Wednesday 23 October 2013

गंगटोक सिक्किम Part-2



अब दुसरे दिन का प्रोग्राम बनाना था। सभी को बोल दिया की सुबह 5  बजे   उठ जाना तभी कंचनजंगा का खुबसूरत नजारा देख पाओगे। परन्तु यह क्या, रात भर हल्की - हल्की  बारिश होती रही। सुबह उठे तो दूर - दूर तक बादलो  के सिवा कुछ भी नहीं दिख रहा था। 



सुवह के समय होटल से बाहर गंगटोक शहर का दृश्य, घाटी से उठते बादल 




सुवह के समय होटल से बाहर गंगटोक शहर का दृश्य 


सुवह के समय होटल से बाहर गंगटोक शहर का दृश्य ,घाटी से उठते बादल 

अब सभी सुबह आठ बजे तैयार होकर गंगटोक के अन्य दर्शनीय स्थलों के लिए निकले। नाश्ता वगैरह करते हुए टैक्सी तय करने में 9  बज गए। टैक्सी वाले मनमाने रेट मांग रहे थे। हमने 8  घंटे के 1000/- रूपये के हिसाब से 4  टैक्सी तय की। उसमे यह था कि रूमटेक  मानेस्टी  जो कि  23  किलोमीटर है उसे छोड़ कर बाकि सभी जगह ले जायेगे। जैसा की मै पहले लिख चूका हूँ कि शहर के अन्दर छोटी कार ही टैक्सी के रूप में चलती हैं और इसमें 4  से ज्यादा सवारी  वह लोग नहीं बैठाते हैं।  एक सिस्टम बना हुआ है और उसे वह लोग नहीं तोड़ते हैं। हम 14  लोग थे पर हमें 4  टैक्सी ही करनी पड़ी।
सबसे  पहले हम लोगो को फ्लावर शो ले गए। यहाँ पर कई तरह के फ्लावर थे वैसे यहाँ दिल्ली में नहीं दिखाई पड़ते। 
फ्लावर शो

फ्लावर शो

फ्लावर शो में फव्वारा 


वहां पर 10 - 15  मिनट के बाद ही हम नए व्यू पॉइंट के लिए चल दिए। अब  हम  Enchey Monestory के लिए  चल दिए। जैसा कि मैंने पढ़ा था यह 200 वर्ष पुरानी मोनेस्टी है . यह गंगटोक T V  स्टेशन के पास है। यहाँ पर आकर हमें पता लगा कि गंगटोक  का सही उच्चारण गंगतोक है जबकि हम लोग गंगटोक बोलते हैं, इस समय यहाँ लामा लोग पाठ  कर रहे थे। 




Enchey Monestory


Enchey Monestory

 थोड़ी देर यहाँ रुकने के बाद अब हम लोगो को ड्राइवर हनुमान टोक ले गए।
बादलो से ढका हनुमान टोक  मंदिर 

बादलो से ढका हनुमान टोक  मंदिर 

बादलो से घिरा  हनुमान टोक

हनुमान टोक गंगटोक से लगभग 9  किलोमीटर दूर 7200  फिट की ऊंचाई पर है। इस समय यहाँ पर धुंध और बादलो का  कोहरा छाया हुआ था। दूर का कुछ भी स्पष्ट नहीं दिख रहा था। यहाँ पर मंदिर में प्रवेश करने से पहले एक छोटा सा चारो तरफ से खुला हुआ बहुत ही सुन्दर  कमरा बना था जहाँ पर बैठ कर आप अपने जूते - चप्पल उतार  कर रैक में रख  सकते है और बाद में बैठ कर पहन सकते हैं। इतनी सुन्दर व्यवस्था मैंने अभी तक कहीं नहीं देखी। मंदिर में पुजारी मूर्ति से दूर बैठे पाठ कर रहे थे, आप की श्रधा है तो दान पात्र में कुछ डाले अन्यथा प्रसाद ग्रहण करके चले आये। यहाँ पर हनुमान जी का मंदिर तो है ही साथ में राम , लछमण , जानकी जी का भी मंदिर है।
बादलो से ढका राम-जानकी मंदिर ,हनुमान टोक 


हनुमान टोक 

यहाँ से वापस लौटते हुए Bakthang Waterfalls  पर  रुके। यहाँ पर हमारी टीम ने खूब एन्जॉय किया। यहाँ पर रोप स्लाइडिंग की जा रही थी। जिसके चार्जेज 100 /- थे और मुश्किल से 100  फिट की दुरी वह लोग तय करवाते थे। कुछ लोगो ने इसका लुत्फ़ लिया। करीब एक घंटे से ज्यादा हम लोग रुके रहे क्योकि एक - एक कर यह लोग रोप स्लाइडिंग कर रहे थे।
 Bakthang Waterfalls


 Bakthang Waterfalls


near Bakthang Waterfalls


enjoying rope slider  Bakthang Waterfalls 






Flowers near Bakthang Waterfalls


Flowers near Bakthang Waterfalls







यहाँ से आगे बढ़ने पर एक छोटा सा वाटरफाल और मिला। यह वाटर फाल अभी व्यू पॉइंट में नहीं आता है। फिर भी थोड़ी देर के लिए रुके , फिर आगे बढे।
वाटरफाल


वाटरफाल



वाटरफाल

अब हम लोग गणेश टोक के लिए चल दिए। यह भी एक हिल पर गंगटोक से 7  किलोमीटर पर है। यहाँ से गंगटोक शहर का व्यू काफी ऊंचाई से दिखता है। अगर साफ़ मौसम हो तो यहाँ से कंचनजंघा एवं अन्य पर्वत श्रंखलाये बहुत सुन्दर दिखती हैं। लेकिन कल रात  बारिश होने के कारण अभी तक बादल छाये हुए थे। गणेश टोक  के बाहर कुछ स्थानीय निवासी वहां की ड्रेस किराये पर दे कर फोटो खिचवाने के लिए कह रहे थे।



गणेश टोक




गणेश टोक व्यू पॉइंट

यहाँ से आगे चले तो हमें ड्राइवर ताशी  व्यू पॉइंट पर ले गये। यह भी बहुत खूब सूरत जगह है। यहाँ पर चारो तरफ की हिल्स , कंचनजंगा स्पष्ट दिखता है अगर मौसम साफ़ हो। यहाँ पर जापानी ड्रेस पहन कर कई लोग फोटो खिंचवा रहे थे। यादे संजो कर अपने साथ ले जाने के लिए। 
ताशी  व्यू पॉइंट



ताशी  व्यू पॉइंट

ताशी  व्यू पॉइंट

मुझे मालूम था की हमें निराशा ही हाथ लगेगी, क्योकि जाने से पहले ही हमने जब गूगल पर गंगटोक के मौसम के बारे में जानना चाहा तो गंगटोक में बादल और बारिश ही बता रहा था और यहाँ पर आकर लगा कि  ज्यादातर इस तरह की भविष्यवाणी सही ही होती है।
ताशी  व्यू पॉइंट से ड्राइवर हमें क्राफ्ट मेले में ले जाना चाहता था पर जब हम लोगो ने देखा दोपहर के ढाई बज रहे हैं तो मैंने कहा, क्राफ्ट मेले में जाने से और समय ख़राब होगा बेहतर है रोप वे चलते हैं। अभी कई पॉइंट जाना था पर समय कम बचा था। सभी को ज्यादा से ज्यादा घुमने का विचार था। यहाँ पर ड्राइवर ने बताया,  4  बजे के बाद सब कुछ बंद हो जाता है या तो आप लोग रोपवे से घूम लो वहां पर दो पॉइंट और हैं वह भी घूम लेना अन्यथा Bonjhakari Water Falls  घूम  सकते हैं। वाटर फाल रास्ते में दो  - तीन  देख चुके थे इसलिए रोपवे के लिए चल दिए।
रोप वे से गंगटोक शहर का विहंगम दृश्य 

रोप वे से गंगटोक शहर का विहंगम दृश्य 


रोप वे से गंगटोक शहर का विहंगम दृश्य 

रोप वे से गंगटोक शहर का विहंगम दृश्य 

रोपवे 70 /- रूपये किराया था एक बार में करीब 20 से 25 लोग इसमें सफ़र कर सकते थे। इसमें बैठने की व्यवस्था नहीं है इसमें खड़े होकर आस-पास और  नीचे का व्यू देखते हैं। एक अलग ही नजारा देखने को मिल रहा था साथ ही साथ जब बस नीचे को तेजी से उतर रही होती है तब हल्का सा डर  भी लगता है।
Beautiful sub-way near rope way

रोपवे की यात्रा के बाद सीढियों से नीचे उतरते हुए एक रेस्टोरेंट है। इस समय तक  भूख जोरो की लग रही थी सभी यहाँ पर खाना खाने के लिए रुक गए। यहाँ पर हम लोगो को आधे घंटे  से ज्यादा समय लग गया और अब 4  बजने वाले थे। ड्राइवर जल्दी से पास में  ही Namgyal Institute of Tibetiology ले गया। जो 4  बजे  बंद हो जाती है अभी हम अन्दर घुसे मुश्किल से एक मिनट ही हुआ था कि  केयर टेकर ने लाइट  बंद कर दी बोला  टाइम ओवर। 
Namgyal Institute  of Tibetiology


Namgyal Institute  of Tibetiology

वहां से बाहर आये सामने ही  चढ़ाई पर Do Drul Chorten स्तूप है। यहाँ  से वापस होटल के लिए चल दिए।

Do Drul Chorten स्तूप

अब तक शाम ढल चुकी थी सडको पर और मार्किट में लाइटे  जगमगा रही थीं। परन्तु सारे दिन की भाग दौड़ के बाद शारीर इतना थक चूका था कि  लग रहा था कि अब कुछ देर आराम किया जाय। आठ घंटे से ज्यादा समय घूमते हुए हो गया था।
एक बात और हम लोग इतने सारे व्यू पॉइंट पर गए पर कहीं भी कोई टिकेट वगैरह नहीं चार्ज किया जा रहा था। हाँ कुछ एक जगह टैक्सी स्टैंड वाले जरुर 10 /- रूपये प्रति कार चार्ज कर रहे थे। 
सभी लोग अपने - अपने कमरों में आराम करने पहुँच गए। तय हुआ एक घंटे के रेस्ट के बाद लालबाजार , M .G Road घुमने चलेंगे। आखिर आज की शाम ही बची थी कल हमें वापस लौटना था।
 M .G Road
रात में बारिश में भीगी M .G .Road  का नजारा 




आज बारिश नहीं हुई पर शाम के समय मौसम में काफी ठंडक थी सभी लोग स्वेटर या जैकट पहने हुए थे। आज मार्किट में काफी गहमागहमी थी। दो - तीन घंटे घूमने  और छोटी - मोटी  खरीदारी  के बाद वहीँ खाना खाकर 9  बजे तक सभी वापस होटल पहुँच गए।
इस बीच में मैंने वापस जाने के बारे में जानकारी प्राप्त कर ली। पता लगा अगर सुबह 7 बजे हम लोग नई जलपाई गुडी के लिए निकलते हैं तब बड़ी गाडी या बस हमें होटल के पास ही मिल जाएगी। लेकिन साढ़े सात के बाद हमें यहाँ से वापस उसी जगह जाना होगा जहाँ से बड़ी टैक्सी कार बन कर चलती हैं। मै सुबह सात बजे से पहले ही पास के टैक्सी स्टैंड पर पहुँच गया।
काफी मोल भाव के बाद टैक्सी स्टैंड पर इन टैक्सी वालो के  लीडर  ने 4000 /- में दो बड़ी टैक्सी कार के लिए हाँ की। शायद इन लोगो की अपनी टैक्सी चलती हैं इसलिए इनमे से कोई एक ही तय करता है। काफी शिष्ट और अच्छे ढंग से यह लोग बात करते हैं। उसने तुरंत ही टैक्सी स्टैंड अपने मोबाइल से फोन करके दो गाड़ी भेजने के लिए बोला और मेरे से कहा आप लोग अपना सामान  होटल से नीचे ले आये। क्योकि बड़ी टैक्सी वहां पर ज्यादा समय रुक  नहीं रह सकती।
अब तक 7.30  हो गए थे हमारे साथी लोग अपना सामान तो नीचे ले आये पर कुछ लोगो को सुबह - सुबह  ही भूख लग आती है इसलिए  नाश्ता करने एक दूकान में घुस गए।
अब तक टैक्सी आ चुकी थी सबने अपना - अपना सामान रखवाया तभी वही लीडर आकर मुझसे टैक्सी का भाडा मांगने लगा। मैंने उसे 2000 /- रूपये दिए और कहा बाकी नई जलपाई गुडी पहुँच कर दूंगा। वह मुझसे पुरे 4000 /-  रूपये मांग रहा था। मैंने कहा कि अभी तो हम गंगटोक में ही है और तुम पूरे  पैसे मांग रहे हो यह तो गलत बात है।
तब वह बड़े गर्व से  बोला,  साहब यहाँ गंगटोक में आपको कोई भिखारी नहीं मिलेगा और  कभी कोई चीट नहीं करेगा। चीट करने वाली बात तो मै नहीं जानता कि  कितनी सच थी पर यह बात उसकी सच मिली कि  यहाँ पर इतने मंदिर  हो आये कई व्यू पॉइंट घूम लिए , मार्किट घूम लिए  पर कहीं भी कोई भिखारी नहीं दिखा। मैंने सलाम किया उसकी इस बात को और 2000 /- रूपये देने लगा पर उसने 1000 /- रूपये लेकर बोला  1000/- रूपये  आप वहां पहुँच कर दे देना।
उसकी  गर्व से कही यह बात रास्ते भर कानो में गूंजती रही।
रास्ते में मैंने टैक्सी ड्राइवर से पूछा यह तुम्हारे  लीडर का इसमें कितना कमीशन है। ड्राइवर बोला नहीं साहब यहाँ पर कमीशन नहीं चलता। हम लोग आपस में एक दूसरे की मदद कर देते हैं। ताज्जुब हुआ कि एक आदमी मुझसे इतना मोल-भाव कर रहा है अपने मोबाईल से फोन करके टैक्सी बुलवा रहा है , वहां खड़े पुलिस वाले को समझा रहा है और उसका कोई कमीशन नहीं ? मैंने फिर पूछा तो कुछ एन्ट्री फ़ीस वगैरह देते होगे लेकिन उसका उत्तर फिर वही , नहीं यहाँ पर  कोई एन्ट्री नहीं देनी पड़ती। मेरा मन नहीं माना ,  मैंने फिर पूछा कि कुछ दादा टाइप के या पुलिस के चमचे तो वसूलते होंगे , वह बोला  नहीं यहाँ पर ऐसा कुछ नहीं है।
सुनकर ताज्जुब हुआ यहाँ दिल्ली, NCR में वैगैर एंट्री दिए मजाल है कोई ऑटो रिक्शा, टैक्सी, टेम्पो चला कर दिखाए।
लोग गीत गाते हैं दिल्ली है शान भारत की
वापस लोटते समय विचार आ रहा था कि अब अगर आना हुआ तो कम से कम तीन- चार दिन के लिए आयेंगे। एक तरह से हम अधूरी यात्रा से वापस लौट रहे थे। 
रास्ते में एक जगह  चाय - पानी के लिए रुके और हम लोग लगभग 1  बजे नई  जलपाई  गुडी  रेलवे स्टेशन पहुँच गये। प्लेटफार्म पर जाने पर पता लगा ट्रेन आधे घंटे लेट है। दिल्ली पहुँचते - पहुँचते हमारी ट्रेन करीब 4 .30 घंटे लेट हो गई थी। जबकि इस ट्रेन के रास्ते में केवल तीन स्टापेज कटिहार , इलाहाबाद और कानपूर हैं। जब हम लोग दिल्ली के लिए नई  जलपाई  गुडी  रेलवे स्टेशन  के प्लेटफार्म पर थे तभी पता लगा दिल्ली से आने वाली नार्थ ईस्ट एक्सप्रेस 6 घंटे लेट है। सोंचने लगा आजकल सर्दी का मौसम नहीं है , कोहरा नहीं पड़ रहा है तब तो ट्रेनों का यह हाल है जब कोहरा पड़ने लगेगा तब क्या होगा। 
सरकार  अच्छी ट्रेन  सुविधाओ को देने के नाम पर रेल  किराया तो बढा देती  है पर एक बार किराया बढाया फिर भूल जाती है कि उसकी कोई जिम्मेदारी या जबाबदेही है। 
गंगटोक जाने के लिए कुछ जानकारियां 
रेल से गंगटोक जाने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन नई  जलपाई गुडी है कुछ ट्रेन सिलीगुड़ी रेलवे स्टेशन भी रूकती हैं। स्टेशन  के  बाहर से ही टैक्सी मिल जाती जोकि इस समय रूपये 250/- प्रति व्यक्ति चार्ज करते हैं। बड़ी टैक्सी जिसमे 8 से 10 लोग बैठते हैं का किराया 2100 /- से 2200 /- रूपये लगभग है। सिलीगुड़ी से  बस भी गंगटोक जाने के लिए मिलती हैं पर उसके लिए पहले नई  जलपाई गुडी से सिलीगुड़ी जाना होगा। वहां जाने के लिए थ्री व्हीलर मिलते हैं। बसे सुबह 11 बजे तक ही सिलीगुड़ी से गंगटोक के लिए चलती हैं। 
हवाई जहाज से जाने के लिए बागडोगरा निकटतम हवाई अड्डा है। वहां से भी गंगटोक लगभग 125 किलोमीटर है। 
नई  जलपाई गुडी से गंगटोक  तक की दुरी लगभग 125 किलोमीटर है। टैक्सी से 4  से 5  घंटे लगते हैं। 
एक विशेष बात यह कि यहाँ पर आप मार्किट में या सड़क पर सिगरेट नहीं पी सकते। जगह - जगह पर वार्निंग के  साइन बोर्ड लगे हुए हैं।  



Monday 21 October 2013

सिक्किम, गंगटोक part-1

इस बार  2 अक्टूबर-2013  पर 2 दिन की छुट्टी लेने पर हम लोगों कोदिन मिल रहे थे इसलिए दिल्ली से दार्जिलिंग घुमने जाने का प्रोग्राम आफिस के लोगो के साथ बनाया।सभी लोग एक नई  जगह घुमने जाने के लिए उत्सुक थे। हांलाकि मै 1996 में वहां गया था पर तब मै आफिस के काम से गया था वह भी एक दिन भी नहीं रुक सका था। वैसे भी मझे ऐसा लगता है कि अगर घुमने जा रहे हैं तो जब तक कुछ एक मित्र , साथी हो तब तक घुमने का असली मजा नहीं आता है। प्रोग्राम तो करीब तीन महीने पहले  ही बनना शुरू हो गया था पर रेलवे की बुकिंग 60 दिन पहले ही आजकल होती है अत; जैसे ही बुकिंग शुरू हुई तुरंत ही हमने टिकेट बुक करा ली। हम 16  लोग थे सभी की टिकेट एक ही डिब्बे में नार्थ ईस्ट एक्सप्रेस से दिल्ली से नई जलपाईगुडी के लिए  बुक हो गई। 
अभी टिकेट बुक करवाए 10 -15 दिन ही हुए थे कि  तभी केंद्र सरकार ने एक नया राजनीतिक पैतरा चलते हुए अलग तेलांगना राज्य की घोषणा कर दी। और इस घोषणा के होते ही अलग दार्जिलिंग राज्य की मांग राख में दबी हुई चिंगारी की तरह सुलग उठी।  सोंचा अभी तो बहुत दिन हैं , कुछ दिन में सब कुछ शांत हो जाएगा। पूरा महिना गुजर गया पर दार्जिलिंग के हालात में कोई सुधार नहीं हुआ तब सोंचा कही और चलते हैं।
मन में आया क्यों   सिक्किम की राजधानी गंगटोक चला जाय। वहां के बारे में थोड़ी - बहुत जानकारी ही थी पर यह मालूम था कि  बहुत ही खुबसूरत प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर जगह है। गंगटोक के बारे में सबसे पहले घुमक्कड़ की साईट पर जा कर जानकारी हासिल करने की चेष्टा की। घुमक्कड़ पर कुछ एक लेख गंगटोक के बारे में मिल भी  गए।  यह सोंच कर कि  वहां जाने के लिए भी पहले ट्रेन से  नई जलपाईगुडी ही जाना होता है। टिकेट भी कैंसिल करवाना नहीं पड़ेगा।  मैंने सबको गंगटोक चलने के लिए बोल दिया। अब क्या था कि टीम दो भागो में बाँट गई। आधे लोग गंगटोक की जगह  डलहौजी जाने के लिए प्रोग्राम बनाने लगे। पहले तो उनको समझाया कि डलहौजी में पांच  दिन में बोर हो जाओगे। वहां जाना है तो कभी भी  दो - तीन दिन की छुट्टी में हो आना। पर वह लोग समझने को तैयार नहीं हो रहे थे।
अब मैंने महसूस किया कि एक टीम को बनाना और उन सबको बांध कर रखना कितना कठिन काम होता है। खैर मै  भी एक बार जो सोंच लेता हूँ फिर वही करता हूँ। मैंने भी कह दिया अगर तुम लोगो को जाना है तो जाओ हम  तो गंगटोक ही जायेंगे।
 यहाँ पर भी समस्या यही थी कि केवल एक पूरा दिन ही घूमने को मिल रहा है जबकि इतनी दूर जाकर भी अगर दो- तीन दिन रहा जाय तो फायदा क्या। पर क्या करते सभी लोगो की छुट्टी का हिसाब भी तो देखना था।
सभी के लिए सुबह के नाश्ते और दोपहर के खाने का काफी कुछ प्रबंध मैं कर के चला था पर बाकी  लोग भी कुछ कुछ ले कर आये थे इसलिए ट्रेन में नाश्ता और खाना घर से लाये हुए से ही हो गया। ट्रेन का खाना खाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। ट्रेन में सभी लोग आपस में बाते करते , खेलते हुए चले जा रहे थे समय तेजी से गुजर रहा था। कोई बोरियत नहीं हो रही थी।
यह सुपर फ़ास्ट ट्रेन है आशा  के विपरीत  ट्रेन  नई जलपाईगुडी पहुँचते - पहुँचते लगभग साढ़े तीन घंटे लेट हो गई। अब समय काटे नहीं कट रहा था बस लग रहा था जल्दी से  ट्रेन नई जलपाई गुडी पहुँच जाय पर ज्यो - ज्यो स्टेशन नजदीक रहा था त्यों - त्यों ही ट्रेन थोड़ी सी चलती फिर रुक जाती करते - करते जैसे- तैसे  नई जलपाई गुडी पहुँच गई। 
नई जलपाईगुडी स्टेशन को 

प्लेटफार्म से बाहर आकर गंगटोक जाने के लिए टैक्सी ढूढने की जरुरत नहीं पड़ी। कई टैक्सी वाले गंगटोक के लिए तैयार खड़े थे पर जब मैंने उनसे भाडा पूछा तो 2500/- से कम पर कोई तैयार ही नहीं था। जबकि इंटरनेट पर प्राप्त सूचना के आधार पर मै 150/- रूपये के हिसाब से   1500/-  प्रति टैक्सी देने की बात कर रहा था। शायद वह पुरानी जानकारी थी फ़िलहाल इस समय 250 /- सवारी के हिसाब से टैक्सी गंगटोक जाती हैं। काफी मोल भाव के बाद 4100/- में दो टाटा सूमो से हम लोग गंगटोक के लिए दोपहर 12  बजे चल दिए।
सिलीगुड़ी से गंगटोक जाने की रोड 

सिलीगुड़ी से बाहर निकलते ही मौसम काफी अच्छा होने लगा था। हल्की -हल्की  रिमझिम शुरू हुई पर ज्यादा देर तक नहीं चली। 
गंगटोक जाने की रोड से सामने दिखते पहाड़ 

सिलीगुड़ी से लगभग 20 किलोमीटर आगे बढ़ते ही हमें तीस्ता नदी के दर्शन होने शुरू हो गए। अब हमारी कार तीस्ता के किनारे - किनारे आगे बढ़ रही थी। 
रास्ते  में  तीस्ता  


रास्ते  में  साथ  - साथ बहती तीस्ता  

यहाँ आकर पता लगा कि नई जलपाईगुडी से गंगटोक जाने का  रास्ता दार्जिलिंग के अंतर्गत आता है, आज दार्जिलिंग बंद का एलान किया गया था तभी रास्ते में पड़ने वाले छोटे - छोटे होटल दुकाने बंद थे या आधा शटर खोल कर अपना काम चला रहे थे।
लगभग दो बजे टैक्सी ड्राइवर ने एक जगह दोपहर का खाना खाने के लिए टैक्सी रोकी। यहाँ पर भी बंद के कारण  सुना सा पड़ा हुआ था। हम लोग ने भी एक छोटे से होटल में बैठ कर दोपहर का खाना खाया। खाना बहुत ही साधारण सा था हाँ चाउमीन और मोमोज फिर भी ठीक थे। वैसे  भी आप जिस जगह जाते हैं अगर वही का खाना  खाते हैं तो वह तो ठीक ही मिलेगा। यहाँ पर हम लोगो को करीब आधे घंटे से ज्यादा वक्त लग गया।
रास्ते  में तीस्ता के पास बने होटल , यहाँ दोपहर के खाने के लिए रुके 

खाने से निपटने के बाद फिर सभी लोग टैक्सी में बैठ गंगटोक के लिए चल दिए। तीस्ता नदी जो कि यहाँ की जीवन रेखा है उसके किनारे - किनारे हम लोग आगे बढ़ रहे थे। ज्यादातर बस्ती इस नदी के किनारे बसी हुई है। जिनमे झोपड़पट्टी नहीं बल्कि साफ - सुथरे मकान बने हुए हैं। 
लगभग 4 बजे से पहले ही हम लोग सिक्किम के  प्रवेश द्वार पर पहुँच गए। यहाँ पर हम लोगो से प्रवेश द्वार पर एक अधिकारी ने पहिचान पत्र मांगे। टैक्सी ड्राइवर  ने हमें पहले ही बता दिया था कि अपने - अपने पहिचान पत्र निकाल ले। हांलाकि  ग्रुप में सबके पास होना आवश्यक नहीं होता है। मैंने जब उसे बताया कि हम सब एक ही ग्रुप में घुमने आये हैं तब उसने केवल एक -दो के देखने के बाद आगे जाने दिया। 
सिक्किम प्रवेशद्वार 

सिक्किम में प्रवेश करते ही हमारे दोनों तरफ ही पांच - छह मंजिलो के मकानों की कतारे नजर आने लगी। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हम हिल स्टेशन पर हैं। सुन्दर साफ - सुथरा क़स्बा था। पहाड़ो के घुमावदार रास्तो से होते हुए लगभग  4.30  बजे हम गंगटोक पहुँच गए।
अब हमें शहर के अन्दर होटल डेन्जोंग जाना था  पर पता लगा कि यह बड़ी टैक्सी शहर के अन्दर नहीं जा सकती। वहां पर जाने के लिए छोटी टैक्सी से ही जाना होगा और उसमे भीलोगो से ज्यादा नहीं बैठ सकते। हाँ सुबह आठ बजे से पहले अवश्य यह टैक्सी  वहां जा सकती हैं।  शहर की परिवहन व्यवस्था इन छोटी टैक्सी पर ही टिकी हुई है। लोग या तो अपने वाहन से चलते है अन्यथा इन टैक्सी पर ही निर्भर रहते हैं। यहाँ पर ऑटो , टेम्पो , ग्रामीण सेवा आदि नहीं चलते हैं। सिर्फ छोटी कार वाली टैक्सी। इन छोटी टैक्सी का किराया भी ज्यादा नहीं है। पंद्रह रूपये सवारी के हिसाब से लोग सफर करते हैं।
inside the hotel 
inside the hotel 
हमें लाल बाजार, डेन्जोंग  सिनेमा के साथ लगे हुए डेन्जोंग होटल जाना था  , टूरिस्ट समझ कर हम लोगो  से वहां पर टैक्सी वाले 150/- रूपये प्रति टैक्सी मांगने लगे। मैंने होटल फोन कर जानकारी ले लेना उचित समझा  कि  यह लोग ज्यादा पैसे तो नहीं मांग रहे हैं। होटल वाले ने बताया कि  90 - 100 रूपये से ज्यादा नहीं लगता है।  आप लोग टैक्सी स्टैंड से बाहर  आकर टैक्सी कर लो। टैक्सी स्टैंड से बाहर  सड़क पर आये तो एक ने 100/- रूपये मांगे तो हमें लगा सही भाडा मांग रहा है उससेलोग होटल रवाना  हो गए दुसरे ने 80/- मांगे उसके बाद दो  टैक्सी वाले 60/- रूपये में ही चल दिए। मतलब यह कि  अगर आप मोल -भाव करना नहीं जानते या स्थानीय लोगो से नहीं पूछेंगे तो आपकी जेब ज्यादा हल्की  हो जाएगी।
Denzong Inn, Gangtok




होटल ज्यादा दूर नहीं था 10 मिनट भी नहीं लगे वहां पहुँचने में। लेकिन अब तक शाम ढलनी शुरू हो गई थी और बूंदा - बांदी  भी होने लगी थी। कुल मिलाकर मौसम बहुत ही खुशनुमा हो गया था।  यह होटल नेट सफरिंग करके ढूंढा  था और मुख्य बाजार में होने के बाबजूद किराया काफी कम मैंने करवा लिया था। 800/- रूपये में हमें डबल बेड  रूम मिला था और सिंगल के लिए केवल 500 /- चार्ज किया था। वैसे भी आजकल सीजन भी नहीं था।  होटल के मैनेजर राज कुमार से फोन पर ही सब कुछ तय हुआ। राज कुमार छेत्री अच्छी हिंदी बोल लेता था। होटल बहुत ही अच्छी लोकेशन में था। होटल बहुत पसंद आया।  सभी लोग अपने - अपने कमरों में फ्रेश होने के लिए चले गए। सोंच तो यह रहे थे कि तैयार हो कर मार्किट घुमने चलेंगे। परन्तु अब बारिश तेज होने लगी थी। लगभग घंटे भर बाद बारिश थोड़ी कम हुई तो सब लोग छाते लेकर लालबाजार घुमने के लिए निकल पड़े।

शाम के समय , होटल की बालकनी से बाहर के दृश्य  

शाम के समय , होटल की बालकनी से बाहर के दृश्य 

शाम के समय , होटल की बालकनी से बाहर के दृश्य 


लालबाजार  जो कि  सीढ़ी नुमा मार्किट है, यह मार्किट होटल के गेट से ही  शुरू होती है। इस समय काफी चहल कदमी इस मार्किट में थी। जबकि रिम - झिम , रिम - झिम बारिश हो रही थी। यह सीढ़ी नुमा मार्किट M .G .ROAD  पर पहुँच कर ख़त्म होती है।
 सुबह 7  बजे के समय , सीढ़ी नुमा लालबाजार , अभी मार्किट खुली नहीं थी



M .G .ROAD

M .G .ROAD

गंगटोक की  M .G .ROAD  मार्किट एक खास तरह की मार्किट है और मै समझता हूँ ऐसी मार्किट हिंदुस्तान में कही नहीं है। यह बहुत बड़ी मार्किट नहीं है पर जितनी  बड़ी हैहै बहुत शानदार। लगभग 80  या 100  फुट चौड़ी रोड  है जिसमे बीच में लोगो के बैठने के लिए बेंचे पड़ी है। सड़क पर डामर की जगह खुबसूरत  टाइल्स लगे हुए हैं। सड़क पर कोई वाहन  नहीं चलता है। रात में जगमगाती रोशनी   में यहाँ का नजारा देखने लायक  होता है।
हल्की बारिश में M .G .Road पर कल्चरल प्रोग्राम 

इस समय यहाँ M .G .ROAD   पर कुछ कल्चरल प्रोग्राम चल रहा था। वह लोग माइक पर अपनी सिक्किमकी भाषा में ही कुछ कह  रहे थे पर गाने बालीबुड के ही गा  रहे थे। 
रात में   रौशनी में नहाया M .G .Road 

रात में   रौशनी में नहाया M .G .Road 

रात में   रौशनी में साफ़-सुथरी  M .G .Road 

हम लोगो के पहुँचने के समय ज्यादातर दूकानदार अपनी दुकाने बंद करने जा रहे थे। आठ बजे तक तो सारी मार्किट बंद हो जाती है केवल दो-चार दुकाने या रेस्टोरेन्ट ही खुले होते हैं। वह भी अधिक से अधिक रात्रि 9 बजे तक ही। अगर कोई रात  के दस बजे खाना खाने के लिए रेस्टोरेंट ढूढना  चाहे तो उसे निराशा ही हाथ लगेगी।