हरिद्वार से यमनोत्री
इस वर्ष 2012 मे जब पता लगा की गंगोत्री – यमनोत्री के पाट 24 अप्रैल को खुल रहे है ,मन मे विचार आया की इस बार
दर्शन अवश्य हो जाएँगे. . पिछले साल ही जाना था पर कुछ कारण वश जा नही सका. अब जबकि द्वार अप्रैल मे खुल रहे थे इसलिए उम्मीद थी कि ज़्यादा भीड़ नही
होगी.आराम से दर्शन होंगे और ठहरने आदि की भी कोई समस्या नही आएगी. क्योकि जैसे- जैसे भीड़ बढ़ती है त्यो –त्यो ही हर तरह की परेशानी
भी आती है, आपको टॅक्सी कार , होटेल मँहगा मिलता है, , और सबसे बड़ी बात है कि आप तो दर्शन
के लिए वहाँ जा रहे है अगर वही ढंग से ना हो
तो यात्रा अधूरी लगती है. मन को संतुष्टि नही मिलती है . यही सोंच कर मै अपना प्रोग्राम
या तो शुरू मे बनाता हूँ या यात्रा के आख़िर
मे जब ज़्यादा भीड़ होने की गुंजाइश कम हो ,
पिछली साल मै अमरनाथ यात्रा पर गया था. जब वहाँ के फोटो फेसबुक पर
अपलोड किए तब हमारे कुछ मित्रो ने कहा कि अगली
बार जब भी यात्रा पर जाओ तो हमे भी साथ ले
चलना. अब जब मैने गंगोत्री-यमनोत्री का प्रोग्राम बनाया तो उनसे पूछा पर कोई भी साथ चलने को तैयार नही हुआ. एकला चलो रे की तर्ज पर मै अपनी
फैमिली के साथ 5 मई को सुबह 7 बजे से पहले ही मोहन नगर हरिद्वार
जाने के लिए पहुँच गया. अगले दिन पूर्णिमा थी इस कारण से कई बस वगैर रुके चली जा रही थी,टॅक्सी भी नही जा रही थी. ऐसा पहली बार हुआ वरना मोहन नगर से हरिद्वार जाने
की कभी समस्या नही होती है. हम हर बार आराम
से हरिद्वार पहुँच जाते थे , खैर एक बस रूकी. बस
मे काफ़ी भीड़ थी. चारो लोगो को अलग –अलग सीट मिल गई. कुछ सवारी तो खड़े-खड़े सफ़र कर रही
थी. 1 बजे हरिद्वार पहुच गये. होटेल पहले ही बुक कर लिया था ठहरने की कोई समस्या नही थी. अभी 20-25 दिन पहले
मै अपने और अपने साले के परिवार के साथ यहाँ
आए थे. और इसी होटेल हेवेन मे ठहरे थे. यह होटेल हर की पौड़ी के पास गंगा के सामने है. सामने बहती हुई गंगा के दर्शन होते रहते है. होटेल
साधारण है पर व्यू पॉइंट अच्छा है. इस बार भी यहाँ ही
ठहरने का प्रोग्राम बनाया था. रूम का किराया उसने 500 रुपये चार्ज किया. होटेल वाले से पहले ही बता चुके थे कि हमे आगे यमञोत्री – गंगोत्री जाना है और वहाँ जाने के लिए बस, टॅक्सी का इंतज़ाम कर दे. आम तौर पर हर होटेल वाले के टॅक्सी , बस ऑपरेटर वालो से कमीशन तय होता है और यह लोग इस तरह
का इंतज़ाम ठीक करवा देते है, मेरे पहुँचते ही होटेल वाले
ने कई जगह फोन मिलाने शुरू कर दिए. फिर बोला
इस समय छोटी कार से यमञोत्री – गंगोत्री जाना ठीक नही है क्योकि रास्ता काफ़ी खराब है आपको बड़ी गाड़ी बेलोरो, स्कॉर्पियो . टाइप लेनी होगी. उसने दोबारा एक दो लोगो
से बात कर के बताया की बेलोरो गाड़ी तय की है जिसका मुझे 5 दिन का किराया 2100 के हिसाब से 10500 देना होगा. मुझे लगा यह ठीक मोंग
रहा है , मैने हाँ कर दी. वेलोरो मे 8 लोग ट्रॅवेल कर सकते है पर हम 4
लोग ही थे, मैने दिल्ली मे अपने कुछ एक मित्रो को फोन भी किया कि 4
सीट खाली है
आ जाओ पर कोई भी इतने शॉर्ट नोटिस पर
चलने को तैयार नही हुआ. होटेल वाले ने बताया अगले दिन यानी
रविवार को सुबह 8 बजे कार आ जाएगी, चलने के
लिए तैयार रहे. अब सब लोग आराम करने लगे , शाम को हर की पौड़ी पर पहुँचे , पूर्णिमा पर गंगा स्नान के
लिए काफ़ी भीड़ होती है. हर की पौड़ी पर काफ़ी भीड़ हो रही थी. अभी आरती मे देर थी,
फटाफट गंगा मे डुबकी लगा ली. गंगा स्नान के थोड़ी देर
बाद आरती शुरू हो गई. इतनी भीड़ थी ना तो आरती
दिख रही थी और ना ही खड़े होने की जगह थी. पहले हरिद्वार मे गंगा आरती मे इतनी भीड़
नही होती थी पर अब तो हर जगह भीड़ ही भीड़ नज़र आती है.
आरती के बाद बाहर आने मे आधे घंटे से ज़्यादा वक्त लग गया . रात मे होशियारपुर के नाम से एक रेस्टोरेंट मे खाना खाया. इस रेस्टोरेंट का काफ़ी नाम है , खाना भी अच्छा होता है. दूसरे दिन यमञोत्री के लिए प्रस्थान करना था हम लोग 10 बजे होटेल पहुँच सोने की तैयारी करने लगे.
आरती के बाद बाहर आने मे आधे घंटे से ज़्यादा वक्त लग गया . रात मे होशियारपुर के नाम से एक रेस्टोरेंट मे खाना खाया. इस रेस्टोरेंट का काफ़ी नाम है , खाना भी अच्छा होता है. दूसरे दिन यमञोत्री के लिए प्रस्थान करना था हम लोग 10 बजे होटेल पहुँच सोने की तैयारी करने लगे.
हर की पौड़ी |
हर की पौड़ी |
हर की पौड़ी
|
06.05.2012.
आज रविवार को पूर्णिमा थी, हमारा होटेल गंगा के किनारे था ,
सुबह उठ कर देखा, दूर-दूर तक गंगा मे स्नान करने वालो
की भीड़ लग रही थी. हम भी नित्यकर्म से निवृत हो कर सुबह 7 बजे गंगा स्नान के लिए पहुँच गये. हर की पौड़ी पर नहाने वालो का हजूम लगा था. हर की पौड़ी के सामने जो बीच मे टैरेस बना हुआ है वहाँ भीड़ भी कम होती है और पानी भी कमर तक गहरा होता है. आराम से डुबकी लगा सकते है. यहाँ
पर भी नहाने के लिए काफ़ी भीड़ थी. नहाने के लिए स्थान ढूंड रहा था की तभी देखा 4-5 यरोपियन लेडी और
1-2 पुरुष भी वहाँ स्नान के लिए आए थे. उत्सुकता जागी, रुक कर देखने लगा, वह लोग एक-एक कर स्नान कर रहे थे
और उनके दूसरे साथी कपड़े का कर्टन बना कर
कपड़े बदलने मे मदद कर रहे थे. तभी देखा एक पंडा उनके पास गया फिर कुछ बात कर वापस
आ कर वहाँ घूम रहे 2 गंगा सेवा दल के नाम पर चंदा उगाहने वालो के साथ उनके पास पहुँच गया. थोड़ी देर के बाद देखता हूँ 500 रुपये का नोट
ले कर सेवादल के लोग विजये मुद्रा मे वापस लौट रहे थे.
मुझे देख कर बहुत गुस्सा आया. यह विदेशी तो हमारे मेहमान
है हमे इस तरह से उनसे चंदा वसूलने का कोई अधिकार नही. गंगा के नाम पर इन लोगो ने हर
की पौड़ी पर लूट मचा रखी है. जबकि इस तरफ
स्त्रियो के कपड़े बदलने की कोई व्यस्था नही है. हज़ारो लोग नहा रहे होते है और स्त्रियो
के कपड़े बदलने के लिए केवल हर की पौड़ी पर ही स्थान है. अब हर कोई तो हर की पौड़ी पर स्नान
कर नही सकता.
इससे पहले मै
जब कभी हर की पौड़ी जाता था तब उन लोगो को दान अवश्य करता था पर इस बार
इन लोगो की हरकत देख कर मन वितृष्णा से भर गया. कई बार इन लोगो ने दान माँगने की चेष्टा की पर मैने निश्चय कर लिया था की इन पड़े
लिखे भिखारियो को एक पैसा भी नही दूँगा. बताते है लाखो रुपये दान के रूप मे बटोरते
है पर हर की पौड़ी के आस-पास कपड़े बदलने की व्यस्था नही कर सकते. यहाँ मैने देखा है
अगर आप यहाँ थोड़ी देर ठहरते है और दान दे कर रसीद ले भी लेते है पर थोड़ी- थोड़ी देर के बाद दूसरा आ जाएगा,
फिर तीसरा आ जाएगा. जब तक आप हर की पौड़ी पर रहते है यह क्र्म चलता रहता है. आप को बार-बार
रसीद दिखानी होती है. बताना होता है भय्या हम दान कर चुके है, पर यह यही पीछा नही छोड़ते
है फिर कहेंगे हम भंडारा चलाते है उसकी रसीद कटवा लो. इस विषय पर मैने वहाँ के डी.
म. को मेल भी भेजी पर कोई जबाब नही आया. स्नान के बाद वापस
होटेल पहुँच कर यमञोत्री जाने के लिए समान
पॅक करना शुरू कर दिया. लगभग 9 बजे टॅक्सी आई हमने जल्दी से समान रखा और टॅक्सी मे
बैठ गये. यमञोत्री जाने के लिए दो रास्ते है
एक तो ऋषिकेश-चम्बा – धारासू होकर है दूसरा देहरादून- मसूरी केंपटि फॉल हो कर है. देहरादून वाला रास्ता ज़्यादा सही
है इसलिए मैने ड्राइवर को देहरादून हो कर चलने के लिए कहा.. अब हमारी कार देहरादून
के बाहर से होती हुई 12 बजे मसूरी पहुँचे. हमे यहाँ रूकना तो था नही , मसूरी का चक्कर लगते हुए कार केंपटि फॉल वाले रास्ते से आगे बढ़ गई.
केंपटि फॉल जो की मसूरी से 18 किलोमीटर है. पहुँचने मे आधा- पौना घंटा लगा. दोपहर का वक्त था अभी ज़्यादा भीड़ नही
थी. अक्सर छुट्टी के दिनो मे यहाँ तो काफ़ी
बड़ा जाम लग जाता है. केंपटि फॉल 40 फिट की उँचान से गिरता है . 8 साल पहले
ऑफीस के टूर पर यहाँ आया था , तब और अब मे बहुत अंतर नज़र आ रहा था.
अब तो पूरा एरिया ही कॉमर्शियलाइज़्ड हो गया है , कई होटेल सड़क के किनारे नये बन गये है.लग रहा था छोटा सा शहर बन गया है. अब हमारी कार यमुना के किनारे चली जा रही थी. यमुना
नदी जो की दिल्ली पहुँचते –
पहुँचते इतनी
विशाल हो जाती है, पर यहाँ तो वहूत कम पानी था. हमारी
कार पहाड़ की घुमाव दर रास्ते से आगे बढ़ रही थी. करीब 2 बजे ड्राइवर ने बरकोट से पहले यमुना नदी के किनारे बने एक छोटे से होटेल
पर खाना खाने के लिए रोका. सुंदर द्र्श्य था
, नीचे गहरी घाटी मे यमुना बह रही थी.
मौसम भी खुशनुमा था, ठंडी-ठंडी हवा बह रही थी.
इस माहौल मे खाना खाना अच्छा लग रहा था. 15-20 मिनट मे हम खा पी कर कार मे बैठ गये.
अब कार बरकोट के लिए चल दी. बरकोट तक रास्ता
साफ सुथरा था पर बरकोट के बाद सड़क टूटी-फूटी थी. कई जगह तो रास्ता बहुत खराब था. बरकोट
से स्याना चट्टी तक एक दो जगह सड़क सही मिली वरना ज़्यादातर टूटी सड़क पर ही कार चल
रही थी. अब समझ मे आया क्यो होटेल मॅनेजर मेरे से बड़ी गाड़ी से जाने को कह रहा था.
इस खराब रास्ते पर हल्की गाड़ी से चलना अपने लिए एक परेशानी लेना होता है. स्याना चट्टी
पहुँचते- पहुँचते मौसम बदलने लगा था. वारिश का मौसम हो गया था. थोड़ी ही देर मे हल्की
हल्की वारिश भी शुरू हो गई . स्याना चट्टी से आगे की सड़क साफ सुथरी बनी थी. सड़क के किनारे हारे-भरे पेड़ लगे थे. स्याना चट्टी से करीब 21 किलोमीटर जानकी चट्टी है . जानकी चट्टी तक सड़क बन जाने के
कारण अब लोग वहाँ ठहरते है पहले फूल चट्टी , हनुमान चट्टी से पैदल यमनोत्री तक जाना होता था. घंटे भर मे हम स्याना चट्टी से
जानकी चट्टी पहुँच गये. शाम के 7 बाज रहे थे पर अभी अंधेरा नही हुआ था. यहाँ पर होटेल
वालो के एजेंट घूम रहे थे बात चीत से पता लग गया 500 रुपये मे अच्छा होटेल मिल जाएगा.
हमे सबसे लास्ट मे जहाँ से चढ़ाई शुरू होती
है 4 बेड का काफ़ी मोल भाव कर के 500 रुपये
प्रति दिन के हिसाब से मिला. हालाँकि होटेल वाले ने 1000 रुपये माँगे थे. शाम ढल चुकी
थी और मौसम भी ठण्डा हो गया था. सारे दिन के सफ़र के बाद थकान महसूस हो रही थी. होटेल
के सामने होटेल वाले का रेस्टोरेंट था जहाँ होटेल वाले ने बताया जाकर खाने का ऑर्डर लिखवा दो रूम सर्विस इन जगहो पर कम ही मिलती
है. यहाँ पर पहले से ऑर्डर देना पड़ता है.
तब जा कर खाना मिलता है
हम देर से पहुचे थे हमे देर से रात के 9.30 बजे जाकर खाना मिला.
जानकी चट्टी होटेल से खींचे फोटो |
जानकी चट्टी होटेल से खींचे फोटो |
जानकी चट्टी होटेल से खींचे फोटो |
जानकी चट्टी होटेल से खींचे फोटो |
जानकी चट्टी होटेल से खींचे फोटो |
07.05.2012
मै सुबह 5 बजे
ही उठ गया. एलेक्ट्रिक केटली मे 2 कप चाय बनाई.
बाहर देखा हल्का सा दिन निकालने लगा है , कॅमरा ले कर होटेल की दूसरी मंज़िल पर पहुँच
गया और आस-पास के खूबसूरत नजारो के फोटो खींचे. 7-7.30
बजे यमञोत्री के लिए चलना शुरू कर दिया. होटेल
के बाहर ही दुकाने थी जहाँ डंडे मिल रहे थे. पहाड़ो पर चढ़ते समय इन डंडो से बहुत आराम रहती है. 50 रुपये के चारो के लिए 4 डंडे लिए दुकानदार ने बताया की वापस करने पर आधे पैसे वापस
मिल जाएँगे. जानकी चट्टी से यमञोत्री मंदिर की दूरी 6 किलोमीटर है. हमे लगा की ज़्यादा
दूरी तो है नही आसानी से चढ़ जाएँगे पर थोड़ी देर बाद ही लग गया कि चढ़ाई इतनी आसान नही है. मुझे ऐसा लगा कि यमनोत्री की चढ़ाई वैष्णो देवी की पुराने वाले रास्ते जैसी है. सीढ़ी नुमा. 6 किलोमीटर की चढ़ाई हमने 3 , घंटे मे पूरी की. केदारनाथ के रास्ते से काफ़ी सही है.पूरी चढ़ाई
यमुना के किनारे – किनारे है. रास्ता काफ़ी
सुंदर हरा भरा है.
रास्ते मे फोटो खिचते हुए बदते रहे. एक बात
मैने महसूस की, कि पैदल आप प्रक्रति का जो
आनंद ले सकते है वह घोड़े या पालकी से कभी नही.
रास्ते मे देख रहा था कई नवयुवक घोड़े पर चले जा रहे थे. और कुछ तो पालकी से
जा रहे थे. देख कर आश्चर्य हुआ और अफ़सोस भी की आज कल के इन नौजवानो को क्या हो गया
है जो अपने शरीर का बोझ भी अपने पैरो पर नही उठा सकते. अपने शरीर को दूसरे के कंधो पर ले कर जा रहे
है. पता नही अत्यधिक पैसे ने उनको इतना आराम तलब बना दिया है कि अब उनका शरीर इस लायक नही रहा कि वह
अपना बोझ ले कर चल सके. सबसे बड़ी बात कि उनके चेहरे पर कोई शिकन नही थी.
रास्ते मे फोटो |
यमनोत्री की चढ़ाई |
मंदिर पहुँच कर
गर्म कुंड मे स्नान किया. यहाँ पर काफ़ी भीड़ थी. पर स्नान मे कोई दिक्कत नही
हुई. कुंड का जल ज़्यादा गर्म ना हो इसलिए
ठंडे पानी की पतली धार कुंड मे गिर रही थी.
और यह ज़रूरी भी था क्योकि इस कुंड से उपर दिव्य शिला पर
जो कुंड है उसमे तो इतना गर्म पानी है कि सभी
लोग पूजा के चावल उसमे पकाते है. जैसा कि मैने पढ़ा था की दर्शन से पहले मंदिर के बाहर दिव्या
शिला का पूजन करते है उसके बाद दर्शन के लिए जाते है. गर्म कुंड
मे स्नान कर के कपड़े बदल ही रहा था कि तभी पंडा लोग आ कर पूजा करने का आग्रह करने लगे.
पूजा तो करनी ही थी मैने पूजा से पहले पंडा
से पूछ लिया की कितने पैसे लोगे पर सभी कह
रहे थे आप अपनी श्रधा से दे देना. कई लोगो
ने डरा दिया था की यहाँ पंडा लोग बहुत पैसे ले लेते है. इसलिए मैने पहले ठहरा लेना उचित समझा. जब वह श्रधा
की बात करने लगे तो मैने कहा 201 रुपये दूँगा.
वह बोले ठीक है अब हम अपने परिवार के साथ उनके
मंदिर के पास बने प्लेटफोर्म पर पहुचे. यहाँ पर बहुत सारे लोगो को पंडा लोग
पूजा करवा रहे थे एक जगह बैठा कर पूजा करनी शुरू की. मै समझा करता था कि कोई शिला होगी पर शिला तो
कोई नज़र नही आई तब मैने पंडा जी से पूछा तो उन्होने बताया की जिस स्थान पर बैठे है
यही दिव्या शिला है. पूजा के बाद पंडा जी ने कहा, अब आप लोग माँ यमुना जी के दर्शन कर लो जब तक आपके चावल भी पक जाएँग.
यमञोत्री मे प्रसाद के रूप मे चावल गर्म कुंड
मे पका कर यात्री ले जाते है. मंदिर मे ज़्यादा भीड़ नही थी माँ यमुना की मूर्ति काले
पत्थर की बनी है उनके साथ माँ गंगा की भी मूर्ति स्थापित है. दर्शन कर के बाहर आया तब तक पंडा गर्म कुंड मे पके हुए चावल
की पोटली ले कर आ गये. मैने कही पढ़ा था की यहाँ एक ऋषि रहते थे जो रोज गंगा नहाने
पहाड़ पार कर के
गंगोत्री जाते थे जब वह काफ़ी उम्र के हो गये
और पहाड़ पार कर जाना संभव नही हुआ तब माँ गंगा से उन्होने प्राथना की तब गंगा वही प्रकट हो
गई . कहते है यहाँ यमनोत्री मे एक धारा गंगा की भी बहती है. मैने जब इस बारे मे पंडा जी से पूछा तब
उन्होने अनभीग्यता प्रकट की. अब मैने सोचा की यहाँ तक आए है तो यमुना जी का जल तो ले चलना
चाहिए. मंदिर के साथ से ही यमुना जी बह रही है. 1-2 लोग वहाँ पर जल ले रहे थे मैने
भी एक बोतल मे जल भरा, पत्नी और बच्चो को भी बुला कर यमुना जी के दर्शन कराए. एक तरह
से यहाँ पर यमुना जी पहले दर्शन होते है. यमुना जी का जल एक दम स्वच्छ पारदर्शी है और पीने मे बहुत अच्छा लगा यही जल दिल्ली
पहुच कर किस अवस्था मे हम कर देते है यह तो दिल्ली वाले ही जानते है. जल इतना ठंडा
था कि बड़ी मुश्किल से बोतल
मे भर पाया. वहाँ पर एक और मंदिर है राम सीता
और हनुमान जी का जिसके पुजारी जी पूरे साल वही रहते है. हम भी दर्शन करने गये.
हनुमान चट्टी से
यमनोत्री
यमनोत्री
यमनोत्री की चढ़ाई
यमनोत्री
मंदिर के साथ यमुना जी
मंदिर के साथ यमुना जी
मंदिर के साथ यमुना जी |
मैने भी एक बोतल मे जल भरा |
अब हम सब वापस चल दिए. मै समझता हू तेज़ी से नीचे
उतरना ज़्यादा आसान होता है नीचे उतरते हमे 4.30 बज गये. अब आगे
जाने का प्रोग्राम
मैने कॅन्सल कर दिया रात मे यही जानकी चट्टी मे रुकने का प्रोग्राम बनाया. मंदिर जाते
समय एक बात और देखने को मिली जब हम भैरो मंदिर के
पहले पहुँचे, यहाँ 4-5 लोग हर घोड़े, पिटढू, पालकी
वाले से रसीद चेक कर रहे थे. पता लगा की यह रसीद नीचे जब यात्री इन लोगो को तय करता
है तब कटनी होती है. 100 रुपये प्रति घोड़ा, या पिटढू के हिसाब से यात्रियो को देना होता है. हम लोग तो पैदल चल रहे थे और अपना समान अपने कंधो पर था हमने पिटढू किया नही था इसलिए हमे तो पता ही नही लगता परंतु वहाँ एक स्त्री झगड़ा हो रहा था, उसका कहना था कि उसने रसीद कटवाई थी पर उस पर कटिंग होने के कारण वह लोग 100 रुपये और माँग
रहे थे. . मतलब यह की अगर आप यमञोत्री मे घोड़ा, पिटढू, पालकी करते है तो आपको 100 रुपये
का टॅक्स भरना होगा. सोंच कर गुस्सा भी आया कि एक तो यात्रियो से यहाँ के लोगो
को रोज़गार मिलता है और उपर से यात्रियो से टॅक्स भी वहाँ की पंचायत वसूल रही है. और कोई भी इस टॅक्स वसूली के खिलाफ आवाज़
भी नही उठा रहा है. मेरी नज़र में तो उत्तराखंड
की सरकार वास्तव मे बहुत ग़लत कार्य कर रही है.
एक तरह से लूट लिया जाता है यात्रियों को. बहुत अच्छा लगा यात्रा वृत्तान्त .. Please do remove word verification.
ReplyDeletethanks a lot
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