Monday, 5 August 2013

छोटे राज्यों की मांग क्यो


केंद्र सरकार  के  एक और राज्य तेलांगना पर मुहर लगाते ही अन्य छुट भैय्यो नेताओ ने अन्य राज्यों के टुकड़े करने के लिए मोर्चा खोल दिया है  वैसे  इस खेल में कई बड़ी - बड़ी राजनीतिक  पार्टियां भी  अपनी रोटी सेकती नजर रही  हैं। क्योकि अंत में तो सत्ता तो इन्ही के पास आनी है। 
 सोंचने की बात है कि छोटे - छोटे राज्यों की मांग का रहस्य क्या है। छोटे - छोटे राज्य यानि कि  अधिक से अधिक लोगो के हाथ में सत्ता का सुख। बड़े राज्य होने पर सत्ता का आनन्द  कम लोगो को मिल पाता  है वहीँ  छोटे - छोटे राज्य होंगे तो यही सुख अन्य लोगो को मिल सकता है। 
कुछ एक राजनितिक पार्टियाँ का यहाँ कहना कि  छोटे राज्य होंगे तो राज्य का  विकास  अधिक  होगा। यह केवल एक कपोल कल्पना है जिसे कि जनता को बेबकूफ  बनाने के लिए प्रयोग में लाते हैं। 
हर नेता मुख्यमंत्री पद का स्वाद चखना चाहता है, जो कि केंद्रीय मंत्री से कही ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, अगर ऐसा नहीं होता तो ममता बनर्जी रेल मंत्री का पद त्याग कर मुख्य मंत्री बनना नहीं पसंद करती। 
बहुत दिनों से चौधरी अजित सिंह अलग हरित प्रदेश की मांग कर रहे है। क्यों कर रहे हैं क्योकि जानते हैं कि उनकी पार्टी कभी  भी उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार  नहीं बना सकती।  हाँ अगर उनके मन मुताबिक थोड़े से जिलो  को जोड़ कर अगर एक छोटा सा  राज्य बना दिया जाय तो शायद मुख्यमंत्री  बनने का सपना साकार हो जाय। 
न्यूज पेपर में खबर छपी " बलिदान के लिए तैयार रहे:  अजित " आम बेबकूफ  लोगो को भ्रमित  करके उनको बलिदान के लिए तैयार रहने की बात की जा रही है। 
लोगो से क्यों बलिदान करने को कह रहे हो, पहले खुद दो , लेकिन नहीं, अगर इन्होने बलिदान दे दिया फिर सत्ता का सुख फिर इन्हें कैसे मिलेगा।   तभी दूसरो  को प्रेरित कर रहे हैं। यह हुई बात। 
कुछ ऐसी ही गणित अन्य राज्यों के नेता भी लगाये रहते हैं। 

 जनता को क्या मिलता है? कुछ भी तो नहीं, उल्टे  परेशानी और बढ़ जाती है। बार्डर पर चेकिंग,  सामान लाने, ले जाने की अलग से मुसीबत। सबसे ज्यादा तो राज्य के  बार्डर  के आस -पास रहने वालो को झेलनी पड़ती है। सबसे बड़ी बात कि इन राज्यों का खर्च तो जनता को ही भुगतना पड़ता है। 
मुझे याद है , उत्तराखंड बनाने के लिए क्या कुछ नहीं किया इन उत्तराखंड के लोगो ने। मुरादाबाद चौराहा कांड तो कभी भी इन लोगो के जेहन से कभी  नहीं निकलेगा। कैसे भूल सकते हैं ,  मुलायम सरकार  ने जो इन पर कहर बरपाया था। पर क्या मिला इन उत्तराखंड के लोगो को। अच्छा उत्तराखंड अलग बना कर भी क्या हासिल कर लिया उत्तराखंड के लोगो ने। आज भी हजारो की संख्या में वहां के लोग पलायन करके दिल्ली और अन्य  नगरो में जीवका उपार्जन के लिए आ रहे हैं। लाखो वहां के लोग यहाँ रह रहे हैं।  वापस तो अपने राज्य चले नहीं गए, फिर यह सब क्यों? जहाँ तक विकास की बात है तो यह सब एक ढोंग है, इसके अतिरिक्त कुछ नहीं। 
कभी बीजेपी की सरकार तो कभी कांग्रेस की सरकार वहां पर बनती है। जिन लोगो ने अलग उत्तराखंड के लिए संघर्ष किया उनकी तो आज तक वहां सरकार नहीं बनी। लेकिन कौन समझाए इन बेबकूफ लोगो को जो इन नेताओ के बहकावे में आकर आत्मदाह कर लेते हैं। सरकारी सम्पतियो को आग के हवाले कर देते है, और पुलिस की लाठियां खाते हैं।  और बाद में इनके हिस्से में आता है टैक्स का बोझ। 





Wednesday, 24 July 2013

मीर जाफर और जयचंद

आज एक महत्वपूर्ण समाचार न्यूज पेपर में प्रकाशित हुआ कि 40  लोकसभा के सदस्यों ने एवं 25 राज्य सभा के सदस्यों ने अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को ज्ञापन  फैक्स से प्रषित किया है कि  गुजरात के मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी को अमेरिका में जाने के लिए वीजा न दे। 
अचंभित करने वाला यह समाचार है कि कैसे इस देश के नागरिक दूसरे देश से अपने देश के नागरिक के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। उन्हें अपने देश  में न घुसने देने  की प्रार्थना कर रहे हैं।वह भी एक  मुख्य मंत्री के लिए। 
यह लोग भी जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि हैं और मुख्य मंत्री भी जनता के द्वारा चुना  गया प्रतिनिधि होता है। वह एक विशाल राज्य को प्रतिनिधि  होता है। यह लोग एक विदेशी व्यक्ति से उसकी शिकायत कर रहे हैं। उसके खिलाफ अनर्गल आरोप लगा रहे हैं। कितने शर्म की बात है कि केन्द्रीय सत्ता मूक बनी हुई है। इस तरह की घिनौनी हरकत पर जनता चुप क्यों है। यह तो देशद्रोही की श्रेणी का अपराध यह लोग कर रहे हैं। 
जयचंद ने क्या किया था। इन लोगो में और जयचंद में क्या अंतर है। उसने भी एक विदेशी से अपने देश के राजा  के खिलाफ आवाज उठाई थी। यह लोग उसी के नक्शोकदम पर चलते हुए वही सब कर रहे हैं। 
कौन कहता है कि मीर जाफर और जयचंद मर चुके हैं। यह कल भी थे,  आज भी हैं और कल भी रहेंगे। 

यह देश एक नहीं कई मीर जाफर और जयचंद से भरा हुआ है। 

Tuesday, 9 July 2013

अँधेर नगरी , चौपट राजा , टके सेर भाजी , टके सेर खाजा

मंहगाई से त्रस्त आम जनता को खुश करने के लिए सरकार एक नया पैतरा खाद्य सुरक्षा अध्यादेश ला कर दिया है। खाद्य सुरक्षा अध्यादेश के तहत सरकार का प्रति व्यक्ति 5 किलो अनाज देने का प्रस्ताव है। साथ ही 3 रुपये प्रति किलो के भाव से चावल, 2 रुपये प्रति किलो के  भाव से गेहूं और 1 रुपये प्रति किलो के भाव से मोटा अनाज देने की योजना है। सरकार पर वित्त वर्ष 2014 में 1.24 लाख करोड़ रुपये का सब्सिडी बोझ पड़ेगा। इसके अलावा अतिरिक्त फूड सब्सिडी 23800 करोड़ रुपये की होगी।
बात समझ से परे है। एक ओर हर वर्ष लाखो टन अनाज खुले आसमान के नीचे  बारिश में पड़ा सड  रहा होता है। सुप्रीम कोर्ट कहता है इससे तो अच्छा  है गरीबो को बाँट दो। तब सरकार कहती है वह ऐसा नहीं कर सकती। दूसरी तरफ सरकार इस तरह की बिल लाकर साबित क्या करना चाहती है। अरे पहले जो अनाज किसानो से खरीद रहे हो उस  अनाज को बंद गोदामों में रखने की व्यवस्था तो कर लो। उसके बाद आगे की सोंचना। लेकिन  नहीं अनाज सड़ता है तो सडे हमें तो सब्सिडी देनी है तो देकर रहेंगे। कौन सा अपनी जेब से जाना है। वसूलना तो जनता से ही है। 
विश्व मुद्रा कोष सरकार  पर दबाव बनाता है कि हर तरह की सब्सिडी को खत्म करो। सरकार रसोई गैस , पेट्रोल . डीजल को बाजार के हवाले कर देती है। फिर नई - नई सब्सिडी देने का क्या  ओचित्य ? 
सवाल यह भी उठता है कि इसका बोझ तो आम आदमी को ही उठाना होगा। एक तरफ तो सरकार सस्ता अनाज मुहैया कराने  की कवायद करती है तो दूसरी तरफ तरह - तरह के हर साल नये - नये टैक्स लगा कर जनता की जेब हलकी करती रही है। कैसा सामाजिक न्याय है यह? 
सुन कर हंसी आती है कि 3 रुपये प्रति किलो चावल, 2 रुपये किलो गेहूं और 1 रुपये प्रति किलो के भाव से मोटा अनाज दिया जायेगा। अरे मुफ्त में दे दो 1 ,2  और 3  रूपये से क्या मिलेगा ? इससे ज्यादा तो इसके वितरण में खर्च आएगा। 
 महानगरो में मंहगाई का आलम यह है कि आज सब्जी वाले से 2   रूपये की हरी मिर्च मांगो तो आँखे तरेर कर मना  कर देता है। 5 , 10  रूपये से कम में हरा धनिया या  हरी मिर्च देने को तैयार नहीं और यहाँ सरकार  5   रूपये में ढाई किलो गेंहू दे रही है। केवल हमारे पैसे की बर्बादी और क्या? 
1 ,2   रूपये तो आजकल भिखारी भी लेने को तैयार नहीं होता है , बोलता है इसमें तो एक कप चाय भी नहीं मिलेगी। 
ऐसा तो है नहीं कि यह स्कीम महानगरो में लागू नहीं होगी। यहाँ एक मजदूर भी 300 से 400 रूपये एक दिन में कमाता है। लेकिन उसको अनाज मिलेगा 2 ,3  रूपये किलो। 
इस तरह की सब्सिडी देने से अच्छा है सरकार कुछ ऐसे कार्य करे जिससे आम जनता का भला हो। लोगो को रोजगार मुहैया कराये जिससे की वह आत्मनिर्भर हो , बेसहारा , बूढ़े लोगो के जीवन निर्वाह के लिए कुछ करे, इस तरह की सब्सिडी की वैसाखी पहना कर तो आम गरीब जनता को लालची और कमजोर बना रही है  यह सरकार। 
यह तो वही बात हो गई  अँधेर  नगरी , चौपट राजा , टके सेर भाजी , टके सेर खाजा।