मैंने पढ़ा था, मीडिया एक एजेंडा सेट करती है ; और फिर उस पर काम शुरू हो जाता है सरकार को बदनाम करने का , परन्तु नहीं ; यह सेट करती हैं कुछ देश द्रोही ताकतें। मीडिया तो एक मोहरा होता है और फिर शुरू होता है खेल, सोशल मीडिया इस समय सबसे बड़ा माध्यम है इस खेल का । कुछ लोग ऐसी घटनाओं से इतने भावुक हो जात्ते हैं कि उन्हें अपने धर्म पर ही शर्म आने लगती है।
नेता तो इन्तजार में रहते हैं ऐसे मुद्दों के , जिससे वह अपनी अपनी राजनीतक रोटियां सेक सकें ।
ध्यान से देखें तो पता लगेगा कैसे एक छोटी सी घटना का राष्ट्रीयकरण और अंतर्राष्ट्रीयकरण किया जाता है।
शुरुआत करते हैं रोहित बेमुला की आत्महत्या से। यह कोई विशेष घटना नहीं थी। कई लोग फ्रस्ट्रेशन में ऐसा करते हैं। क्योकि उनके सपने इतने बड़े होते हैं उन्हें अचीव करना उन्हें असम्भव लगने लगता है और तब वह उठाते हैं ऐसा कदम।
एक आत्म हत्या का मामला इतना उछाला गया कि सारे बड़े - बड़े नेता हैदराबाद पंहुच गए आंसू बहाने ।
संसद में हंगामा हुआ , केंद्रीय मंत्री पर ऊँगली उठाई गई। मोदी जी ने भी इस घटना पर एक सभा में आंसू बहा दिये।
वहीँ दूसरी तरफ कोटा में हर साल न जाने कितने बच्चे इसी तरह , फ्रस्ट्रेशन में आत्महत्या कर चुके हैं।
कोई धरना - प्रदर्शन नहीं हुआ।
संसद छोड़िये , विधानसभा में भी कोई चर्चा नहीं होती है। वह एक रोहित बेमुला था , जिसे दलित का दर्जा प्राप्त था , यहाँ कोटा में तो कई बच्चे थे ; परन्तु नहीं , किसी ने भी अफ़सोस जाहिर नहीं किया , किसी ने आंसू नहीं बहाये। क्यों भाई क्यों ......... ?
अब चलते हैं कठुआ केस पर , यह घटना 10 जनवरी की थी , लेकिन लगभग दो- तीन महीने बाद लाइम लाइट में यह घटना आई। अचानक धरना - प्रदर्शन होने शुरू हो गए , इण्डिया गेट पर मोमबत्ती गैंग सक्रिय हो गया। जस्टिस फॉर आसिफा की तख्ती लिए हुए लोग प्रदर्शन कर रहे थे।
सवाल यह है कि यह धरना - प्रदर्शन जनवरी में क्यों नहीं हुए , क्यों दो- तीन महीने बाद यह सब शुरू हुआ।
सवाल यह भी उठता है कि क्या इससे पहले इस तरह की घटनाये नहीं हुईं , जब इससे पहले न जाने कितनी घटनाये हो चुकी हैं तो केवल इस घटना को इतना तूल क्यों दिया गया , क्या इसलिए कि वह एक विशेष समुदाय यानि मुस्लिम से सम्बंधित है।
अब आता हूँ पिछले दिनों झारखण्ड में ग्रामीणों द्वारा एक चोर के पकडे जाने पर पिटाई की।
जैसा की आमतौर पर होता है चोर अगर पब्लिक के हाथ पड़ जाये तो हर कोई अपना हाथ उस पर आजमा लेता है।
वही इस केस में हुआ लोंगो ने पिटाई की और बाद में पुलिस को सौंप दिया।
एक नहीं हजारो घटनाएं इस तरह की होती रही हैं। लेकिन इस बार खास बात यह थी कि चोर मुसलमान था और पकड़ने वाले हिन्दू।
बस बात का बतंगड बना दिया गया।
संसद में उस चोर की पैरवी करने वाले खड़े हो गए।
कितनी गंभीर बात है कि आज लोग एक चोर की पैरवी कर रहे हैं। कई शहरों में तो उसके हमदर्द पैदा हो गए हैं। वह जलूस निकाल रहे हैं उस चोर के समर्थन में। क्योकि वह चोर एक विशेष संप्रदाय का था। कमल है लाखों रूपये का चढ़ावा चढ़ाया जा रहा है उसके परिवार पर।
कहां जा रहे हैं हम , कभी हममें से कुछ , आतंकवादी के समर्थन में खड़े हो जाते हैं तो कभी एक चोर के समर्थन में।
यह सब एक अजेंडे के तहत कराया जाता है। मोहरे हैं आप - सब उन देश द्रोहियों के। जो सामने नहीं आते हैं।
K.B.Rastogi
नेता तो इन्तजार में रहते हैं ऐसे मुद्दों के , जिससे वह अपनी अपनी राजनीतक रोटियां सेक सकें ।
ध्यान से देखें तो पता लगेगा कैसे एक छोटी सी घटना का राष्ट्रीयकरण और अंतर्राष्ट्रीयकरण किया जाता है।
शुरुआत करते हैं रोहित बेमुला की आत्महत्या से। यह कोई विशेष घटना नहीं थी। कई लोग फ्रस्ट्रेशन में ऐसा करते हैं। क्योकि उनके सपने इतने बड़े होते हैं उन्हें अचीव करना उन्हें असम्भव लगने लगता है और तब वह उठाते हैं ऐसा कदम।
एक आत्म हत्या का मामला इतना उछाला गया कि सारे बड़े - बड़े नेता हैदराबाद पंहुच गए आंसू बहाने ।
संसद में हंगामा हुआ , केंद्रीय मंत्री पर ऊँगली उठाई गई। मोदी जी ने भी इस घटना पर एक सभा में आंसू बहा दिये।
वहीँ दूसरी तरफ कोटा में हर साल न जाने कितने बच्चे इसी तरह , फ्रस्ट्रेशन में आत्महत्या कर चुके हैं।
कोई धरना - प्रदर्शन नहीं हुआ।
संसद छोड़िये , विधानसभा में भी कोई चर्चा नहीं होती है। वह एक रोहित बेमुला था , जिसे दलित का दर्जा प्राप्त था , यहाँ कोटा में तो कई बच्चे थे ; परन्तु नहीं , किसी ने भी अफ़सोस जाहिर नहीं किया , किसी ने आंसू नहीं बहाये। क्यों भाई क्यों ......... ?
अब चलते हैं कठुआ केस पर , यह घटना 10 जनवरी की थी , लेकिन लगभग दो- तीन महीने बाद लाइम लाइट में यह घटना आई। अचानक धरना - प्रदर्शन होने शुरू हो गए , इण्डिया गेट पर मोमबत्ती गैंग सक्रिय हो गया। जस्टिस फॉर आसिफा की तख्ती लिए हुए लोग प्रदर्शन कर रहे थे।
सवाल यह है कि यह धरना - प्रदर्शन जनवरी में क्यों नहीं हुए , क्यों दो- तीन महीने बाद यह सब शुरू हुआ।
सवाल यह भी उठता है कि क्या इससे पहले इस तरह की घटनाये नहीं हुईं , जब इससे पहले न जाने कितनी घटनाये हो चुकी हैं तो केवल इस घटना को इतना तूल क्यों दिया गया , क्या इसलिए कि वह एक विशेष समुदाय यानि मुस्लिम से सम्बंधित है।
अब आता हूँ पिछले दिनों झारखण्ड में ग्रामीणों द्वारा एक चोर के पकडे जाने पर पिटाई की।
जैसा की आमतौर पर होता है चोर अगर पब्लिक के हाथ पड़ जाये तो हर कोई अपना हाथ उस पर आजमा लेता है।
वही इस केस में हुआ लोंगो ने पिटाई की और बाद में पुलिस को सौंप दिया।
एक नहीं हजारो घटनाएं इस तरह की होती रही हैं। लेकिन इस बार खास बात यह थी कि चोर मुसलमान था और पकड़ने वाले हिन्दू।
बस बात का बतंगड बना दिया गया।
संसद में उस चोर की पैरवी करने वाले खड़े हो गए।
कितनी गंभीर बात है कि आज लोग एक चोर की पैरवी कर रहे हैं। कई शहरों में तो उसके हमदर्द पैदा हो गए हैं। वह जलूस निकाल रहे हैं उस चोर के समर्थन में। क्योकि वह चोर एक विशेष संप्रदाय का था। कमल है लाखों रूपये का चढ़ावा चढ़ाया जा रहा है उसके परिवार पर।
कहां जा रहे हैं हम , कभी हममें से कुछ , आतंकवादी के समर्थन में खड़े हो जाते हैं तो कभी एक चोर के समर्थन में।
यह सब एक अजेंडे के तहत कराया जाता है। मोहरे हैं आप - सब उन देश द्रोहियों के। जो सामने नहीं आते हैं।
K.B.Rastogi