Wednesday, 23 January 2013

आँखों से सम्बंधित उपयोगी जानकारी



यहाँ पर आँखों से सम्बंधित सभी रोगों के लिए जानकारी दे रहा हूँ।
नेत्र रोगों के लिए आयुर्वेदिक दवाओ का सेवन करके आप स्वयं इसके फायदे को महसूस कर सकते हैं।
सप्तामृतलौह : यह नेत्र रोगों की सर्वोत्तम दवा है। इसके नियमत सेवन करने से नेत्रों से कम दिखना, आँखों के आगे धुंधलापन होना,अँधेरा छा  जाना, सर में दर्द रहना, आँखों की कमजोरी एवं समस्त आँखों के विकारो को दूर करता है।  इसको एक चम्मच गाय के घी और आधा चम्मच शहद  के साथ सुबह -शाम सेवन करना चाहिए। ऊपर से गाय का दूध ले, मात्रा  125 से 250 मिलीग्राम। गाय का घी या दूध न मिलने पर भैंस का ले सकते हैं।
महात्रिफलाघृत : सप्तामृतलौह के साथ - साथ एक छोटा चाय के चम्मच के बराबर महात्रिफलाघृत का सेवन करना चाहिए।
त्रिफला चूर्ण : एक चम्मच त्रिफला चूर्ण को एक कप ताजे पानी में भीगा दें, सुबह कपडे से छान कर उस पानी से सुबह- शाम आँखों को धोने से बहुत लाभ होता है। आँख धोने के लिए केमिस्ट के पास छोटा सा कप मिलता है, उसमे त्रिफला जल को भर कर आँख धोने के लिए प्रयोग कर सकते हैं। साथ ही साथ महात्रिफलाघृत न मिलने पर एक चम्मच त्रिफला चूर्ण को एक चम्मच गाय के घी और आधा चम्मच शहद से सेवन करना चाहिए।
कासनी + मुलेठी : आधा - आधा चम्मच  चूर्ण को शहद या गाय के घी के साथ सुबह शाम  सेवन करना चाहिए।
सौंफ , मिश्री , बादाम : इन तीनो को बराबर -बराबर   मात्रा  में लेकर मिक्सी में  पीस  कर चूर्ण बना कर रख ले। रात में सोते समय गर्म दूध  से एक बड़ा चम्मच लेना चाहिए।
सफ़ेद मिर्च  को मिक्सी में पीस कर रख ले। सुबह नाश्ते से पहले एक चम्मच घी में मटर के दाने बराबर पीसी हुई सफ़ेद मिर्च एवं थोड़ी सी चीनी मिला कर खाने से  हर तरह के सरदर्द एवं आँखों की बीमारी में बहुत लाभ मिलता है।
एक आँवले का मुरब्बा नित्य सुबह - शाम सेवन करना चाहिए।  
सुबह के समय पैरों के तलवे  एवं पैर के अंगूठे में सरसों के तेल की हलकी सी  मालिश करे और हो सके तो हरी घास में टहले।
आज कल बाजार में गाजर खूब  आ रही है। हो सके तो इसका नियमित  जूस  पिए या खाने में सलाद की तरह प्रयोग करें।आँखों के लिए  गाजर बहुत फायदेमंद होती है।
सुबह - शाम . मुंह में पानी भर के बंद आँखों पर ठन्डे पानी को डालने  से आँखों को बहुत लाभ मिलता है। आँखों में थकान , या  भारी पन  महसूस करने पर कभी भी यह प्रक्रिया कर सकते है।
मुझे विश्वास  है जिस किसी ने इन चीजो को अपना लिया उसे निश्चित रूप से किसी भी तरह की आँख की बिमारी नहीं होनी चाहिए। मैं स्वयं  इनका प्रयोग करता हूँ, जिस तरह के रोग को डाक्टर समझ नहीं पा रहे थे वह तक सही हो गया।




Tuesday, 22 January 2013

हमें अंग्रेजो से आजादी मिली थी या सत्ता का हस्तांतरण





सच तो यह है की 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजो ने सत्ता कांग्रेस की तरफ से जवाहर लाल नेहरु को सौंप दी थी।
और नेहरु जी ने अपनी पुत्री  इंदिरा गाँधी को , इंदिरा गाँधी अपने छोटे  पुत्र संजय गाँधी को सौंपने की तैयारी कर रही थीं पर उनकी अकाल म्रत्यु हो जाने के कारण सत्ता राजीव गाँधी के हाथो  पहुँच गयी, फिर राजीव गाँधी से उनकी पत्नी सोनिया गाँधी सत्ता का केंद्र बन गयी क्योकि उनके पुत्र  राहुल  गाँधी , उस समय काफी छोटे थे और अब कांग्रेस के  जयपुर चिंतन शिवर में राहुल गाँधी का राज्याभिषेक कर दिया गया। कहने का आशय यह है कि कुछ एक समय तो  नेहरु-गाँधी परिवार सत्ता से दूर जरुर हुआ पर सच तो यह है कि  अधिकतर  सत्ता इसी परिवार के हाथो या इनके इर्द गिर्द ही घूमती  रही।
इसका सबसे बड़ा कारण शायद यही है कि हिन्दुस्तान की जनता की सामंतवादी सोंच। हम सदियों से राजाओं , नबाबो,बादशाहों के अधीन रहे थे। हम उन्हें ही अपना अन्नदाता मानते हुए उनकी चाटुकारिता करते रहे।
शायद इसी का नतीजा था कि राहुल गाँधी को कांग्रेस का उपाध्यछ चुनते ही कांग्रेस में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी। कांग्रेसी ख़ुशी और जोश में उत्सव मना  रहे थे।  जब  राजा  लोग अपने पुत्र का राज्याभिषेक करते थे तब जनता जिस तरह से खुशियाँ मनाती थी , ठीक वैसा ही माहौल बना हुआ था। ।  आतिशबाजी के साथ, ढोल -नगाड़े की थाप  पर नाचते  हुए लोगो का जमघट , राहुल गाँधी के राज्याभिषेक पर खुशियाँ मना रहा था। कुछ समय पहले राहुल गाँधी ने कहा था, उन्हें युवराज  कहलाना अच्छा नहीं लगता है पर अब तो उन्हें कांग्रेसी अगला प्रधानमन्त्री मानते हुए अगला चुनाव जीतने  का सपना संजो रहे हैं।
हम अब भी बात करते हैं प्रजातंत्र की , पर सच तो यह  है हम अभी भी राजतन्त्र में जी रहे है।
हिन्दुस्तान में  राजनितिक पार्टियाँ हमेशा प्रजातंत्र की दुहाई देती रहती हैं पर  ज्यादातर  पार्टियों में राजतन्त्र ही है।चाहे वह शेख  अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेस हो, मुलायम सिंह की समाजवादी, लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल ,  बाल  ठाकरे की शिवसेना, या करुणा  निधि  की पार्टी हो, या बीजू पटनायक की । बी जे पी , या कम्युनिस्ट पार्टियाँ  जरुर अपवाद हैं वरना अधिकतर में राजतंत्र ही है। प्रजातान्त्रिक सरकार को चलाने वाले स्वयं राजतंत्र अपनाये हुए हैं।  
 प्रजातंत्र यानि कि जनता के द्वारा , जनता के लिए, जनता की सरकार। पर जनता का शासन दिखाई तो पड़ता नहीं है। जनता के वोट के सहारे सत्ता की कुर्सी पर बैठने के बाद तो इन्हें जनता की कोई तकलीफ दिखाई ही नहीं देती है। अगर जनता अपनी तकलीफ से इन्हें अवगत करवाना चाहती है तो उस पर लाठी-डंडो  की बरसात की जाती है। उन्हें पकड़ कर जेल में ठूस दिया जाता है। अब करो अपना बचाव, लगाओ कोर्ट कचहरी के चक्कर।
प्रश्न  उठता है, जब सरकार में बैठे लोगवही  कर रहे हैं जो कि विदेशी शासक करते आ रहे थे, फिर यह जनता की सरकार कहाँ से हो गई, हम आजाद कहाँ से हो गए।
ऐसा लगता है विदेशी शासको ने केवल सत्ता का हस्तांतरण कर दिया था।वही अंग्रेजो के ज़माने के कानून और वही अंग्रेजो के ज़माने की पुलिस। जो कि पहले भी शांत पूर्ण प्रदर्शन पर बर्बरता पूर्वक लाठी  चलाती थी और अब भी वही करती है।
हम खुश हो कर अपनी पीठ थपथपाते रहते हैं कि हमें आजादी मिल गई। हर साल 15 अगस्त, 26 जनवरी पर आजादी के तराने गाते है, प्रभात फेरी लगते है। स्कुलो में तरह- तरह के उत्सव करते हैं, लालकिले पर  खड़े होकर सत्ता के शासक  झंडा फहरा  कर  हमें बताते हैं कि अब हम आजाद हो चुके हैं।  
26 जनवरी पर राजपथ पर परेड निकाल कर हमें आजाद होने का अहसास कराया जाता है। बताया जाता है आज के दिन 26 जनवरी 1950 से हमारा संविधान लागू  हो गया है।
कैसा संविधान है यह जहाँ देश का मुखिया यानि कि राष्ट्रपति का चुनाव जनता नहीं करती है। उसे तो जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि  अपनी सुविधा के  आधार  पर करते  हैं।
जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि, जन प्रतिनिधि बनते ही  विशिष्ट हो जाते हैं। कुछ एक  के लिए तो , जिस रास्ते से वह गुजरते हैं वह रास्ता आम नागरिक के लिए रोक दिया जाता  है। पता लगता है फलां - फलां विशिष्ट व्यक्ति गुजरने वाला  है , आप लोग चुप -चाप खड़े रहे। कई तो इतने विशिष्ट होते हैं कि आम नागरिक को बोला  जाता है कि  आप लोग पीठ पीछे करके खड़े हो जाय। थोड़ी देर बाद जनता द्वारा चुने गए  विशिष्ट व्यक्ति का कांरवा, सायरन बजता हुआ गुजरता है उसके बाद आपको सड़क पर चलने की इजाजत मिलती है। यही है हमारा  प्रजा तंत्र, लोकतंत्र। जिन्हें हमने ही उस जगह पर बैठाया वही आंखे तरेरते नजर आते हैं। अपने विशेषाधिकार की बात करते हैं।
यह सब तो राज तंत्र में होता था , प्रजातंत्र में ऐसा नहीं होना चाहिए पर हो रहा है। सच तो यह है कहने के लिए प्रजातंत्र है पर व्यवस्था वही है, वही राजा , वही मंत्री , वही नगर कोतवाल।



Friday, 28 December 2012

इस जनाक्रोश के मायने क्या ?


इस जनाक्रोश के मायने क्या ?
सबसे पहले बात करूँगा पिछले हफ्ते से इंडिया गेट पर उमड़े जन सैलाब की जोकि रेप पीडता के समर्थन में सरकार के खिलाफ उमड़ पड़ा। यह जनसैलाब किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा आवाहन करके ना तो बुलाया गया था और ना ही कोई राजनीतिक पार्टी इसका नेतृत्व कर रही थी। परन्तु देखने से लग रहा था कि एक जनाक्रोश है इस सरकार के खिलाफ। आज के नवयुवक – नवयुवती पुरे जोर-शोर से रेप पीड़ता के लिए न्याय मांग रहे थे । उनकी कोई अनुचित मांग नहीं थी। प्रजातंत्र में प्रजा ही सरकार होनी  चाहिए परन्तु ऐसा होता नहीं है। जो भी पार्टी चुनाव में चुन ली जाती है  वही सरकार होती है फिर वह जिस तरह से  चाहें उसी तरह से  प्रजा को चलाती  है।
सबसे दुर्भाग्य पूर्ण तो सरकार का रवैया रहा जोकि इस जनाक्रोश को राजनीतिक द्रष्टि से  देखते हुए नफा-नुकसान का आकलन करता नजर आ रहा था। पुलिसिया कारवाई से  लोग और भड़क गए। बात भी सही है वह लोग तो न्याय मांग रहे थे और आप उन पर डंडे बरसा कर क्या प्रमाणित करना चाहते हैं। गृह मंत्री इन सभ्य समाज के लोगो की तुलना माओ वादियों से करते नजर आये। ऐसा लग रहा है  एक घमंड से भरी सरकार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचा है इस सरकार में।

मुझे याद आ रहा है कुछ इसी तरह का जनसैलाब तब भी उमड़ पड़ा था जब अन्ना हजारे ने इस सरकार से बढ़ते हुए भ्रष्टाचार के विरोध में जंतर  - मंतर पर लोकपाल बिल लाने के लिए धरना प्रदर्शन किया। बाद में योगगुरु बाबा रामदेव ने भी रामलीला मैदान में धरना दिया। दिल्ली में हजारो लोगो  धरना स्थल पर पहुँच कर समर्थन दिया। ऐसा लग रहा था कि समाज इस सरकार के कामकाज से खुश नहीं है और जनता का विश्वास यह सरकार खो चुकी है। जनाक्रोश इतना अधिक इस सरकार  के खिलाफ देखने को मिल रहा था कि अगर अभी चुनाव हो जाए तो यह सरकार सत्ता खो देगी। जनता इसे नकार देगी। कहीं भी नहीं लग रहा था कि इस सरकार को चुनाव में जनता का जरा सा भी समर्थन मिलेगा।
परन्तु हाल में हुए विधान सभा चुनावो के नतीजो को देख कर लगा जनाक्रोश तो सरकार के काम-काज के प्रति लोगो में है परन्तु फिर भी लोग वोट देकर इस सरकार के प्रति अपनी आस्था व्यक्त कर रहे हैं। उत्तराखंड में भाजपा की सरकार थी। कांग्रेस के पास चली गयी। इसी तरह अभी जल्दी में हुए चुनावो में हिमाचल की सरकार भी कांग्रेस की झोली में चली गयी। केवल गुजरात की सरकार बच  सकी। सोंचने का विषय है कि जिस तरह से जनता में इस सरकार के प्रति आक्रोश दिखाई देता है वह जनता के द्वारा वोट देते समय कहाँ चला जाता है। मुझे लगता है जनता त्रस्त है लगातार बढती  मंहगाई से, जनता त्रस्त है बढ़ते हुए भ्रष्टाचार से, कानून व्यस्था से, बढती हुई गुंडागर्दी से और नित नए उजागर हो रहे घोटालो से, पर फिर भी काँग्रेस को लोग पसंद कर रहे हैं। उसकी सरकार चुन रहे हैं।
यह एक चिंता का विषय है कि हमारा समाज जा कहाँ रहा है। वह  धर्म निरपेछ्ता का ढोंग करने वाले लोगो को चुन कर साबित क्या करना चाहता  है।
इन सबका सबसे बड़ा कारण जो मुझे समझ में आता है वह यही है कि हमारी सामंतवादी मानसिकता। हम सालो साल राजाओ और नबाबो के आधीन रहे हैं। हमारे रोम – रोम में यही  मानसिकता  धर गयी है।  ज्यादातर लोग उसी मानसिकता से जी रहे हैं और कांग्रेस को वोट दे कर उपकृत करते आ रहे हैं। उनका यही मानना है कि कांग्रेस ने हमें अंग्रेजो से आजादी दिलवायी है।  नेहरु- गाँधी परिवार को ही अपना भाग्य विधाता मानते हुए उसको वोट दे  रहे हैं। हम कल भी पिछड़े थे और आज भी पिछड़े हैं। विश्व में दुसरे नंबर पर हमारी जनसँख्या है। परन्तु हम कहाँ हैं।  आजादी के इतने साल बाद भी हम अपने आप को विकसित  नहीं कर पाए हैं। हम आज भी विकासशील कह कर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं।

Saturday, 17 November 2012

कैग और सरकार


कल शाम दो मुख्य समाचर टीवी चैनल  पर छाये हुये थे. पहला बाल  ठाकरे की तबियत खराब होने का और दूसरा 2जी स्पेक्ट्रम के नीलामी का.
बात शुरु करता  हूँ 2जी स्पेक्ट्रम से .
मनीष तिवारी को तो देख कर लग रहा था जैसे इन्होने कोई क़िला जीत लिया हो.   जोर – जोर से दहाड़े लगा कर कैग को और विपक्षी पार्टियों  को कोस रहे थे सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने की वकालत करते नजर आ रहे थे.
एक दूसरे कांग्रेसी नेता , लादेन जी के भक्त भी जोर शोर से कैग  प्रमुख को निशाना बना रहे थे. बड़े ही गहन- गंभीर मुद्रा में  भारी -भरकम शब्दों का प्रयोग करते हुए आत्मचिंतन, आत्ममंथन की सलाह कैग को दे  रहे थे.लेकिन एक बात गौर  करने वाली थी, सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ कोई कुछ भी नही बोल रहा था जिसने इनके द्वारा आवंटित लाइसेंस को रद्द कर दियानिचली कोर्ट ने  इनके मंत्री एवं कुछ अन्य को जेल भेज दिया.
क्यो भाई उनसे माफी मांगने को क्यो नही कह रहे होइसका मतलब कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ गडबड तो हुई थी पर किस तरह से यह  राजनीति के धुरंधर पब्लिक को बरगलाते  हैंयह तो इनके जोर – जोर से चिल्लाने से ही पता लग रहा था.
आज इस सरकार मे बैठे हुए लोगो को कैग अपना सबसे बड़ा दुश्मन नजर  रहा हैजहां भी मौका मिलता है उसको नसीहत  देना शुरु कर देते हैं ,तो कभी कैग प्रमुख को राजनीतिक महत्वकांछी बताते हैंउद्देश्य होता है कि   किसी भी तरह से उसको गलत साबित करके, नीचा  दिखाने काजिससे कि  वह आगे इनके हर एक कृत्य को सही ठहराये। 
याद होगा इसी कैग ने रा  ग  सरकार के समय ताबूत को विदेशो से बहुत अधिक कीमत पर खरीदने पर टिप्पणी   की थी  तब यही कांग्रेसी कैसे कुलांचे भर-भर कर जार्ज फर्नाडीज को कोस रहे थेकफन चोर जैसी संज्ञा  से सुशोभित कर रहे थेतब इन्हे कैग मे कोई बुराई नही नजर  रही थीपर आज कैग से बड़ा इन्हे कोई दुश्मन नही नजर  रहा है.
कहते हैं किसी झूठ को अगर बार बार  सच बताया जाय तो वह सच से ज्यादा  सच लगने लगता है. ठीक वैसे ही यह लोग  झूठ को हुंकारे भर कर, झूठ को सच साबित करने मे लगे हुए हैं. जबकि हकीकत  यह है कि  केवल 22 स्पेक्ट्रम की नीलामी से 9407 करोड़
मिले जबकि 122 लाइसेंस के बदले मे 9200 करोड़ ही मिले थे. सीधा सा गणित का सवाल है. लेकिन लगे हुए हैं किस तरह से बेबकूफ बनाया जाय.  अब 4जी भारत मे  चुका है. 3जी तो आम बात हैतो फिर 2 जी की नीलामी से अब उतना पैसा नही मिलेगा जितना   पहले मिलता.
अब देखना यह है कि किस करवट उंट बैठता है.