Thursday 21 November 2013

ग्वालियर किले की ऒर भाग-2


उस समय प्रयुक्त होने वाली डोली एवं बग्घी 

उस समय प्रयुक्त होने वाली डोली एवं बग्घी 


यहाँ पर उस समय सवारी में प्रयुक्त होने वाल तरह -तरह की बग्घी , डोली आदि रखी हुई हैं।

सफ़ेद बाघ
कांच के पायों पर टिकी सीढ़ियों की रेलिंग 

इसके साथ  ही महल के दूसरे भाग में हम पहुँचते हैं जिसे दरबार हाल के नाम से जाना जाता है।  यहाँ पर राजसी भोजनालय है जहाँ पर एक साथ बहुत सारे लोगो के खाने की व्यवस्था है।  मेहमानों के  साथ यहीं पर खाना खाने का प्रबन्ध है।  दरबार हाल की चकाचौंध उस समय के राज घराने के वैभव और विलासिता की दास्तान कह रहे थे।  इसकी छत में लटके विशालकाय झाड़ - फानूस का वजन लगभग तीन - तीन टन है।  इसकी छत इसका वजन उठा पायेगी या नहीं इसलिए छत के ऊपर दस हाथियो को चढ़ा कर छत की मजबूती की जाँच की गई थी।  दरबार हाल में जाने की सीढ़ियों के किनारे लगी रेलिंग कांच के पायो पर टिकी हुई है।  एक गार्ड यहाँ पर बैठा दर्शको को यही आगाह करवा रहा था कि रेलिंग को न छुए।

वैभव का प्रतीक दरबारे हाल 

दरबारे हाल की  कलात्मक छत और विशालकाय झाड़ - फानूस 


महल  का भव्य डाईनिंग हॉल 

महल  का भव्य डाईनिंग हॉल में डाईनिंग टेबल पर चाँदी की ट्रेन से खाना परोसने की व्यवस्था 

शानदार कटलरी 


महल  का भव्य डाईनिंग हॉल का दूसरा भाग 
जमीन पर बिछे दस्तरखान 


JAI VILAS PALACE
made in canada manufactured in 1919

another car / train


लगभग एक -  डेढ़  घंटे घूमने के बाद महल से बाहर  आया।  अब ग्वालियर का किला देखने का प्रोग्राम था।  ऑटो वाले से पूछा , बोला  70 रूपये।  थोडा सा मोल-भाव किया , बोला 60  रूपये से कम नहीं लूंगा , मैंने कहा ठीक है चलो पर रास्ते में कहीं रोक लेना कुछ खाने का ले लेंगे।  ट्रेन में  जो नाश्ता किया था उसके बाद  भागम - भाग में खाने का कुछ ध्यान ही नहीं रहा।  ऑटो वाले ने एक दुकान पर रोका , वहाँ पर समोसे लिए और  किले के लिए चल दिए।
ऑटो ड्राइवर ने मुझे किले  में जाने के लिए जिस भाग में उतारा  यहाँ से किले में जाने के लिए काफी चढ़ाई है।  उसने चढ़ाई से पहले ही उतार दिया और सामने लगे बोर्ड को दिखा कर कहने लगा , यहाँ से टैक्सी -ऑटो आगे नहीं जा सकते।  प्राइवेट कार ही जा सकती हैं।  वहीँ पर प्राइवेट  टैक्सी कार वाले से किले में जाने के लिए पूछा तो उसने 450  रूपये में किला घुमाने की बात कही।  कहने लगा बहुत बड़ा यह किला है और तीन-चार  किलोमीटर में फैला है।   सामने किले में जाने की चढ़ाई देखकर आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी।  अभी वहाँ खड़ा हुआ सोंच ही  रहा था कि क्या करना चाहिए।  इस टैक्सी वाले को 450 रूपये दूँ या फिर वापस  लौट जाऊ।सोंच रहा था कि अगर एक -दो लोग और आ जाते हैं तो मिलकर शेयर टैक्सी कर लेंगे।    तभी वहाँ पर एक युवक - युवती ऑटो से उतरे।  मैंने उनके पास जाकर पूछा कि वह लोग कैसे जायेंगे। वह लड़का बोला मै तो यहाँ कई बार आ चूका हूँ चले - चलो। हम लोग तो पैदल ही पूरा किला घूम आते हैं।  उन लोगो की बाते सुनकर मै भी उनके  पीछे - पीछे कि किले ऒर चल दिया।

इन लोगो के साथ किले की ऒर चल दिया

कुछ कदम आगे बढ़ता हूँ तो देखता हूँ कि  किले की तरफ जाने वाली पतली सी सड़क के एक तरफ, पत्थर  की चट्टानों को काट कर जैन समुदाय के तीर्थकरों कि मूर्तियां बनाई गईं हैं। इनमे से कई मूर्तियों भग्न अवस्था में थीं जिन्हे शायद किले पर विजय प्राप्त करने के बाद मद -मस्त  मुस्लिम आक्रान्ताओ ने इस अवस्था में पहुँचाया था।  यह बहुत ही कष्टप्रद विषय है कि इस्लाम को मानने वाले  अविवेक में  अपने विजयी दंभ  को वह इन पत्थरो पर निकालने लगते  है।  एक तरफ तो यह मुग़ल अपने आप को कला प्रेमी के रूप में स्थापित करने की चेष्टा करते हैं और दूसरी तरफ चट्टानों पर की गई इन कलाकृतियों को नष्ट करते हैं।   मंगलवार का दिन था इसलिए बहुत कम लोग ही किला घूमने के लिए जा रहे थे।  छुट्टी का दिन होता तो शायद यहाँ पर भीड़ देखने को मिलती।  वह दोनों युवक-युवती मुझे  रास्ता बता कर तेजी से आगे बढ़ गए।  मेरे पीछे एक विदेशी युवती भी चट्टानों को काटकर बनाये गए  इन जैन तीर्थकारों को देखती हुई आ रही थी।  मै  धीरे - धीरे चढ़ाई पर चढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा था पर मुझे दूर - दूर तक किला कही नहीं दिख रहा था। इतनी चढ़ाई चढ़ने के बाद मन ही सोंच रहा था कि इतनी चढ़ाई पर किला बनाने का अभिप्राय शायद यही होता होगा कि जल्दी तो किसी दुश्मन  की हिम्मत ही नहीं होती होगी इतनी चढ़ाई पर चढ़ कर हमला करने की और अगर किया भी तो पहले ही उसकी सेना इतनी पस्त हो चुकी होती है कि जीत की बहुत कम ही गुंजाइश होती होगी।    दो - तीन सौ गज या कुछ ज्यादा की चढ़ाई चढ़ने के बाद एक और गेट दिखाई पड़ता है।   किले के दूसरे गेट से करीब 200  गज आगे आने पर चढ़ाई ख़त्म हो जाती है।  यहाँ पर भी एक गार्ड रूम है।  यहाँ पर एक प्राइवेट टैक्सी वाला  बैठा था।  किला और किले के अंदर उसके आस - पास की जगह घुमाने के लिए इसने 250  रूपये मांगे।  इतनी चढ़ाई चढ़ने के बाद अब और आगे चलने की हिम्मत नहीं हो रही थी।  मैंने कहा कि पीछे भी कुछ एक लोग आ रहे हैं उनसे पूछ लो अगर वह लोग चले चलेंगे तो हम लोग आपस में शेयर कर लेंगे ।  तभी वह विदेशी युवती भी आ गई।ड्राइवर ने उसके पास जाकर शेयर  टैक्सी किराये पर लेने के लिए कहा पर वह उसकी बात ठीक से समझी नहीं तब   मैंने उससे कहा कि अगर हम  लोग यह टैक्सी शेयर कर ले तो सब जगह घूम लेंगे। यह टैक्सी वाला 250  रूपये मांग रहा है आधे - आधे हम लोग दे देंगे।  वह युवती भी शायद थक गई थी , वह राजी हो गई।

चट्टानों को  काट कर बनाई गई जैन तीर्थकरों की मूर्तियाँ 

किले की ऑर जाने के  लिए पतली सी सड़क 


चट्टानों को  काट कर बनाई गई जैन तीर्थकरों की मूर्तियाँ 


चट्टानों को  काट कर बनाई गई जैन तीर्थकरों की मूर्तियाँ 

चट्टानों को  काट कर बनाई गई जैन तीर्थकरों की मूर्तियाँ 

2 comments:

  1. यात्रा जारी है

    ReplyDelete
  2. Nice article and it will surely help lot of peoples in India to get travel assistance. I loved to travel and always book discounted yatra tickets by using coupon codes from http://www.yatracouponcode.co.in/

    ReplyDelete