Saturday 5 October 2013

एक चिठ्ठी रेल मंत्री के नाम


बहुत समय के बाद एक लम्बी रेल यात्रा पिछले हफ्ते 28  सितम्बर -13  को  करनी पड़ी। हम कुछ लोग दिल्ली से नई जलपाईगुड़ी,  थ्री टायर एसी में .   नार्थ इस्ट एक्सप्रेस से जा रहे थे। गाड़ी सही समय पर आनंद विहार रेलवे स्टेशन से चली। सभी लोग आपस में बात चीत  कर रहे थे कि देखतां क्या हूँ कि एक चुहिया बड़े आराम से इधर से उधर कम्पार्टमेंट के अन्दर दौड़ लगा रही थी। सारे चुहिया को देखकर चौंक गए। अभी हमने  इस विषय में बात करना शुरू ही किया था कि तभी छोटे - छोटे से काक्रोच सीट के आस- पास घूमते नजर आने लगे। और अगर एक-दो होते तो भी सह लेते पर यहाँ तो ढेरो काक्रोच डिब्बे में विद्यमान थे। हमारे साथ गई लडकियां ज्यादा डर  रही थी, कहीं सोते वक्त इन  छोटे - छोटे काक्रोचो  ने हमला कर दिया तो कैसे निपटेंगे।
ट्रेन में टायलेट की हालत यह थी कि टूटे - फूटे नल लगे हुए थे। कई के फ्लश सिस्टम ख़राब थे। टायलेट इतने गंदे थे कि  ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हम थ्री टायर एसी के डिब्बे में सफ़र कर रहे हैं।
अटेंडेंट ने जो चादरे ओढने - विछाने को दी वह भी बिना  पैकिंग के थीं। उसको बोला कि यह तो पेपर में पैक देते थे वह भी वैगैर तौलिये के दे रहे हो क्यूँ ? बोला साहब इस ट्रेन में ऐसा ही मिलता है, अभी आप लोग एसी  में बैठे पता नहीं कब यह ठंडा करना बंद कर दे।
दिल्ली से ट्रेन सही समय पर चली थी पर नई जलपाईगुड़ी पहुँचते - पहुँचते तीन घंटे से ज्यादा लेट हो गई।
लौटते समय हमने पूर्वोत्तर एक्सप्रेस से स्लीपर क्लास से टिकेट बुक करवाई थी। यह सुपर फ़ास्ट ट्रेन है और केवल इसके तीन स्टापेज ही नई दिल्ली - जलपाईगुड़ी के बीच हैं। अभी हम लोग जलपाईगुड़ी स्टेशन पर पूर्वोत्तर एक्सप्रेस का इन्तजार कर ही रहे थे तभी पता लगा दिल्ली से आने वाली नार्थ इस्ट ट्रेन आज 6  घंटे से भी ज्यादा लेट है। सोंचने लगा अगर हमारे साथ ऐसा होता तो तो हम बहुत मुश्किल में पड़  जाते, क्योकि हमें तो यहाँ से आगे गंगटोक जाना था।
 जलपाईगुड़ी से ट्रेन आधा घंटा लेट चली, सोंचा इसके स्टापेज तीन ही हैं रास्ते  में रिकवर कर लेगी। पर जब इलाहबाद पहुंची तब तक एक घंटा लेट हो चुकी थी और दिल्ली पहुँचते - पहुँचते तीन घंटे से ज्यादा लेट हो चुकी थी।
अब बात करता हूँ ट्रेन के दिए जाने वाले खाने की, तो मांसाहारी का तो मुझे पता नहीं पर शाकाहारी खाने की थाली 8 5  रूपये की थी। जाते समय तो घर से बना हुआ खाना साथ में था इसलिए ट्रेन के खाने का प्रश्न ही नहीं उठा पर लौटते समय ट्रेन का ही खाना खाना था इसलिए रात में खाने की थाली मंगवाई। थाली में दो सब्जी , एक दाल , चार या पाँच पंराठे जो कि तीन या चार इंच के त्रिभुजा कार खूब मोटे -मोटे से थे। पहला परांठा खाने लगा तो देखा परांठे का एक चौथाई भाग तो पका  ही नहीं है, दूसरा निकला तो वह भी आधा कच्चा था। एक - एक कर सारे परांठे निकल कर देखा तो सभी  का यही हाल था।
मुझे गुस्सा आ गई कि 85  रूपये का खाना दे रहे हो और वह भी ऐसा।
बैरे को बोला  कम्प्लेंट बुक लेकर आओ और अपने पेंट्री मैनेजर को बुलाओ।
बैरा बोला क्या बात है, मैंने कहा मै  तुम्हारे मैनेजर को  यह खाना खिलाना चाहता हूँ जिससे उन्हें पता लगे कि वह यात्रियों को परोस क्या रहे है।
मै पूछना चाहता था कि  एक तरफ तो भारत सरकार के मंत्री - नेता लोग तो 5  रूपये में तो कोई 12  या 1 5  रूपये में पेट भर खाना देने की बात करता है और ट्रेन में 8 5  रूपये में ऐसा कच्चा - पक्का खाना खिलाया जा रहा है।
30 - 40   रूपये  में तो दिल्ली जैसे शहर में भी आदमी बहुत अच्छा  खाना खा लेता। आफिसो में टिफिन लगभग इतने पैसो में लोग सप्लाई करते हैं और यहाँ दुगने पैसे लेकर भी इतना घटिया खाना यह सरकार दे रही है।
कई बार बोलने के बाबजूद न तो इनलोगों का मैनेजर आया और न ही कम्प्लेंट बुक लाया। हाँ यह अवश्य किया कि  अपना खाना उठा कर ले गया।
मुझे  याद है पिछले वर्ष रेल किराये में वृद्धि , रेल मंत्री ने रेल में बेहतर सुविधाये देने के नाम पर ही की थीं।
लोगो ने सोंचा कि  चलो रेल यात्रा कुछ अधिक सुविधाजनक होगी पर हकीकत तो यह है कि बढ़ा  किराया तो रेलवे की जेब में चला गया और सुविधाओ के नाम पर ठन - ठन गोपाल।
अभी न्यूज पेपर में पढ़ा कि  रेल कर्मचारियों को 7 8  दिन का बोनस दिया जायेगा। यानि कि ढाई महीने से ज्यादा तनख्वाह बोनस के रूप दी जायगी दूसरी तरफ रेलवे का किराया भी बढ़ने की खबर भी  छाप दी।
क्यों दिया जा रहा है इतना ज्यादा बोनस, क्या कमाई ज्यादा हो रही है अगर नहीं तो फिर किराया क्यों बढ़ा  रहे हो।
सवाल तो यह कि बोनस , वह भी इतना ज्यादा  क्यों दिया जा रहा है, जब यह कर्मचारी समय से ट्रेन चला नहीं सकते , समय पर यात्रियों को पहुंचा नहीं सकते, ट्रेन को साफ़ - सुथरा रख नहीं सकते फिर बोनस किस बात का ?
जानते हैं क्या कर लेगा कोई।  लोगो को जाना है तो जायेंगे   ही बढ़ा  हुआ किराया देकर।
वोट की हमें चिंता नहीं क्योकि अगली बार हमारी सरकार तो बनेगी नहीं, लुटा देते है  जितना लुटा सकते हैं। 

1 comment:

  1. इस मार्ग पर सरायघाट एक्सप्रेस में हमें गोवाहाटी से लेकर सुल्तानगंज तक किसी भी बोगी में पानी नहीं मिला। कई बार शिकायत करने पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। यात्रियों से दो महीने पहले किराया लेने वाला रेल्वे प्रशासन यात्री सुविधाओं के नाम पर सिर्फ़ ढोल ही पीटता है। यह मान कर चलिए कि भारतीय रेल की यात्रा भगवान भरोसे ही होती है। अगर आप सही सलामत घर लौट आए तो आपकी किस्मत समझिए।

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