इस बार 2 अक्टूबर-2013 पर 2 दिन की छुट्टी लेने पर हम लोगों को 5
दिन मिल रहे थे इसलिए दिल्ली से दार्जिलिंग घुमने जाने का प्रोग्राम आफिस के लोगो के साथ बनाया।सभी लोग एक नई जगह घुमने जाने के लिए उत्सुक थे। हांलाकि मै 1996 में वहां गया था पर तब मै आफिस के काम से गया था वह भी एक दिन भी नहीं रुक सका था। वैसे भी मझे ऐसा लगता है कि अगर घुमने जा रहे हैं तो जब तक कुछ एक मित्र , साथी न हो तब तक घुमने का असली मजा नहीं आता है। प्रोग्राम तो करीब तीन महीने पहले
ही बनना शुरू हो गया था पर रेलवे की बुकिंग 60 दिन पहले ही आजकल होती है अत; जैसे ही बुकिंग शुरू हुई तुरंत ही हमने टिकेट बुक करा ली। हम 16 लोग थे सभी की टिकेट एक ही डिब्बे में नार्थ ईस्ट एक्सप्रेस से दिल्ली से नई जलपाईगुडी के लिए
बुक हो गई।
अभी टिकेट बुक करवाए 10 -15 दिन ही हुए थे कि तभी केंद्र सरकार ने एक नया राजनीतिक पैतरा चलते हुए अलग तेलांगना राज्य की घोषणा कर दी। और इस घोषणा के होते ही अलग दार्जिलिंग राज्य की मांग राख में दबी हुई चिंगारी की तरह सुलग उठी।
सोंचा अभी तो बहुत दिन हैं , कुछ दिन में सब कुछ शांत हो जाएगा। पूरा महिना गुजर गया पर दार्जिलिंग के हालात में कोई सुधार नहीं हुआ तब सोंचा कही और चलते हैं।
मन में आया क्यों न सिक्किम की राजधानी गंगटोक चला जाय। वहां के बारे में थोड़ी - बहुत जानकारी ही थी पर यह मालूम था कि
बहुत ही खुबसूरत प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर जगह है। गंगटोक के बारे में सबसे पहले घुमक्कड़ की साईट पर जा कर जानकारी हासिल करने की चेष्टा की। घुमक्कड़ पर कुछ एक लेख गंगटोक के बारे में मिल भी गए।
यह सोंच कर कि वहां जाने के लिए भी पहले ट्रेन से
नई जलपाईगुडी ही जाना होता है। टिकेट भी कैंसिल करवाना नहीं पड़ेगा। मैंने सबको गंगटोक चलने के लिए बोल दिया। अब क्या था कि टीम दो भागो में बाँट गई। आधे लोग गंगटोक की जगह
डलहौजी जाने के लिए प्रोग्राम बनाने लगे। पहले तो उनको समझाया कि डलहौजी में पांच दिन में बोर हो जाओगे। वहां जाना है तो कभी भी
दो - तीन दिन की छुट्टी में हो आना। पर वह लोग समझने को तैयार नहीं हो रहे थे।
अब मैंने महसूस किया कि एक टीम को बनाना और उन सबको बांध कर रखना कितना कठिन काम होता है। खैर मै भी एक बार जो सोंच लेता हूँ फिर वही करता हूँ। मैंने भी कह दिया अगर तुम लोगो को जाना है तो जाओ हम
तो गंगटोक ही जायेंगे।
यहाँ पर भी समस्या यही थी कि केवल एक पूरा दिन ही घूमने को मिल रहा है जबकि इतनी दूर जाकर भी अगर दो- तीन दिन न रहा जाय तो फायदा क्या। पर क्या करते सभी लोगो की छुट्टी का हिसाब भी तो देखना था।
सभी के लिए सुबह के नाश्ते और दोपहर के खाने का काफी कुछ प्रबंध मैं कर के चला था पर बाकी लोग भी कुछ न कुछ ले कर आये थे इसलिए ट्रेन में नाश्ता और खाना घर से लाये हुए से ही हो गया। ट्रेन का खाना खाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। ट्रेन में सभी लोग आपस में बाते करते , खेलते हुए चले जा रहे थे समय तेजी से गुजर रहा था। कोई बोरियत नहीं हो रही थी।
यह सुपर फ़ास्ट ट्रेन है आशा के विपरीत
ट्रेन नई जलपाईगुडी पहुँचते - पहुँचते लगभग साढ़े तीन घंटे लेट हो गई। अब समय काटे नहीं कट रहा था बस लग रहा था जल्दी से
ट्रेन नई जलपाई गुडी पहुँच जाय पर ज्यो - ज्यो स्टेशन नजदीक आ रहा था त्यों - त्यों ही ट्रेन थोड़ी सी चलती फिर रुक जाती करते - करते जैसे- तैसे नई जलपाई गुडी पहुँच गई।
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नई जलपाईगुडी स्टेशन को |
प्लेटफार्म से बाहर आकर गंगटोक जाने के लिए टैक्सी ढूढने की जरुरत नहीं पड़ी। कई टैक्सी वाले गंगटोक के लिए तैयार खड़े थे पर जब मैंने उनसे भाडा पूछा तो 2500/- से कम पर कोई तैयार ही नहीं था। जबकि इंटरनेट पर प्राप्त सूचना के आधार पर मै 150/- रूपये के हिसाब से
1500/- प्रति टैक्सी देने की बात कर रहा था। शायद वह पुरानी जानकारी थी फ़िलहाल इस समय 250 /- सवारी के हिसाब से टैक्सी गंगटोक जाती हैं। काफी मोल भाव के बाद 4100/- में दो टाटा सूमो से हम लोग गंगटोक के लिए दोपहर 12
बजे चल दिए।
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सिलीगुड़ी से गंगटोक जाने की रोड |
सिलीगुड़ी से बाहर निकलते ही मौसम काफी अच्छा होने लगा था। हल्की -हल्की रिमझिम शुरू हुई पर ज्यादा देर तक नहीं चली।
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गंगटोक जाने की रोड से सामने दिखते पहाड़ |
सिलीगुड़ी से लगभग 20 किलोमीटर आगे बढ़ते ही हमें तीस्ता नदी के दर्शन होने शुरू हो गए। अब हमारी कार तीस्ता के किनारे - किनारे आगे बढ़ रही थी।
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रास्ते में तीस्ता |
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रास्ते में साथ - साथ बहती तीस्ता |
यहाँ आकर पता लगा कि नई जलपाईगुडी से गंगटोक जाने का
रास्ता दार्जिलिंग के अंतर्गत आता है, आज दार्जिलिंग बंद का एलान किया गया था तभी रास्ते में पड़ने वाले छोटे - छोटे होटल , दुकाने बंद थे या आधा शटर खोल कर अपना काम चला रहे थे।
लगभग दो बजे टैक्सी ड्राइवर ने एक जगह दोपहर का खाना खाने के लिए टैक्सी रोकी। यहाँ पर भी बंद के कारण सुना सा पड़ा हुआ था। हम लोग ने भी एक छोटे से होटल में बैठ कर दोपहर का खाना खाया। खाना बहुत ही साधारण सा था। हाँ चाउमीन और मोमोज फिर भी ठीक थे। वैसे
भी आप जिस जगह जाते हैं अगर वही का खाना खाते हैं तो वह तो ठीक ही मिलेगा। यहाँ पर हम लोगो को करीब आधे घंटे से ज्यादा वक्त लग गया।
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रास्ते में तीस्ता के पास बने होटल , यहाँ दोपहर के खाने के लिए रुके |
खाने से निपटने के बाद फिर सभी लोग टैक्सी में बैठ गंगटोक के लिए चल दिए। तीस्ता नदी जो कि यहाँ की जीवन रेखा है उसके किनारे - किनारे हम लोग आगे बढ़ रहे थे। ज्यादातर बस्ती इस नदी के किनारे बसी हुई है। जिनमे झोपड़पट्टी नहीं बल्कि साफ - सुथरे मकान बने हुए हैं।
लगभग 4 बजे से पहले ही हम लोग सिक्किम के प्रवेश द्वार पर पहुँच गए। यहाँ पर हम लोगो से प्रवेश द्वार पर एक अधिकारी ने पहिचान पत्र मांगे। टैक्सी ड्राइवर
ने हमें पहले ही बता दिया था कि अपने - अपने पहिचान पत्र निकाल ले। हांलाकि ग्रुप में सबके पास होना आवश्यक नहीं होता है। मैंने जब उसे बताया कि हम सब एक ही ग्रुप में घुमने आये हैं तब उसने केवल एक -दो के देखने के बाद आगे जाने दिया।
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सिक्किम प्रवेशद्वार |
सिक्किम में प्रवेश करते ही हमारे दोनों तरफ ही पांच - छह मंजिलो के मकानों की कतारे नजर आने लगी। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हम हिल स्टेशन पर हैं। सुन्दर साफ - सुथरा क़स्बा था। पहाड़ो के घुमावदार रास्तो से होते हुए लगभग 4.30 बजे हम गंगटोक पहुँच गए।
अब हमें शहर के अन्दर होटल डेन्जोंग जाना था पर पता लगा कि यह बड़ी टैक्सी शहर के अन्दर नहीं जा सकती। वहां पर जाने के लिए छोटी टैक्सी से ही जाना होगा और उसमे भी 4
लोगो से ज्यादा नहीं बैठ सकते। हाँ सुबह आठ बजे से पहले अवश्य यह टैक्सी वहां जा सकती हैं।
शहर की परिवहन व्यवस्था इन छोटी टैक्सी पर ही टिकी हुई है। लोग या तो अपने वाहन से चलते है अन्यथा इन टैक्सी पर ही निर्भर रहते हैं। यहाँ पर ऑटो , टेम्पो , ग्रामीण सेवा आदि नहीं चलते हैं। सिर्फ छोटी कार वाली टैक्सी। इन छोटी टैक्सी का किराया भी ज्यादा नहीं है। पंद्रह रूपये सवारी के हिसाब से लोग सफर करते हैं।
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inside the hotel |
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inside the hotel |
हमें लाल बाजार, डेन्जोंग सिनेमा के साथ लगे हुए डेन्जोंग होटल जाना था
, टूरिस्ट समझ कर हम लोगो से वहां पर टैक्सी वाले 150/- रूपये प्रति टैक्सी मांगने लगे। मैंने होटल फोन कर जानकारी ले लेना उचित समझा कि यह लोग ज्यादा पैसे तो नहीं मांग रहे हैं। होटल वाले ने बताया कि
90 - 100 रूपये से ज्यादा नहीं लगता है। आप लोग टैक्सी स्टैंड से बाहर आकर टैक्सी कर लो। टैक्सी स्टैंड से बाहर सड़क पर आये तो एक ने 100/- रूपये मांगे तो हमें लगा सही भाडा मांग रहा है उससे 4
लोग होटल रवाना हो गए दुसरे ने 80/- मांगे उसके बाद दो
टैक्सी वाले 60/- रूपये में ही चल दिए। मतलब यह कि अगर आप मोल -भाव करना नहीं जानते या स्थानीय लोगो से नहीं पूछेंगे तो आपकी जेब ज्यादा हल्की
हो जाएगी।
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Denzong
Inn, Gangtok
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होटल ज्यादा दूर नहीं था 10 मिनट भी नहीं लगे वहां पहुँचने में। लेकिन अब तक शाम ढलनी शुरू हो गई थी और बूंदा - बांदी भी होने लगी थी। कुल मिलाकर मौसम बहुत ही खुशनुमा हो गया था।
यह होटल नेट सफरिंग करके ढूंढा था और मुख्य बाजार में होने के बाबजूद किराया काफी कम मैंने करवा लिया था। 800/- रूपये में हमें डबल बेड
रूम मिला था और सिंगल के लिए केवल 500 /- चार्ज किया था। वैसे भी आजकल सीजन भी नहीं था। होटल के मैनेजर राज कुमार से फोन पर ही सब कुछ तय हुआ। राज कुमार छेत्री अच्छी हिंदी बोल लेता था। होटल बहुत ही अच्छी लोकेशन में था। होटल बहुत पसंद आया। सभी लोग अपने - अपने कमरों में फ्रेश होने के लिए चले गए। सोंच तो यह रहे थे कि तैयार हो कर मार्किट घुमने चलेंगे। परन्तु अब बारिश तेज होने लगी थी। लगभग घंटे भर बाद बारिश थोड़ी कम हुई तो सब लोग छाते लेकर लालबाजार घुमने के लिए निकल पड़े।
Bahut sundar yatra varnan Rastogi ji. Gangtok ke photo dekhkar mazaa aa gayaa. Agle part ke intzar men.
ReplyDeleteमुकेश जी
Deleteमैंने आज ही आपका कमेंट पढ़ा , वैसे तो पार्ट 1 आज घुमक्कड़ पर भी पब्लिश हुआ है पर नंदन ने कुछ फ़ोटो हटा दिए हैं। शायद ज्यादा फोटो से साईट पर लोड ज्यादा पड़ता होगा। अच्छा लगा आपने कमेंट किये। वैसे इसमें कोई शक नहीं मुझे तो यह जगह बहुत सुन्दर लगी।
This comment has been removed by the author.
Deleteबढिया यात्रा वृतांत
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