Friday 28 December 2012

इस जनाक्रोश के मायने क्या ?


इस जनाक्रोश के मायने क्या ?
सबसे पहले बात करूँगा पिछले हफ्ते से इंडिया गेट पर उमड़े जन सैलाब की जोकि रेप पीडता के समर्थन में सरकार के खिलाफ उमड़ पड़ा। यह जनसैलाब किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा आवाहन करके ना तो बुलाया गया था और ना ही कोई राजनीतिक पार्टी इसका नेतृत्व कर रही थी। परन्तु देखने से लग रहा था कि एक जनाक्रोश है इस सरकार के खिलाफ। आज के नवयुवक – नवयुवती पुरे जोर-शोर से रेप पीड़ता के लिए न्याय मांग रहे थे । उनकी कोई अनुचित मांग नहीं थी। प्रजातंत्र में प्रजा ही सरकार होनी  चाहिए परन्तु ऐसा होता नहीं है। जो भी पार्टी चुनाव में चुन ली जाती है  वही सरकार होती है फिर वह जिस तरह से  चाहें उसी तरह से  प्रजा को चलाती  है।
सबसे दुर्भाग्य पूर्ण तो सरकार का रवैया रहा जोकि इस जनाक्रोश को राजनीतिक द्रष्टि से  देखते हुए नफा-नुकसान का आकलन करता नजर आ रहा था। पुलिसिया कारवाई से  लोग और भड़क गए। बात भी सही है वह लोग तो न्याय मांग रहे थे और आप उन पर डंडे बरसा कर क्या प्रमाणित करना चाहते हैं। गृह मंत्री इन सभ्य समाज के लोगो की तुलना माओ वादियों से करते नजर आये। ऐसा लग रहा है  एक घमंड से भरी सरकार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचा है इस सरकार में।

मुझे याद आ रहा है कुछ इसी तरह का जनसैलाब तब भी उमड़ पड़ा था जब अन्ना हजारे ने इस सरकार से बढ़ते हुए भ्रष्टाचार के विरोध में जंतर  - मंतर पर लोकपाल बिल लाने के लिए धरना प्रदर्शन किया। बाद में योगगुरु बाबा रामदेव ने भी रामलीला मैदान में धरना दिया। दिल्ली में हजारो लोगो  धरना स्थल पर पहुँच कर समर्थन दिया। ऐसा लग रहा था कि समाज इस सरकार के कामकाज से खुश नहीं है और जनता का विश्वास यह सरकार खो चुकी है। जनाक्रोश इतना अधिक इस सरकार  के खिलाफ देखने को मिल रहा था कि अगर अभी चुनाव हो जाए तो यह सरकार सत्ता खो देगी। जनता इसे नकार देगी। कहीं भी नहीं लग रहा था कि इस सरकार को चुनाव में जनता का जरा सा भी समर्थन मिलेगा।
परन्तु हाल में हुए विधान सभा चुनावो के नतीजो को देख कर लगा जनाक्रोश तो सरकार के काम-काज के प्रति लोगो में है परन्तु फिर भी लोग वोट देकर इस सरकार के प्रति अपनी आस्था व्यक्त कर रहे हैं। उत्तराखंड में भाजपा की सरकार थी। कांग्रेस के पास चली गयी। इसी तरह अभी जल्दी में हुए चुनावो में हिमाचल की सरकार भी कांग्रेस की झोली में चली गयी। केवल गुजरात की सरकार बच  सकी। सोंचने का विषय है कि जिस तरह से जनता में इस सरकार के प्रति आक्रोश दिखाई देता है वह जनता के द्वारा वोट देते समय कहाँ चला जाता है। मुझे लगता है जनता त्रस्त है लगातार बढती  मंहगाई से, जनता त्रस्त है बढ़ते हुए भ्रष्टाचार से, कानून व्यस्था से, बढती हुई गुंडागर्दी से और नित नए उजागर हो रहे घोटालो से, पर फिर भी काँग्रेस को लोग पसंद कर रहे हैं। उसकी सरकार चुन रहे हैं।
यह एक चिंता का विषय है कि हमारा समाज जा कहाँ रहा है। वह  धर्म निरपेछ्ता का ढोंग करने वाले लोगो को चुन कर साबित क्या करना चाहता  है।
इन सबका सबसे बड़ा कारण जो मुझे समझ में आता है वह यही है कि हमारी सामंतवादी मानसिकता। हम सालो साल राजाओ और नबाबो के आधीन रहे हैं। हमारे रोम – रोम में यही  मानसिकता  धर गयी है।  ज्यादातर लोग उसी मानसिकता से जी रहे हैं और कांग्रेस को वोट दे कर उपकृत करते आ रहे हैं। उनका यही मानना है कि कांग्रेस ने हमें अंग्रेजो से आजादी दिलवायी है।  नेहरु- गाँधी परिवार को ही अपना भाग्य विधाता मानते हुए उसको वोट दे  रहे हैं। हम कल भी पिछड़े थे और आज भी पिछड़े हैं। विश्व में दुसरे नंबर पर हमारी जनसँख्या है। परन्तु हम कहाँ हैं।  आजादी के इतने साल बाद भी हम अपने आप को विकसित  नहीं कर पाए हैं। हम आज भी विकासशील कह कर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं।