सच तो यह है की 15
अगस्त 1947
को अंग्रेजो ने सत्ता कांग्रेस की तरफ से
जवाहर लाल नेहरु को सौंप दी थी।
और नेहरु जी ने अपनी पुत्री इंदिरा गाँधी को , इंदिरा गाँधी अपने छोटे पुत्र संजय गाँधी को सौंपने की तैयारी कर रही थीं पर उनकी अकाल
म्रत्यु हो जाने के कारण सत्ता राजीव गाँधी
के हाथो पहुँच गयी, फिर राजीव गाँधी से उनकी पत्नी सोनिया
गाँधी सत्ता का केंद्र
बन गयी क्योकि उनके पुत्र
राहुल गाँधी , उस समय काफी छोटे थे और अब कांग्रेस के जयपुर चिंतन शिवर में राहुल गाँधी का
राज्याभिषेक कर दिया गया। कहने का आशय यह है
कि कुछ एक समय तो नेहरु-गाँधी
परिवार सत्ता से दूर जरुर हुआ पर सच तो यह है कि अधिकतर सत्ता इसी परिवार
के हाथो या इनके इर्द गिर्द ही घूमती रही।
इसका सबसे बड़ा कारण शायद यही है कि हिन्दुस्तान की जनता की
सामंतवादी सोंच। हम सदियों से
राजाओं , नबाबो,बादशाहों के अधीन रहे थे। हम उन्हें ही
अपना अन्नदाता मानते
हुए उनकी चाटुकारिता करते रहे।
शायद इसी का नतीजा था कि राहुल गाँधी को कांग्रेस का
उपाध्यछ चुनते ही कांग्रेस में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी।
कांग्रेसी ख़ुशी और जोश में
उत्सव मना रहे थे। जब राजा लोग अपने पुत्र का
राज्याभिषेक करते थे तब जनता जिस
तरह से खुशियाँ मनाती थी , ठीक वैसा ही माहौल बना हुआ था। । आतिशबाजी के साथ, ढोल -नगाड़े की थाप पर नाचते हुए लोगो का जमघट , राहुल गाँधी के राज्याभिषेक पर खुशियाँ मना रहा था। कुछ समय पहले राहुल गाँधी ने कहा था, उन्हें युवराज कहलाना अच्छा नहीं
लगता है पर अब तो उन्हें कांग्रेसी अगला प्रधानमन्त्री मानते हुए अगला चुनाव जीतने का सपना संजो रहे हैं।
हम अब भी बात करते हैं प्रजातंत्र की , पर सच तो यह है हम अभी भी राजतन्त्र में जी रहे है।
हिन्दुस्तान में राजनितिक पार्टियाँ हमेशा प्रजातंत्र की दुहाई देती रहती हैं पर
ज्यादातर पार्टियों में
राजतन्त्र ही है।चाहे वह शेख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेस हो, मुलायम सिंह की समाजवादी, लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल , बाल ठाकरे की शिवसेना, या करुणा निधि की पार्टी हो, या बीजू पटनायक की । बी जे पी , या कम्युनिस्ट पार्टियाँ जरुर अपवाद हैं
वरना अधिकतर में राजतंत्र ही है। प्रजातान्त्रिक सरकार को चलाने वाले स्वयं राजतंत्र अपनाये हुए हैं।
प्रजातंत्र यानि कि
जनता के द्वारा ,
जनता के लिए,
जनता की सरकार। पर जनता का शासन दिखाई तो पड़ता नहीं है। जनता के वोट के
सहारे सत्ता की कुर्सी पर बैठने के बाद तो
इन्हें जनता की कोई तकलीफ दिखाई ही नहीं देती है। अगर जनता अपनी तकलीफ से इन्हें अवगत करवाना
चाहती है तो उस पर लाठी-डंडो की बरसात की जाती है। उन्हें पकड़ कर जेल में ठूस दिया जाता है। अब करो अपना
बचाव, लगाओ कोर्ट कचहरी के
चक्कर।
प्रश्न उठता है, जब सरकार में बैठे लोग, वही कर रहे हैं जो कि विदेशी शासक
करते आ रहे थे,
फिर यह जनता की सरकार कहाँ से हो गई,
हम आजाद कहाँ से हो गए।
ऐसा लगता है विदेशी
शासको ने केवल सत्ता का हस्तांतरण कर दिया था।वही अंग्रेजो
के ज़माने के कानून और वही अंग्रेजो के ज़माने
की पुलिस। जो कि
पहले भी शांत पूर्ण प्रदर्शन पर बर्बरता पूर्वक लाठी
चलाती थी और अब भी
वही करती है।
हम खुश हो कर अपनी पीठ
थपथपाते रहते हैं कि हमें आजादी मिल गई। हर साल 15
अगस्त,
26 जनवरी पर आजादी के तराने गाते है, प्रभात फेरी लगते है। स्कुलो में तरह- तरह के उत्सव करते हैं, लालकिले पर खड़े होकर सत्ता के शासक झंडा फहरा कर हमें बताते हैं कि अब हम आजाद हो चुके हैं।
26 जनवरी पर राजपथ पर परेड निकाल कर हमें आजाद होने का अहसास कराया जाता है।
बताया जाता है आज के दिन 26
जनवरी 1950
से हमारा संविधान लागू हो गया है।
कैसा संविधान है यह
जहाँ देश का मुखिया यानि कि राष्ट्रपति का चुनाव जनता नहीं
करती है। उसे तो जनता द्वारा चुने गए
प्रतिनिधि अपनी सुविधा के आधार पर करते हैं।
जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि, जन प्रतिनिधि बनते ही विशिष्ट हो जाते हैं। कुछ एक के लिए तो , जिस रास्ते से वह गुजरते हैं वह रास्ता
आम नागरिक के लिए रोक दिया जाता है। पता लगता है
फलां - फलां विशिष्ट व्यक्ति गुजरने वाला है , आप लोग चुप -चाप खड़े रहे। कई तो इतने विशिष्ट होते हैं कि आम नागरिक को बोला जाता है कि आप लोग पीठ पीछे
करके खड़े हो जाय। थोड़ी देर बाद
जनता द्वारा चुने गए विशिष्ट व्यक्ति
का कांरवा, सायरन बजता हुआ गुजरता है उसके बाद आपको सड़क पर
चलने की इजाजत मिलती है। यही है हमारा प्रजा तंत्र, लोकतंत्र। जिन्हें हमने ही उस जगह पर
बैठाया वही आंखे तरेरते नजर
आते हैं। अपने विशेषाधिकार की बात करते हैं।
यह सब तो राज तंत्र में होता था , प्रजातंत्र में ऐसा नहीं होना चाहिए पर हो रहा है। सच तो यह है कहने के लिए प्रजातंत्र
है पर व्यवस्था वही है, वही राजा , वही मंत्री , वही नगर कोतवाल।
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