Thursday, 21 February 2013

बढती हुई जनसँख्या, घटते संसाधान



बढती हुई जनसँख्या हमारे देश में एक विकराल रूप लेती जा रही है।सरकारी कागजो में तो इस पर कार्य भी हो रहा होगा परन्तु समाधान कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। जिस कदर जनसँख्या बढ़ रही है उससे हमारे संसाधन कम होते जा रहे हैं। कुछ समय पहले हमारे प्रधान मंत्री ने जरुर अपने एक भाषण में इस बात का जिक्र किया था। अपनी चिंता से अवगत करवाया था। पर केवल चिंता करने से समाधान तो नहीं निकलेगा। सरकार को कुछ ठोस योजना बनानी होगी तभी कुछ हो सकेगा। खाली  मंत्रालय बना कर तनख्वाह देने से काम नहीं चलेगा।  मै  समझता  हूँ अगर सरकार चाहे तो इसको नियंत्रित कर सकती है। पर क्या करे वोट की  राजनीति  सरकार के हाथ बांधे  रहती है।  प्रजातंत्र है , सरकार बनाने के लिए प्रजा के वोट चाहिए। प्रजा से कहा की बस एक या दो बच्चे ही होने चाहिए तो अगली बार सत्ता भी हाथ से चली जाएगी। इमरजेंसी के दौरान जरुर जनसँख्या नियंत्रण के लिए कड़ाई  से इसके अनुपालन की कोशिश की गयी थी पर हश्र क्या हुआ सभी जानते हैं। 
फिर भी नियंत्रित की जा सकती है अगर सरकार चाहे तो। कम से कम यह तो कर ही सकती है कि आरक्ष के द्वारा लाभ पाने वालो पर तो इस कानून को कड़ाई से पालन करवा ही सकती है। कह सकती है अगर आपको विशेष सुविधा चाहिए तो बांड भरो कि अगर दो से ज्यादा बच्चे हुए तो नौकरी से छुट्टी। लोगो को प्रमोशन में  आरक्ष  चाहिए।नियम बना देना चाहिए कि पहले  प्रमोशन  उसी को मिलेगा जिसके एक  बच्चा  होगा उसके बाद दो बच्चो वाले को। दो से अधिक वाले को किसी भी तरह का कोई प्रमोशन नहीं मिलेगा। 
मुझे नहीं लगता कि इस तरह की पालिसी बनाने से सरकार के वोट  बैंक पर कोई असर पड़ेगा। आज नहीं तो कल यह सब करना ही पड़ेगा। कबूतर की तरह आँख बंद कर बैठने से काम नहीं चलनेवाला। ठोस कार्यवाही तो करनी ही पड़ेगी। 
बढती हुई जनसँख्या किस तरह से प्रकृतिक संसाधनों को निगलती जा रही है इसका सबसे बड़ा उदाहरण है बढती हुई महंगाई, हमारे सामने मुंह बाये खड़ी है। हर चीज दिन-प्रतिदिन मंहगी होती जा रहीं है। आज से कुछ साल पहले हम जमीन खरीद कर अपने लिए मकान  बना कर रह  सकते थे पर आज के समय में मकान बनाना तो दूर एक-दो कमरे का फ्लैट खरीदना भी कठिन हो रहा है। 
 सीधी सी बात है  जमीन तो बढ़ेगी नहीं। वह तो उतनी ही रहेगी। जनसँख्या बढ़ रही है। सभी को रहने के लिए छत चाहिए। बढती हुई जनसँख्या एक विभीषिका की तरह है जो कि  हमारे  नीतीनियंताओ को दिखाई नहीं दे रही है। 
सड़के पहले एक लेन  की हुआ करती थीं,   कोई भी ट्रेफिक जाम नहीं होता था पर  आज आठ -आठ लेन की होने के बाद भी वही ट्रेफिक जाम से जूझना पड़  रहा है। 
इस विषय पर मीडिया की उदासीनता भी कोई कम नहीं है। इलेक्शन के समय देखता हूँ गाँवकस्बो, झोपड़ पट्टी में पहुँच कर लोगो से पूछ रहे हैं सरकार ने आपके लिए क्या किया , टीवी पर उसका टूटा -फूटा  मकान दिखा  कर बता रहे होते हैं देखो सरकार ने इन गरीबो के लिए कुछ भी नहीं किया पर उसके पीछे खड़े छह-छह  बच्चो के बारे में नहीं पूछते हैं भय्या जब रहने को मकान नहीं है , सरकारी जमीन  पर या किसी के प्लाट पर  कब्जा करके   झोपड़ पट्टी बना कर रह रहे हो ,फिर यह फौज क्यों खड़ी  की है। 
 यह है हमारे मीडिया का नजरिया। उसे सरकार के काम में तो खोट नजर आती है पर उस समाज के उन लोगो पर नहीं जो कि इसका  कारण बने हुए हैं। इस पर सभी को विचार करना पड़ेगा कि इस बढती हुई जनसँख्या को भगवान् या अल्लाह की देन  समझ कर इस पर अंकुश लगाने की पहल करनी पड़ेगी। और यह सरकार चाहे तो कर सकती है। 
यह बहुत ही दुखद है कि हमारी सरकार अपने स्वार्थ में इतनी लिप्त हो चुकी है कि देश के बारे में सोंचने का  समय  ही  नहीं निकाल पा रही है और ना  हमारा मीडिया। 

Wednesday, 23 January 2013

आँखों से सम्बंधित उपयोगी जानकारी



यहाँ पर आँखों से सम्बंधित सभी रोगों के लिए जानकारी दे रहा हूँ।
नेत्र रोगों के लिए आयुर्वेदिक दवाओ का सेवन करके आप स्वयं इसके फायदे को महसूस कर सकते हैं।
सप्तामृतलौह : यह नेत्र रोगों की सर्वोत्तम दवा है। इसके नियमत सेवन करने से नेत्रों से कम दिखना, आँखों के आगे धुंधलापन होना,अँधेरा छा  जाना, सर में दर्द रहना, आँखों की कमजोरी एवं समस्त आँखों के विकारो को दूर करता है।  इसको एक चम्मच गाय के घी और आधा चम्मच शहद  के साथ सुबह -शाम सेवन करना चाहिए। ऊपर से गाय का दूध ले, मात्रा  125 से 250 मिलीग्राम। गाय का घी या दूध न मिलने पर भैंस का ले सकते हैं।
महात्रिफलाघृत : सप्तामृतलौह के साथ - साथ एक छोटा चाय के चम्मच के बराबर महात्रिफलाघृत का सेवन करना चाहिए।
त्रिफला चूर्ण : एक चम्मच त्रिफला चूर्ण को एक कप ताजे पानी में भीगा दें, सुबह कपडे से छान कर उस पानी से सुबह- शाम आँखों को धोने से बहुत लाभ होता है। आँख धोने के लिए केमिस्ट के पास छोटा सा कप मिलता है, उसमे त्रिफला जल को भर कर आँख धोने के लिए प्रयोग कर सकते हैं। साथ ही साथ महात्रिफलाघृत न मिलने पर एक चम्मच त्रिफला चूर्ण को एक चम्मच गाय के घी और आधा चम्मच शहद से सेवन करना चाहिए।
कासनी + मुलेठी : आधा - आधा चम्मच  चूर्ण को शहद या गाय के घी के साथ सुबह शाम  सेवन करना चाहिए।
सौंफ , मिश्री , बादाम : इन तीनो को बराबर -बराबर   मात्रा  में लेकर मिक्सी में  पीस  कर चूर्ण बना कर रख ले। रात में सोते समय गर्म दूध  से एक बड़ा चम्मच लेना चाहिए।
सफ़ेद मिर्च  को मिक्सी में पीस कर रख ले। सुबह नाश्ते से पहले एक चम्मच घी में मटर के दाने बराबर पीसी हुई सफ़ेद मिर्च एवं थोड़ी सी चीनी मिला कर खाने से  हर तरह के सरदर्द एवं आँखों की बीमारी में बहुत लाभ मिलता है।
एक आँवले का मुरब्बा नित्य सुबह - शाम सेवन करना चाहिए।  
सुबह के समय पैरों के तलवे  एवं पैर के अंगूठे में सरसों के तेल की हलकी सी  मालिश करे और हो सके तो हरी घास में टहले।
आज कल बाजार में गाजर खूब  आ रही है। हो सके तो इसका नियमित  जूस  पिए या खाने में सलाद की तरह प्रयोग करें।आँखों के लिए  गाजर बहुत फायदेमंद होती है।
सुबह - शाम . मुंह में पानी भर के बंद आँखों पर ठन्डे पानी को डालने  से आँखों को बहुत लाभ मिलता है। आँखों में थकान , या  भारी पन  महसूस करने पर कभी भी यह प्रक्रिया कर सकते है।
मुझे विश्वास  है जिस किसी ने इन चीजो को अपना लिया उसे निश्चित रूप से किसी भी तरह की आँख की बिमारी नहीं होनी चाहिए। मैं स्वयं  इनका प्रयोग करता हूँ, जिस तरह के रोग को डाक्टर समझ नहीं पा रहे थे वह तक सही हो गया।




Tuesday, 22 January 2013

हमें अंग्रेजो से आजादी मिली थी या सत्ता का हस्तांतरण





सच तो यह है की 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजो ने सत्ता कांग्रेस की तरफ से जवाहर लाल नेहरु को सौंप दी थी।
और नेहरु जी ने अपनी पुत्री  इंदिरा गाँधी को , इंदिरा गाँधी अपने छोटे  पुत्र संजय गाँधी को सौंपने की तैयारी कर रही थीं पर उनकी अकाल म्रत्यु हो जाने के कारण सत्ता राजीव गाँधी के हाथो  पहुँच गयी, फिर राजीव गाँधी से उनकी पत्नी सोनिया गाँधी सत्ता का केंद्र बन गयी क्योकि उनके पुत्र  राहुल  गाँधी , उस समय काफी छोटे थे और अब कांग्रेस के  जयपुर चिंतन शिवर में राहुल गाँधी का राज्याभिषेक कर दिया गया। कहने का आशय यह है कि कुछ एक समय तो  नेहरु-गाँधी परिवार सत्ता से दूर जरुर हुआ पर सच तो यह है कि  अधिकतर  सत्ता इसी परिवार के हाथो या इनके इर्द गिर्द ही घूमती  रही।
इसका सबसे बड़ा कारण शायद यही है कि हिन्दुस्तान की जनता की सामंतवादी सोंच। हम सदियों से राजाओं , नबाबो,बादशाहों के अधीन रहे थे। हम उन्हें ही अपना अन्नदाता मानते हुए उनकी चाटुकारिता करते रहे।
शायद इसी का नतीजा था कि राहुल गाँधी को कांग्रेस का उपाध्यछ चुनते ही कांग्रेस में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी। कांग्रेसी ख़ुशी और जोश में उत्सव मना  रहे थे।  जब  राजा  लोग अपने पुत्र का राज्याभिषेक करते थे तब जनता जिस तरह से खुशियाँ मनाती थी , ठीक वैसा ही माहौल बना हुआ था। ।  आतिशबाजी के साथ, ढोल -नगाड़े की थाप  पर नाचते  हुए लोगो का जमघट , राहुल गाँधी के राज्याभिषेक पर खुशियाँ मना रहा था। कुछ समय पहले राहुल गाँधी ने कहा था, उन्हें युवराज  कहलाना अच्छा नहीं लगता है पर अब तो उन्हें कांग्रेसी अगला प्रधानमन्त्री मानते हुए अगला चुनाव जीतने  का सपना संजो रहे हैं।
हम अब भी बात करते हैं प्रजातंत्र की , पर सच तो यह  है हम अभी भी राजतन्त्र में जी रहे है।
हिन्दुस्तान में  राजनितिक पार्टियाँ हमेशा प्रजातंत्र की दुहाई देती रहती हैं पर  ज्यादातर  पार्टियों में राजतन्त्र ही है।चाहे वह शेख  अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेस हो, मुलायम सिंह की समाजवादी, लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल ,  बाल  ठाकरे की शिवसेना, या करुणा  निधि  की पार्टी हो, या बीजू पटनायक की । बी जे पी , या कम्युनिस्ट पार्टियाँ  जरुर अपवाद हैं वरना अधिकतर में राजतंत्र ही है। प्रजातान्त्रिक सरकार को चलाने वाले स्वयं राजतंत्र अपनाये हुए हैं।  
 प्रजातंत्र यानि कि जनता के द्वारा , जनता के लिए, जनता की सरकार। पर जनता का शासन दिखाई तो पड़ता नहीं है। जनता के वोट के सहारे सत्ता की कुर्सी पर बैठने के बाद तो इन्हें जनता की कोई तकलीफ दिखाई ही नहीं देती है। अगर जनता अपनी तकलीफ से इन्हें अवगत करवाना चाहती है तो उस पर लाठी-डंडो  की बरसात की जाती है। उन्हें पकड़ कर जेल में ठूस दिया जाता है। अब करो अपना बचाव, लगाओ कोर्ट कचहरी के चक्कर।
प्रश्न  उठता है, जब सरकार में बैठे लोगवही  कर रहे हैं जो कि विदेशी शासक करते आ रहे थे, फिर यह जनता की सरकार कहाँ से हो गई, हम आजाद कहाँ से हो गए।
ऐसा लगता है विदेशी शासको ने केवल सत्ता का हस्तांतरण कर दिया था।वही अंग्रेजो के ज़माने के कानून और वही अंग्रेजो के ज़माने की पुलिस। जो कि पहले भी शांत पूर्ण प्रदर्शन पर बर्बरता पूर्वक लाठी  चलाती थी और अब भी वही करती है।
हम खुश हो कर अपनी पीठ थपथपाते रहते हैं कि हमें आजादी मिल गई। हर साल 15 अगस्त, 26 जनवरी पर आजादी के तराने गाते है, प्रभात फेरी लगते है। स्कुलो में तरह- तरह के उत्सव करते हैं, लालकिले पर  खड़े होकर सत्ता के शासक  झंडा फहरा  कर  हमें बताते हैं कि अब हम आजाद हो चुके हैं।  
26 जनवरी पर राजपथ पर परेड निकाल कर हमें आजाद होने का अहसास कराया जाता है। बताया जाता है आज के दिन 26 जनवरी 1950 से हमारा संविधान लागू  हो गया है।
कैसा संविधान है यह जहाँ देश का मुखिया यानि कि राष्ट्रपति का चुनाव जनता नहीं करती है। उसे तो जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि  अपनी सुविधा के  आधार  पर करते  हैं।
जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि, जन प्रतिनिधि बनते ही  विशिष्ट हो जाते हैं। कुछ एक  के लिए तो , जिस रास्ते से वह गुजरते हैं वह रास्ता आम नागरिक के लिए रोक दिया जाता  है। पता लगता है फलां - फलां विशिष्ट व्यक्ति गुजरने वाला  है , आप लोग चुप -चाप खड़े रहे। कई तो इतने विशिष्ट होते हैं कि आम नागरिक को बोला  जाता है कि  आप लोग पीठ पीछे करके खड़े हो जाय। थोड़ी देर बाद जनता द्वारा चुने गए  विशिष्ट व्यक्ति का कांरवा, सायरन बजता हुआ गुजरता है उसके बाद आपको सड़क पर चलने की इजाजत मिलती है। यही है हमारा  प्रजा तंत्र, लोकतंत्र। जिन्हें हमने ही उस जगह पर बैठाया वही आंखे तरेरते नजर आते हैं। अपने विशेषाधिकार की बात करते हैं।
यह सब तो राज तंत्र में होता था , प्रजातंत्र में ऐसा नहीं होना चाहिए पर हो रहा है। सच तो यह है कहने के लिए प्रजातंत्र है पर व्यवस्था वही है, वही राजा , वही मंत्री , वही नगर कोतवाल।