रचलित अस्त्र - शस्त्र

उस समय प्रचलित अस्त्र - शस्त्र



उस समय प्रचलित अस्त्र - शस्त्र

म्यूजियम में कांच  का मंदिर




महल के कमरो की छत 


महल के अंदर  गैलरी 

महल के अंदर  गैलरी 
महल की  छत से बाहर से  लॉन की फोटो 

महल के अंदर सीढियाँ

 इन सीढ़ियों से उतर कर हम महल के दूसरे भाग में पहुँचते हैं।  यहाँ पर उस समय सवारी में प्रयुक्त होने वाल तरह -तरह की बग्घी रखी हुई हैं।

2 comments:

  1. आपकी यात्रा लेख पढ कर मे भी ग्वालियर यात्रा कर आया हुं वाकई ग्वालियर मे देखने के लिए काफी कुछ है.

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